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महिला दिवस विशेष-मझे गर्व है कि मैं नारी हूँ, मैं कोई बोझ या उपभोग की वस्तु नहीं…
"काश मैं पुरूष होती" इस सोच को बदलना होगा, चलो इस मिशन की करें शुरूआत, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:"
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नई दिल्ली (समयधारा) : “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:”हाँ, यह बात सोलह आना सच ही है कि,
जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवतागण खुद विराजते हैं ।भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से शास्त्रों में नारी सम्मान को महत्व दिया गया है।
नई दिल्ली (समयधारा) : “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:”हाँ, यह बात सोलह आना सच ही है कि,
जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवतागण खुद विराजते हैं ।भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से शास्त्रों में नारी सम्मान को महत्व दिया गया है।
वक्त के साथ-साथ आर्थिक, राजनैतिक व सामजिक क्षेत्रों में महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान,उपलब्धियों को सम्मानित व याद करते हुए 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का नाम दिया गया।
महिला दिवस की शुरूआत15000 मजदूर महिलाओं के एक आंदोलन के साथ न्यूयॉर्क शहर में हुई।
यह आंदोलन काम के घण्टे कम करवाने, वेतनवृद्धि व मताधिकार की माँग को लेकर था। बाद में अमेरिका ने इस दिन को राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया। 1917 में युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने ‘ब्रेड एंड पीस’ (रोटी और कपड़े) की माँग के साथ जिस दिन आन्दोलन की शुरूआत की, वो दिन 8 मार्च का दिन था। वह आंदोलन सफल रहा और तब से 8 मार्चको अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया गया।
एक वक्त था जब महिलाएं सिर्फ चारदीवारियों में बंद थी। पर्दा प्रथा थी। हर सामाजिक कार्य में वे भाग नहीं ले सकती थी, लेकिन अब नारी हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती है। कई क्षेत्रों में तो पुरुषों से महिलाएं आगे हैं।
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“वह नारी जो कभी पर्दे में नजर आती थी,
अब कुछ बदली- बदली सी नजर आती है,
अब वह पिंजरे में बंद पंछी सी नहीं,
वरन् मुक्त पंछी सी नजर आती है।
जो कभी आदमी के पैरों की जूती
समझी जाती थी,
अब उसके संग या उससे भी आगे
दौड़ती नजर आती है।
अन्याय हर दर्द को जो अश्रु बहा मूक
रह बस जो सहती रहती थी,
वह हिमालय पर,समुद्र की गहराइयों में व
अंतरिक्ष में अब नजर आती है।
बदल रही शिक्षित व जागरूक हो अब नारी,
उसके साथ फिर और खिल उठेगा जग सारा,
महक उठेगी इस उपवन की हर इक क्यारी,
दिन वह दूर नहीं बेटी होगी जब सबको प्यारी।”
प्रसिद्ध कवि जयप्रसाद शंकर जी की काव्या रचना कामायनी में महिलाओं की ममता,सहनशीलता का खूबसूरती से वर्णन किया गया है…..
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“नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में
पीयूष-स्रोत बहा करो जीवन के सुंदर समतल में ”
नारी हर कष्ट व दर्द को अपने ऊपर लेकर भी अपने परिवार के ऊपर कोई आँच नहीं आने देती। घर-परिवार की सभी जिम्मेदारियों को तो खूबसूरती से निभाती ही है। इसके अतिरिक्त वह अब हर क्षेत्र फिर चाहे वो राजनीतिक हो,आर्थिक हो,सामाजिक हो, विज्ञान का हो,सांस्कृतिक हो या फिर खेल-कूद का… सब में बढ़-चढ़ कर भाग लेती है।
उनमें हम उन भारतीय महिलाओं को कैसे भूल सकते हैं? जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने हमारे देश को गौरवान्वित किया है। उनमें से कुछ जैसे.. सुनीता विलियम्स, अरूंधति राय,किरण बेदी,इंदिरा गांधीजी, चंदा कोचर,सानिया मिर्ज़ा व मैरी कॉम है।
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इस देश में सदा औरतें पूजनीय रही हैं। यह वही देश है जहाँ देवियों की पूजा की जाती है जहाँ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, सावित्री फूले,सरोजनी नायडू व अमृता प्रीतम जैसी अनगिनत महान हस्तियों ने जन्म लेकर इस भूमि को पवित्र किया है।
ऐसे ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो हमें अनेक ऐसे उदाहरण मिलेंगे जब महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आगे रही हैं जैसे….Princess Diana,QueenVictoria,Madonna,Be nazirBhootoMotherTeresa,J.K.Ro wling and Elizabeth etc.
इन सब महिलाओं ने किसी न किसी क्षेत्र में अपने देश का नाम रोशन किया है। वह कर दिखाया जो शायद पुरूष सोच भी नहीं सकते थे।
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पर हमारे समाज व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी कई क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति दयनीय है। भारत में अनेक कुप्रथाएं जैसे दहेजप्रथा,कन्या भ्रूण हत्या व अशिक्षित रखना अब भी जारी है। यहाँ तक की कई क्षेत्रों में तो आज भी बाल विवाह होते हैं।
वैसे अनेक कुप्रथाओं पर रोक लगी भी है उनमें सतीप्रथा व विधवाओं का पुर्नविवाह न करना प्रमुख हैं।लेकिन औरतों को हर क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार देने में शायद वर्षों लग जाएंगे। यदि आज भी समाज महिलाओं को पुरुषों से किसी भी तरह कमजोर समझता है तो यह उसके नजरिये का दोष है।
महिला तो वह दम-खम रखती है जो घर व बाहर की जिम्मेदारी एक साथ बखूबी निभा पाती है। जब तक महिलाएं अपने आपको कभी भी पुरुषों से कम नहीं समझेंगी व अपनी योग्यता को पहचान अपने हक के लिए लड़ना नहीं सीखेंगी, तब तक समाज पुरूष प्रधान ही रहेगा।
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इसलिए महिलाओं का जागरूक होना भी बहुत जरूरी है। समाज ऐसा होना चाहिए, जहाँ महिला व पुरूष एक गाड़ी के दो टायरों के समान हो जिसमें एक के पंक्चर होते ही बैलेंस बिगड़ जाता है यानि दोनों को हर क्षेत्र में समान अधिकार होना चाहिए।
हर औरत को अपने औरत होने पर गर्व होना चाहिए। उसको अपनी यह सोच बदल देनी चाहिए कि काश वह पुरूष होती। महिलाओं के प्रति सच्चा सम्मान केवल उन्हें बराबरी का दर्जा देने से ही होगा न कि मात्र अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने भर से।
“मुझे गर्व है कि मैं नारी हूँ,
मैं कोई बोझ या उपभोग की वस्तु नहीं,
वरन् संपूर्ण अस्तित्व वाली हूँ।
सजाने की कोई गुड़िया नहीं
कंधे से कंधा मिला चलने वाली हूँ।
पर्दे में दब कर रहने वाली नहीं
आत्मविश्वास से साक्षात्कार करने वाली हूँ।
अपनी संस्कृति संस्कार भूलने वाली नहीं
पर कदम फूंक-फूंक अब रखने वाली हूँ।
मैं तो प्रेम का बहता झरना
फूलों की इक क्यारी हूँ
मुझे गर्व है कि मैं मर्यादित
आत्मनिर्भर नारी हूँ।”
Happy Women’s Day 2020!
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