World Mental Health Day Journaling Meaning Use Effects and Benefits
नयी दिल्ली (समयधारा) : अगर किसी की भी सेहत यानी तबियत ख़राब हो तो आप उसे डॉक्टर के पास ले जाएँ उसका ईलाज कराये दवा और दुआ करें वह ठीक हो जाएगा l
पर कभी कभी किसी को ठीक करना हो तो उसकी मेंटल हेल्थ का भी ध्यान रखना होता है l
आज हम आपको वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे (World Mental Health Day) के दिन एक ऐसी थेरेपी के बारें में बताएँगे जो शायद आप में से कई लोगों ने सुनी ही नहीं होगी l
यह थेरेपी विश्व के कई देशों में प्रसिद्द है वही भारत में भी इसका चलन शुरू हो चुका है l
समयधारा से जुड़ीं लेखिका डॉक्टर स्वाति जैन ने भी वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे की दिन आपके लिए इस थेरेपी की सारी जानकारी लायी है l
“जर्नलिंग” एक थेरेपी का रूप है जो मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को सुधारने में मदद कर सकती है और इसे ऑक्युपेशनल थेरेपी में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
जर्नलिंग का मतलब होता है अपने विचारों, भावनाओं, और अंदरूनी समझ को लिखना या रिकॉर्ड करना। इसे आप कागज़ पर या कंप्यूटर पर कर सकते हैं।
जर्नलिंग के लाभ:
- जर्नलिंग आपकी मदद कर सकता है:
- घटनाओं और समस्याओं को सुलझाने में
- खुद को गहराई से समझने में
- पुरानी समस्याओं का सामना करने में
- अपने विचारों को संगठित करने में
जर्नलिंग एक सस्ता, आसानी से उपलब्ध और विविधता से भरा थेरेपी का रूप है,
जिसे आप अकेले या किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में कर सकते हैं।
यह निजी चिंतन हमें उन घटनाओं और समस्याओं से निपटने में मदद करता है जिनका हम सामना कर रहे होते हैं।
यह हमें हमारे मुद्दों पर एक नई दृष्टिकोण से सोचने में सहायता करता है।
थैरेप्यूटिक जर्नलिंग क्या है?
थैरेप्यूटिक जर्नलिंग पारंपरिक डायरी लिखने से अलग होता है। यह केवल दिनभर की घटनाओं को दर्ज करने तक सीमित नहीं होता। इसके बजाय, इसमें उन सभी भावनाओं और विचारों को लिखने पर ज़ोर होता है जो किसी कठिन या दर्दनाक जीवन घटना से जुड़े होते हैं। इस प्रक्रिया में आप अपनी मानसिक और शारीरिक सेहत को सुधार सकते हैं और बेहतर कल्याण का अनुभव कर सकते हैं।
थैरेप्यूटिक जर्नलिंग का तरीका
थैरेप्यूटिक जर्नलिंग का एक तरीका यह है कि आप ऐसी घटनाओं के बारे में लिखें जो आपको गुस्सा, दुःख, या चिंता महसूस कराते हैं। विशेष रूप से किसी दर्दनाक घटना के बारे में लिखने का एक तरीका यह होता है कि आप तीन से पांच सत्रों में, चार दिनों तक, 15-20 मिनट के लिए उस घटना पर लिखें।
कैसे काम करता है:
भावनाओं को व्यक्त करना हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है। यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। जब कोई परेशान करने वाली या दर्दनाक घटना होती है, तो हम उसे पूरी तरह से प्रोसेस नहीं कर पाते। यह घटना और उससे जुड़ी भावनाएं हमारी यादों में फंस जाती हैं। जब हम इन भावनाओं और घटनाओं को कागज पर लिखते हैं, तो हम इनसे उबरने और आगे बढ़ने की क्षमता प्राप्त करते हैं।
थैरेप्यूटिक जर्नलिंग के लिए निर्देश:
- समय और स्थान: ऐसा समय और स्थान चुनें जहाँ आपको कोई बाधा न आए। यह सुनिश्चित करें कि कोई आपको फोन, ईमेल या अन्य माध्यमों से डिस्टर्ब न करे।
- लिखने का विषय चुनें: आप किसी ऐसी घटना के बारे में लिख सकते हैं जो आपको परेशान कर रही है। अगर आप किसी बड़े आघात का सामना कर चुके हैं, तो कुछ समय के बाद ही उस पर लिखें, ताकि भावनाओं को संभाल सकें।
- लंबाई और आवृत्ति: चार दिनों तक प्रतिदिन 15-20 मिनट तक लिखें।
- निरंतर लिखें: एक बार लिखना शुरू करने के बाद बिना रुके लिखते रहें। व्याकरण या वर्तनी की चिंता न करें।
- केवल अपने लिए लिखें: यह लेखन केवल आपके लिए है, इसलिए इसे दूसरों से साझा करने की जरूरत नहीं है। आप इसे लिखने के बाद नष्ट भी कर सकते हैं।
- क्या न लिखें: अगर कोई घटना आपके लिए अत्यधिक भावनात्मक हो, तो उसके बारे में न लिखें। केवल उन विषयों पर लिखें जो आप इस समय संभाल सकते हैं।
- उम्मीदें: पहले एक-दो दिन में लिखने के बाद कुछ उदासी या निराशा महसूस हो सकती है, लेकिन यह सामान्य है। यह भावना कुछ मिनटों या घंटों तक रहती है।
कुछ खास बातें ध्यान में रखें:
बार-बार एक ही विषय पर लिखना फायदेमंद नहीं होता। अगर आपको लगता है कि आप कई सत्रों के बाद भी प्रगति नहीं कर रहे हैं, तो हो सकता है कि आपको रुकने और किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करने की जरूरत हो।
सुझाव: लेखन के दौरान गहरी साँसें लें और सुकून भरा संगीत सुनें। अगर आपने किसी कठिन विषय पर लिखा है, तो इसे खत्म करने के बाद खुद को दोषी न ठहराएं।