संपादकीय : राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद यानि दिन भर चले अढ़ाई कोस

मत लूटों-कचोटों मुझे इतना की मेरी पहचान मिट जाएँ, जब जाऊं मंदिर या मस्जिद खुदा से आखं न मिल पाएं,

Editor opinion on Ramjanmabhumi – Ayodhya land dispute

नई दिल्ली, 7 मार्च :  देश में आजादी के बाद से लेकर एक मुद्दा बहुत गर्म रहा है और वो है, राम जन्मभूमि(अयोध्या लैंड) विवाद (Ayodhya land dispute)l

न जाने भारत देश में कितने लोगों ने इस विवाद को हवा दी l कोई सच्चाई के साथ लड़ा-अड़ा l

तो किसी ने इसका फायदा उठाते हुए इस देश का राजसिहांसन ही संभाल लिया l

मतलब यही है कि इस रामजन्मभूमि ने सभी को कुछ न कुछ दिया l

अब जब लड़ाई होती है तो कोई एक पक्ष जीतता है तो कोई एक पक्ष हारता है l

पर एक पक्ष वो भी होता है जिसे किसी के भी हारने या जीतने से कोई मतलब नहीं,

वो तो बस हमेशा से जीतता ही है, और हारती है तो बस इंसानियत l कोई विरोध में तो कोई सपोर्ट में l

कोई साथ है तो कोई इस विवाद से अंतर बनाकर अपने आप को पाक साफ़ साबित करने की कोशिश कर रहा है l

आखिर इस विवाद का गुनहगार कौन है ? पक्ष-विपक्ष या तीसरा पक्ष  या वो जिसका कोई पक्ष ही नहीं है l

इन के लिए यह चंद लाइनें है

“मैं न इस तरफ – मैं न उस तरफ , बीच में खड़ा मैं अंगारों पर,

कहीं दूर उसके आने की सुगबुगाहट से, मैं चहका-महका  हूँ तो सही,

होश संभाला तो मेरी जमीन भी खींच ले गए, यह मौकापरस्त वही,

मैं न इस तरफ- मैं न उस तरफ, बीच में खड़ा मैं अंगारों पर,

किसे क्या मिला… किसे क्या हुआ हासिल,

सिर्फ शमशानों में ही जमी महफ़िल,

देवताओं के नाम पर, चला जमीन का  खेल,

अपनी-अपनी वफादारी दिखाने का मानो लगा हो सेल,

यूँ तो कहते है ईश्वर-अल्लाह है सभी ओर,

मैं पूछता हूँ, फिर क्यों है सिर्फ रामजन्भूमि पर जोर”

इन लाइनों में हकीकत है अयोध्या विवाद की ….. 6 दिसंबर कोई कैसे भूल सकता है l

अब बात करते है असल मुद्दे की .

सुप्रीम कोर्ट ने 6 मार्च को राम मंदिर पर एक नई पहल की। उन्होंने राम मंदिर या कहे अयोध्या भूमि विवाद पर  मध्यस्थता की  बात कही l

अपनी पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि वह 6 मार्च को इस मामले में मध्यस्थता की स्थिति को परखेगा l

और आज कोर्ट ने सभी दलों को अपना पक्ष रखने को कहा l मध्यस्थता के लिए दो पक्ष निर्मोही अखाड़ा

और मुस्लिम पक्षकार तैयार है पर जो तीसरा पक्ष है रामलला विराजमान वह मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है l  

क्या मैं आप लोगों से जान सकता हूँ कि यह नई पहल है या नहीं ..?

क्या पहले बातचीत से किसी ने इस गंभीर मुद्दे को सुलझाने की कोशिश नहीं की है ..?

तो आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूँ l राम मंदिर पर पहले भी बातचीत हुई है और वो असफल रही है l

अटल बिहारी वाजपेयी ने राम मंदिर पर बैठकर बातचीत से मामला सुलझाने की एक असफल कोशिश की थी l

उसके बाद  व पहले भी कई बार असफल कोशिशें हुई है बात कहीं न कहीं जाकर अटक जाती है l

सुप्रीम कोर्ट ने 8 हफ्ते के समय का उपयोग करने के लिए मध्यस्थता की पहल की है 

आज पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय लेना क्या देश के हित के लिए है..?

शायद सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से एक और कोशिश करना चाहता है वो अदालत के बाहर ही इस बड़े मुद्दे का फैसला लेने की सोच रहा है l

या सुप्रीम कोर्ट फैसले को लेकर अभी कोई एक मत नहीं बना पाई है l जो भी हो, 

इस मामले को करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा कहने वाली सुप्रीम कोर्ट ने एक पहल की …l

क्या..?  मध्यस्थता की..? अब इस पर क्या कहें ….

पहले तो सुप्रीम कोर्ट में कानूनी जटिलता के चलते इस मामले को इतना टाला गया (यहाँ हमारा मकसद सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने का नहीं है) या टल गया कि लोगों का सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास ही डगमगाने लगा l

किसी न किसी को तो इस मुद्दे पर आगे आकर फैसला लेना ही है l

चाहे वो फैसला किसी के भी पक्ष में हो l पर फैसले की जिम्मेदारी से सब भाग रहे है l

अब अयोध्या मामले में यह नया शिगूफा या यूं कहें नई पहल इस मामले को कहां ले जायेंगी।

क्या सुप्रीम कोर्ट भी अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है …?  सत्य क्या है..?

इस विवाद का हल न निकलने से किसका फायदा होगा..? या किसका नुकसान..?

अब मामले के दूसरे पहलू को भी समझने की जरुरत है 

राम मंदिर (अयोध्या विवाद-रामजन्मभूमि विवाद-बाबरी मस्जिद विध्वंस…आदि) अगर उस जगह बन भी गया तो क्या …?

क्या हिन्दू और मुस्लिम एक हो जायेंगे..? कभी लाशों पर पैर रखकर मंदिर नहीं बनायें जाते …

जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया है और आज भी सिखा रही है …. मैं यहाँ एक छोटा सा उदाहरण देकर फिर अपनी बात रखना चाहता हूँ l 

मेरे दोस्त के संबंधी रोहित का लड़का राज 18 साल का हो गया था l

राज अपने पापा रोहित से पिछले कई सालों से एक एप्पल के लैपटॉप की डिमांड कर रहा था l

वह हर बार पापा से कहता…लेकिन पापा कहते बेटा इस बर्थडे पर ला दूंगा … यूँ कहते-कहते कई साल गुजर गए l

रोहित एक मजदूर एक आम इंसान जिसकी तनख्वाह बमुश्किल 7000-9000 के आस-पास आती थी l

उसके लिए एप्पल जैसा लैपटॉप लेना सपने जैसा था l

वह क्या करता हर बार अपने बेटे राज को आश्वासन देता और हर बार वह टाल देता …l 

नतीजा यह हुआ कि वह लड़का बड़ा होकर अपने पापा की किसी भी बात पर विश्वास नहीं करने लगा…l 

उसे लगा कि उसके पापा कभी भी उसकी यह मांग पूरी नहीं करेंगे l वह मन ही मन लैपटॉप पाने की आग में जलने लगा l

नतीजा सिर्फ एक लैपटॉप के लिए उसने वो किया, जो शायद किसी ने इसकी कल्पना ही नहीं की थी l

रोहित के बेटे राज ने अपने बचपन की इच्छा पूरी करने के लिए लैपटॉप अपने दोस्त के घर से चुरा लिया l

इतना ही नहीं, लैपटॉप चुराते वक्त उसके हाथ से उसके मित्र के पापा का खून भी हो गया….!!

अब वह ताउम्र जेल में सजा काट रहा है l अब आप  मुझे यह बताएं कि इन सब में कसूर किसका है…?

कहते है किसी समस्या को जब तक जड़ से खत्म नहीं किया जाएगा तब तक वह समाप्त नहीं होगी l

पेड़ की नींव में या कहें कि जड़ों में इतनी ताकत होती है कि वह पूरे पेड़ को खड़ा रख सकती है l

यहाँ पर रोहित ने एक बहुत बड़ी गलती की l उसने अगर 11-12 साल की उम्र में ही अपने बच्चें को यह समझा दिया होता कि

मेरी ताकत नहीं है इतना बड़ा और महंगा लैपटॉप लेने की l तो रोहित अपने बच्चे को इतना बड़ा गुनाह करने से शायद रोक लेता l

वह उसे समझाता कि बेटा हमारी चादर कितनी है l हमें कितना पैर फैलाना चाहिए आदि l

उससे यह होता कि वह गुनाह करने से पहले सौ बार सोचता। फिर मेहनत करके अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाता l

बात को टालने से बात बढ़ती है l बात खत्म नहीं होती l

तो अब अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट को क्या करना चाहिए …?

बहुत ही बड़ा सवाल है ..?  जवाब काफी मुश्किल है पर हम यहाँ देने की कोशिश करेंगे l

तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद एक बात तो समझ में आ गयी। न हिंदू, न मुसलमान झगड़ा चाहता है और न ही यह दोनों अपनी-अपनी आस्था को छोड़ना चाहते है ..! तो क्या करें सुप्रीम कोर्ट..?

पहले यहाँ यह बताना जरुरी है कि सुप्रीम कोर्ट कोई धर्म या मजहब नहीं है वह देश का एक ऐसा संस्थान है

जिस पर सब आँख बंद कर विश्वास करते है l शायद मेरी इस बात से कई लोग सहमत नहीं होंगे l

पर सार्वजनिक जीवन में, एक समाज में, भारत जैसे एक लोकतांत्रिक देश में … हम रहते है वहां सुप्रीम कोर्ट

सबसे बड़ी और विश्वसनीय संस्थान है जिसके फैसले पर सवाल कम ही उठते है l

तो आज इस समय सुप्रीम कोर्ट को एक बहुत ही बड़ा मौक़ा मिला है l

तमाम पहलुओं को देखकर-सोच समझकर उसे फैसला ले लेना चाहिए l अब इस फैसले में देरी देश व समाज दोनों के हित में नहीं है l

फैसला कुछ भी हो उसके परिणाम से अब डरने की जरुरत नहीं l क्योंकि यह तो कल भी होगा l

टालने से यह विवाद एक नासूर बनकर उभरेगा l अगर अब फैसला नहीं आता है तो यह कैंसर की तरह हमारे समाज में फ़ैल जाएगा

और उसे ख़त्म कर देगा l सही समय पर सही इलाज जरुरी है l नहीं पता कि यहाँ मैं हिन्दू या मुसलमान बनकर बात कर रहा हूँ l

बस इतना जानता हूं कि मैं तो बस एक सच्चा देशवासी होकर सिर्फ यह दरख़्वास्त कर रहा हूँ कि

“मत लूटों-कचोटों मुझे इतना की मेरी पहचान मिट जाएँ,  

जब जाऊं मंदिर या मस्जिद खुदा से आखं न मिल पाएं,  

शर्मसार न हो जाऊं मैं कहीं इस बात से डरता हूँ, 

वह रास्ते में मिल न जाएँ, घर से कम ही निकलता हूँ ,

जिसके साथ सेवइयां खायी थी ईद पर मैंने कभी बैठकर ,

क्या उसे मिठाई खिला पाऊंगा दीवाली पर घर लाकर ,   

बस इस बात से डरता हूँ.. इस बात से डरता हूँ .. 

मंदिर मस्जिद में मुझे मत बांटों दोस्तों, 

मैं इंसान हूँ इंसान ही रहूँ तो अच्छा है l 

कहीं शैतान न बन जाऊं …इस बात से डरता हूँ …

लाशों के समन्दर पर अपनी नाव तो चला लूँ ,  

पर कहीं मेरे वजूद की लाश न हो उन लाशों में….

इस बात से डरता हूँ ….इस बात से डरता हूँ ….

क्या तेरा क्या मेरा है सब यही रह जाना है एक दिन, 

पर जाते वक्त मैं कहीं यही न रह जाऊं 

इस बात से डरता हूँ… इस बात से डरता हूँ … “

समयधारा डेस्क: