Editorial on Daughter’s Day
नई दिल्ली (समयधारा) : आज Daughter’s Day है और लोग बधाइयाँ दे रहे है l
विशेषकर वह लोग जो कभी लड़कियों(Daughters) को अपने लड़के (sons) से हमेशा कम समझते थे l
वह आज अपनी लड़कियों के बारे में महान-महान बातें कर रहें होंगेl
जिन्होंने अपने लड़के के आगे कभी भी अपनी लड़कियों को ज्यादा भाव नहीं दिया, वहीं आज अचानक अपनी लड़कियों के लिए तारीख के कसीदे पढ़ रहे होंगे, उनके लिए लड़कियों का मोल अनमोल हो जाएगा l
हमारे एक पड़ोसी है, उन्होंने 7 बच्चें पैदा कर लिए l कारण सिर्फ एक, सिर्फ और सिर्फ लड़कियों का पैदा होनाl
आज उनके पास 7 की 7 लड़कियां ही है और अब भी वह लड़के की चाह में 8वीं संतान की तैयारी कर रहे है l
कौन कहता है कि 60 के ठाठ है?…यही से तो जिंदगी के नए संघर्षो की शुरुआत है…
भारत के लगभग हर राज्य में आपको इसी तरह के लोग मिल जायेंगे l खासकर उत्तर भारत में l
पर आज हम समाज में उपस्थि कुछ अनजान लड़कियों की कहानी बताएँगे, जो किसी भी तरह से लड़कों से कम नहीं है l
उन्होंने न सिर्फ लड़कों से बढ़कर काम किया, बल्कि उन्होंने दुनिया को बताया एक लड़की किसी भी तरह से लड़कों से कम नहीं है l
सच्ची कहानी : (Editorial on Daughter’s Day)
एक लड़की पिछले 20-21 सालों से अपनी माँ के साथ दिल्ली में रह रही है l उसके पापा का देहांत करीब 1998 के आसपास हो गया था l
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अपने घर में 2 भाईयों और 7 बहनों के बीच वह सबसे छोटी लड़की हैl
उसके बावजूद पिछले 21 सालों से वह अपनी माँ के साथ अकेली रह रही थी l 2021 के अप्रैल में उसकी माँ का देहांत हो गया हैl
पर उसके पहले के 5 साल(2016 से 2021) उसके लिए काफी संघर्ष भरे रहे l
माँ की जिंदगी को बचाने के लिए उसने काफी कठिनाइयों का सामना किया l
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मां के प्रति अपने भाइयों और अपनी बहनों की अनदेखी,गैरजिम्मेदाराना रवैये और अत्याचारों के खिलाफ न सिर्फ उसने आवाज उठाई l बल्कि एक वीरांगना की तरह लड़ाई लड़ी l
उसने समाज के सामने एक आदर्श बेटी होने का एक डॉटर(Daughter) होने का महान उदाहरण भी पेश कियाl
मैं यह नहीं कहता की इस जैसा और कोई नहीं है या होगा, लेकिन मेरे लिए तो यह किसी भी तरह से एक सच्ची वीरांगना से कम नहीं है l
इस लड़की का नाम इतिहास में जरुर लिखना चाहिए l (Editorial on Daughter’s Day)
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न सिर्फ अपने भाइयों और बहनों के खिलाफ बल्कि अपनी शादी को भी इस लड़की ने अपनी माँ से बढ़कर नहीं समझा l
5 साल पहले सगाई के तुरंत बाद, वह भी और बहनों की तरह शादी करके आराम से अपने पति के साथ खुशहाल जिंदगी जी सकती थी l
पर माँ के प्यार और अपने भाइयों-बहनों के कमीनेपन की वजह से उसने शादी नहीं की l
इतना ही नहीं, मां के सम्मान के लिए अपने भाइयों और बहनों के खिलाफ कोर्ट की लंबी लड़ाई लड़ी
और कोर्ट केस जीतकर उसने एक आदर्श बेटी होने का एक महान उदाहरण पेश किया l
यह पदक नहीं वो सपने है-जो प्रेरित करते है-सपने देखने और उन्हें सच करने के लिए
जालसाज और कपटी भाइयों से लड़ाई, अपनी ही सगी बहनों के खिलाफ होना और उन्हें कोर्ट ले जाना आसान नहीं होता l
कोई भी लड़ाई जो अपनों के खिलाफ लड़ी जाएं,उनके गलत के खिलाफ लड़ी जाएं,कभी आसान नहीं होती,खासकर लड़ने वाली जब एक अकेली लड़की हो।
एक तरफ माँ और दूसरी तरफ रसूखदार भाइयों और कपटी 2-3 बहनों के खिलाफ जानाl (Editorial on Daughter’s Day)
अपने होने वाले पति का सिर्फ मोरल सपोर्ट मिलना (आर्थिक मदद भी न मिलना) इस लड़की के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी l
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पर इन सब के बीच महीने के 70-80 हजार से 1 लाख रुपये तक का खर्चा अकेले उठाना l
एक नहीं, दो-दो लोन लेकर न सिर्फ माँ को पालना बल्कि उसकी हर एक ख्वाहिश को पूरा करना l
चाहे वो मिठाई हो या सोना(Gold) या फिर any डिमांड, उसे हर तरह से खुश रखना कोई इस बेटी से सीखें l
उसका संघर्ष सिर्फ भाइयों और बहनों की खुराफातों से नहीं था, बल्कि उसका संघर्ष उन लड़कों से था
जो जरुरत पड़ने पर अपने माँ-बाप का इस्तेमाल करते है और वक्त निकल जाने के बाद उन्हें पूछते भी नहीं है l
उसका संघर्ष समाज की उस सोच से था,जो कहती है कि मां-बाप सिर्फ और सिर्फ बेटों की जिम्मेदारी होते है और लड़कियां तो पराया धन होती है,उनकी अपने मां-बाप के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती।
बल्कि वह खुद मां-बाप की जिम्मेदारी होती है। उस लड़की ने इसी सोच पर कुठाराघात किया। इस भ्रम को तोड़ डाला।
(Editorial on Daughter’s Day)
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इस लड़की ने न सिर्फ उन्हें सबक सिखाया, बल्कि उसने उन लड़कियों के लिए भी एक मिसाल पेश की, जो अपने भाइयों और बहनों की वजह से परेशान हैl
उसने उन लोगों के खिलाफ भी आवाज उठाई, जो समाज में उच्च पदों पर बैठे है,लेकिन संस्कार उनके उतने ही नीचे है।
इस समाज में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो सिर्फ और सिर्फ मतलबी है l
देश विदेश में ऐसे कई लोग मिलेंगे जो अपनो से ही धोखा खाएं हुए है l जो हालातों के मारे है l
वृद्धावस्था में किस तरह से अपने ही लोग अपनों को छोड़ जाते है l वो शायरी तो आपने भी सुनी ही होगी-
“मुझे अपनों ने मारा गैरों में क्या दम था मेरी कश्ती भी वही डूबी जहाँ पानी कम था”
ऐसे कई ढ़ेरों वृद्धा आश्रम है जो इन बातों की गवाही देंगेl
वहीं आपको और हमें सड़क पर चलते हुए किसी कोने में ऐसे बुजुर्ग भी दिखेंगे, जो किस्मत के मारे है l हालातों के रुलाये और अपनों के सताये है l
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यहाँ एक छोटी सी कविता के माध्यम से एक और लड़की के संघर्षों की कहानी बयां करता हूँ l
Editorial on Daughter’s Day
“एक थी बेटी, जिसने की इतनी पढ़ाई
डिग्री सारी वो, मेरे घर ले आई
सरकारी नौकरी ऐसी, जो मन भाई
मेहनत करके, उसने की बहुत कमाई
दूसरा बेटा था, वो निक्कमा
पूरा दिन वो कहता, अम्मा-अम्मा
घर को मेरे, मानता था अपना
रोज़ दोपहर तक, देखता रहता सपना
बेटा ऐसा खां कर, हो रहा था तगड़ा
जब न मिलता पैसा,अक्सर करता झगड़ा
झगड़े के सिवा न, काम आता दूजा
अक्सर रात को, दारू की करता पूजा
बेटे की चाहत में,सब कुछ मैंने खोया
बेटी हो जाएगी कल पराई,सोच उस रात मैं बहुत रोया
मुझे रोता देख बेटी, सारी रात है रोई
नज़र पड़ने पर मेरी, पानी से आँखें धोई…
विदाई के समय उसने, हाथ में कुछ रखा
उस कागज के टुकड़े को देख, मैं रह गया हक्का-बक्का
दौलत को उसने अपनी कागज(Cheque) में था समेटा
बता दिया उसने मुझे, मैं तेरी बेटी नहीं–हूँ बेटा।
दोस्तों आज का दौर संघर्षो वाला दौर है। कोरोना काल हो या फिर बेटों की अनदेखी अक्सर बेटियों ने आकर घर को सम्भाला है l
उन्होंने हर वक्त यह बताया है कि मैं आज की वह युवा नारी हूं, जो किसी भी तरह से कम नहीं हूँ l
माना मैं अपने परिवार से अलग होकर एक दूसरे परिवार में जाती हूँ,लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अपने वजूद अपनी पहचान को छोड़ दूँ l
माना मैंने शादी के बाद पति का परिवार ही मेरा सबकुछ है l पर अगर मायके में संघर्ष चल रहा हो, तो मेरा भी कुछ फर्ज है।
Editorial on Daughter’s Day
अक्सर आपको कई ऐसे उदहारण मिल जायेंगे ,जहाँ बेटी ने बेटे से बढ़कर काम किया है l
दोस्तों अगर आपको भी कोई ऐसा उदहारण दिखें या मिले तो हमें जरुर मेल करें l
हो सकें तो उनकी तस्वीर भी मेल करें हम जरुर ऐसी बेटियों की कहानी अपनी समयधारा पर प्रकाशित करेंगे l
धन्यवाद
contact@samaydhara.com
बेटी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!
Happy Daughter’s Day!