लोकसभा चुनाव 2019 : नेताओं के अब होंगे दर्शन, चुनावी मौसम में बरसेगा अब सब पर धन

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नई दिल्ली, 5 फरवरी : वोट हमारे नेताओं के लिए कितनी बड़ी मजबूरी है। इसके लिए राजनीतिक अखाड़े में हर दांव -पेंच खेल जाते हैं।
उस दौरान न ही तो उन्हें देश की अर्थव्यवस्था की और नहीं मासूम जनता की चिंता होती है।न जाने कितनी योजनाएं बनाई जाती हैं,
कितने वादे किये जाते हैं।उनमें से कुछ लागू होते हैं और कुछ बस वक्त के साथ-साथ दफन हो जाते हैं।
जीतते ही व सियासी कुर्सी हाथ आते ही गिरगिट की तरह रंग बदलने लगते हैं हमारे नेतागण।
2019-20 के लिए जो बजट की घोषणा हुई है उससे यही लगता है कि 2019 में होने वाले चुनाव में मतदाताओं को लुभाने की पूरी -पूरी कोशिश हुई है।
सरकार किसानों, मजदूरों, व्यापरियों व अन्य किसी भी सामाय वर्ग को निराश नहीं करना चाहती।
बजट के अनुसार सकल उधारी 7.1 लाख करोड़ रूपये रहेगी चालू वित्त वर्ष में इसके 5.71  रहने का अनुमान है।
अगले वित्त वर्ष में पुराने कर्जों का भुगतान 2.36 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।
2019-20 के लिए पेश बजट को अर्थशास्त्रियों ने सिर्फ लोकलुभावन बताते हुए कहा कि इससे राजकोषीय घाटे पर बुरा असर बढ़ेगा।
आम चुनाव से पहले यह मध्यम वर्ग व किसानों को लुभाने को प्रयास किया गया है। जो भी योजनाएं घोषित की गई हैं
उससे सिर्फ उपभोग बढ़ेगा।राजस्व को बढ़ाने के उपाय नहीं किये गये हैं। इससे राजकोषीय घाटे पर दवाब बढ़ेगा।
किसानों को 6 हजार सलाना की न्यूनतम आय व 5 लाख तक की सालाना आय पर कोई टेक्स नहीं की घोषणा राजकोषीय गणित की कीमत पर की गई है।
रेटिंग एजेंसी मूडीज के हिसाब से सारे उपाय खर्च बढ़ाने के लिए किये गये हैं।
राजस्व बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया गया इससे सरकार चार वर्ष तक भी राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पायेगी।
अभी तक संविधान में जाति व सामाजिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान था लेकिन
अब आथिर्क आधार पर आरक्षण के प्रावधान की पेशकश की गई है।  तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व राजस्थान में सत्ता गंवाने के बाद
भाजपा का यह एक चुनावी दांव भी साबित हो सकता है।लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले इस फैसले से विभिन्न वर्गों का आरक्षण
49.5% से बढ़कर से59.5% हो जाएगा। जबकि 2006 में सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से ज्यादा नहीं हो सकती ।
यह फैसला 2018 तक बरकरार रहा है।
माना जा रहा है कि सवर्ण जातियों को लुभाने के लिए यह फैसला भाजपा ने लिया है,
क्योंकि यह जातियां लम्बे वक्त से आरक्षण की मांग करती रही हैं।वैसे भी सवर्ण जातियां भाजपा का वोट बैंक मानी जाती रही हैं।
अब इस प्रावधान के अनुसार जनरल कैटेगरी के लोगों को आर्थिक आधार पर शिक्षा व सरकारी नौकरियों में 10 % आरक्षण मिल पाएगा।
मुस्लिम व अन्य धर्म के लोग भी इसके तहत आते हैं।
मजदूर पैंशन योजनाएं हों,कामधेनू योजनाएं हों या फिर राम़मंदिर मुद्दा ।सब चुनावों के दौरान याद आने लगते हैं।
वैसे तो बजट हो या 10% आरक्षण सोच जनहित में ही है और हर वर्ग के हित में भी पर जब सफल हो जायें बात तब की है।
और यह बात भी सही है कि अगर योजनाएं जब सफल नहीं होती तो जनता बौखला जाती है।
हर बार की तरह राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए  नये -नये प्रलोभन देती है व वर्तमान सरकार नई -नई योजनाओं का ऐलान कर देती है।

 

“होता कुछ इस तरह है ”  

एक बार एक नेताजी गाँव में वोट माँगने गये

जनसभा को संबोधित करके कहने लगे……
बहनों व भाईयों  जरा इस चुनाव चिन्ह का
ध्यान रखना
अपना कीमती वोट देकर मुझे
विजयी बनाना
जीत गया तो हर घर में हैंडपंप लगवाऊंगा
लड़कियों का अलग से कॉलेज खुलवाऊंगा
हर होशियार विधार्थी को लैपटॉप दिलवाऊंगा
हर पढ़े -लिखे को रोजगार मुहैया करवाऊंगा
मजदूरों की व किसानों की पैंशन बंधवाऊंगा!
इतना सुनते ही इक बंदा भड़क उठा गुस्से से
चिल्लाने लगा…….
हर बार आते हो तभी करके जाते हो यही वादा
पर अब भांप गये हम तुम्हारा हर इरादा
फिर आओगे तो फिर यही सब कह जाओगे
पर बार- बार अब हमें मुर्ख नहीं बना पाओगे!
नेता जी तब बीच में ही तपाक से बोले….
वह  मैं नहीं वरन् मेरा भाई होगा भोले
भाई-भाई में भी बहुत अंतर होता है
तब एक जन उठ क्रोध से बोला…..
हाँ बहुत अंतर होता है
एक लंगूर तो दूसरा बंदर होता है!
ऋतु गुप्ता
Dharmesh Jain

धर्मेश जैन www.samaydhara.com के को-फाउंडर और बिजनेस हेड है। लेखन के प्रति गहन जुनून के चलते उन्होंने समयधारा की नींव रखने में सहायक भूमिका अदा की है। एक और बिजनेसमैन और दूसरी ओर लेखक व कवि का अदम्य मिश्रण धर्मेश जैन के व्यक्तित्व की पहचान है।