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Noida में सुपरटेक एमराल्ड के 40 मंजिला दो टावर गिराने के सुप्रीम आदेश

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में आगे कहा कि नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 915 फ्लैट और दुकानों वाले 40 मंजिला वाले दो टावरों का निर्माण नियमों के उल्लंघन में किया गया था।

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नई दिल्ली:नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट(Supertech) प्रोजेक्ट पर आज सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अपना फैसला सुनाया।

कोर्ट ने सुपरटेक के 40 मंजिला दो ट्विन टावर गिराने के आदेश दे दिए(Supreme-Court-orders-Supertech’s-two-40-floor-towers-demolition-in-Noida) है।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि बिल्डिंग निर्माण में नोएडा अथॉरिटी(Noida Noida authorities) और डेवलपर की मिलीभगत है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में आगे कहा कि नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 915 फ्लैट और दुकानों वाले 40 मंजिला वाले दो टावरों का निर्माण नियमों के उल्लंघन में किया गया था।

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ये अवैध निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ सांठगांठ करके किया गया है।

अब सुपरटेक को अपनी लागत पर दो महीने के अंदर दोनों दावरों को ध्वस्त करना होगा।

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कोर्ट ने दोनो टावर के सभी फ्लैट मालिकों को 12 फीसदी ब्याज के साथ क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में सुपरटेक के 40 मंजिला दो टावरों को भवन मानदंडों का उल्लंघन करने पर ध्वस्त करने संबंधी इलाहाबाद हाईकोर्ट(Allahabad) के आदेश को चुनौती दी गई थी।

जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

साल 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों टावरों को अवैध बताते हुए गिराने का आदेश दिया था। इन 40-40 मंजिला 2 टावरों में 950 फ्लैट बने हैं।

वैसे, बड़ी संख्या में लोग प्रोजेक्ट से अपने पैसे वापस ले चुके हैं।

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एमरल्ड कोर्ट परिसर में रह रहे लोगों ने आरोप लगाया था कि बिल्डर सुपरटेक ने पैसों के लालच में सोसाइटी के ओपन एरिया में बिना अनुमति के यह विशाल टावर खड़े कर दिए।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कोर्ट ने सुपरटेक की एमराल्ड कोर्ट परियोजना के घर खरीदारों को स्वीकृत योजना मुहैया कराने में विफल रहने पर नोएडा प्राधिकरण को फटकार लगाते हुए कहा था, ‘आप (प्राधिकरण) चारों तरफ से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं।’

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पीठ ने कहा था कि जब घर खरीदारों ने योजना सौंपने के लिए कहा तो प्राधिकरण ने डेवलपर से पूछा क्या इसे शेयर करना चाहिए। डेवलपर के कहने पर उन्हें योजना सौंपने से इनकार कर दिया गया।

रियल्टी फर्म सुपरटेक लिमिटेड ने इन टावरों के निर्माण का बचाव किया था और दावा किया था कि यह अवैध कार्य नहीं है।

 

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