breaking_newsअन्य ताजा खबरेंकानून की कलम सेकानूनी सलाहदेशदेश की अन्य ताजा खबरेंब्लॉग्सलाइफस्टाइल
Trending

129वीं अंबेडकर जयंती : अंबेडकर दलितों के ही नहीं, बल्कि समाज के सभी शोषित वर्गो के मसीहा

#Ambedkar Jayanti : बाबा साहेब अंबेडकर जी के जन्मदिन पर जानते है, उनकी जिंदगी से जुड़ी बेहद जरूरी घटनाएं:

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

नई दिल्ली,(समयधारा) : कुछ लोग समाज के किसी ख़ास वर्ग की उन्नति नहीं करते,

बल्कि वह लोग समाज के हर वर्ग की प्रगति को अपने कंधो पर ले आगे बढ़ते है l

उन्ही में से एक व्यक्ति है- देश के संविधान निर्माता भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर l 

आज अंबेडकरजी की 129वीं जयंती है।

पूरा देश और सोशल मीडिया भले ही हैशटैग #AmbedkarJayanti ट्रेंड करके उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा हो

लेकिन क्या इस सबसे सच में बाबा साहेब के सपनों का भारत बन पाएगा?

क्या वर्तमान में राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं की खाई जितनी छिछालेदार हो चुकी है

उसके लिए बाबा साहेब अंबेडकर की आत्मा रोती नहीं होगी?

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

आज बाबा साहेब अंबेडकर जी के जन्मदिन पर जानते है l  उनकी जिंदगी से जुड़ी बेहद जरूरी घटनाएं:

भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) को दलितों का मसीहा माना जाता है,

जबकि असलियत में उन्होंने जीवन भर दलितों की नहीं, बल्कि समाज के सभी शोषित वर्गो के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। 

भीमराव अंबेडकर का जन्म (Dr. Bhimrao Ambedkar birth anniversary) 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक एक गांव में हुआ था।

इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था। इनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में काम करते थे।

ये अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे। ये महार जाति से ताल्लुक रखते थे,

जिसे हिंदू धर्म  (Hinduism) में अछूत माना जाता था। 

घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण इनका पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से हो पाया।

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

इन परिस्थितियों में ये तीन भाई- बलराम, आनंदराव और भीमराव तथा दो बहनें मंजुला और तुलसा ही जीवित बच सके।

सभी भाई-बहनों में सिर्फ इन्हें ही उच्च शिक्षा मिल सकी।

हिंदू धर्म (Hinduism)में व्याप्त चतुष्वर्णीय जाति व्यवस्था के कारण इन्हें जीवन भर छुआछूत का सामना करना पड़ा।

स्कूल के सबसे मेधावी छात्रों में गिने जाने के बावजूद इन्हें पानी का गिलास छूने का अधिकार नहीं था।

उच्च जाति का छात्र काफी ऊपर से हाथ में डालकर इन्हें पानी पिलाता था।

बाद में इन्होंने हिंदू धर्म की कुरीतियों को समाप्त करने का जिंदगी भर प्रयास किया।

जब इन्हें लगा कि ये हिंदू धर्म से कुरीतियों को नहीं मिटा पाएंगे, तब 14 अक्टूबर, 1956 में अपने लाखों समर्थकों सहित बौद्ध धर्म अपना लिया।

जानें बाबा साहेब ने क्यों छोड़ा हिंदू धर्म ?- why did Baba Saheb leave Hinduism?

आज के दौर में हिंदू के नाम पर राजनीति तो की जा रही है और दलितों का वोट पाने के लिए डॉ. अंबेडकर को ‘अपना’ बताया जा रहा है,

लेकिन कोई यह सोचने के लिए तैयार नहीं है कि बाबा साहेब ने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा। 

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

राजनीति करने वाले आज डॉ. अंबेडकर का भी भगवाकरण करने का प्रयास करते हैं,

किसी के धर्मांतरण पर व्यग्र और उग्र हो उठते हैं, लेकिन अपने धर्म पर आत्मचिंतन करना, सोच बदलना,

कुरीतियां मिटाना जरूरी नहीं समझते। अगर सोच बदली होती तो जगह-जगह अंबेडकर की मूर्तियां नहीं तोड़ी जातीं। 

डॉ. अंबेडकर की पहली शादी नौ साल की उम्र में रमाबाई से हुई।

रमाबाई की मृत्यु के बाद इन्होंने ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाली सविता से विवाह कर लिया।

सविता ने भी इनके साथ ही बौद्ध धर्म अपना लिया था। अंबेडकर की दूसरी पत्नी सविता का निधन वर्ष 2003 में हुआ।

भीमराव ने अपने एक ब्राह्मण दोस्त के कहने पर अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया, जो अंबावड़े गांव से प्रेरित था।

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

अंबेडकर की गिनती दुनिया के सबसे मेधावी व्यक्तियों में होती थी। वे नौ भाषाओं के जानकार थे।

इन्हें देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों से पीएचडी की कई मानद उपाधियां मिली थीं। इनके पास कुल 32 डिग्रियां थीं।

अंबेडकर को 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी के बाद देश के पहले देशी संविधान के निर्माण के लिए 29 अगस्त,

1947 को संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। फिर दो वर्ष, 11 माह,

18 दिन के बाद संविधान बनकर तैयार हुआ, 26 नवंबर, 1949 को इसे अपनाया गया और 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया।

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

कानूनविद् अंबेडकर को प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत का पहला कानून मंत्री बनाया था।

डॉ. अंबेडकर ने समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए सबसे ज्यादा महिलाओं की अशिक्षा को जिम्मेदार माना।

इन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया। उनके सशक्तिकरण के लिए इन्होंने हिंदू कोड अधिनियम की मांग की।

तब भारी विरोध के चलते वह पारित नहीं हो सका, लेकिन बाद में वही अधिनियम हिंदू विवाह अधिनियम,

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और हिंदू विशेष विवाह अधिनियम के नाम से 1956 में पारित हुआ। इससे हिंदू महिलाओं को मजबूती मिलती थी।

बाबा साहेब ने सिर्फ अछूतों के अधिकार के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण के लिए प्रयासरत रहे।

उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया।

पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था। इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ।

इसके अलावा इन्होंने मजदूरों के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम,

मुआवजा आदि सुधार भी इन्हीं के प्रयासों से हुए।

उन्होंने मजदूरों को राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया। वर्तमान के लगभग सभी श्रम कानून बाबा साहेब के ही बनाए हुए हैं।

बाबा साहेब कृषि को उद्योग का दर्जा देना चाहते थे। उन्होंने कृषि का राष्ट्रीयकरण करने का प्रयास किया।

राष्ट्रीय झंडे में अशोक चक्र लगाने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

ये अकेले भारतीय हैं, जिनकी प्रतिमा लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्‍स के साथ लगी है।

साल 1948 में डॉ. अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित हो गए। छह दिसंबर, 1956 को इनका निधन हो गया।

डॉ. अंबेडकर को देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले।

इनके निधन के 34 साल बाद वर्ष 1990 में जनता दल की वी.पी. सिंह सरकार ने इन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया था।

इस सरकार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बाहर से समर्थन दे रही थी।

वी.पी. सिंह ने जब वी.पी. मंडल कमीशन की सिफारिश लागू कर दलितों,

पिछड़ों को आरक्षण का अधिकार दिया, तब भाजपा ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी

और सवर्ण युवाओं को आरक्षण के खिलाफ आत्मदाह के लिए उकसाया था।

देशभर में कई युवकों ने आत्मदाह कर लिया था और जातीय दंगे हुए थे, जिसे ‘मंडल-कमंडल विवाद’ नाम दिया गया था। 

(इनपुट एजेंसी से)

129th-ambedkar-jaynti-special ambedkar-not-only-dalit-but-hero-of-all-exploited-sections-ofthe-society

Show More

shweta sharma

श्वेता शर्मा एक उभरती लेखिका है। पत्रकारिता जगत में कई ब्रैंड्स के साथ बतौर फ्रीलांसर काम किया है। लेकिन अब अपने लेखन में रूचि के चलते समयधारा के साथ जुड़ी हुई है। श्वेता शर्मा मुख्य रूप से मनोरंजन, हेल्थ और जरा हटके से संबंधित लेख लिखती है लेकिन साथ-साथ लेखन में प्रयोगात्मक चुनौतियां का सामना करने के लिए भी तत्पर रहती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button