संपादक की कलम से

महाराष्ट्र की राजनीति में विरासत का खेल, कौन पास…कौन हुआ फेल…

राजनीति का खेल भी बहुत दिलचस्प है। यहां जब आप खुद कुछ करते है तो उसे राष्ट्रवाद का नाम दे दिया जाता है और जब दूसरी पार्टी आपके ही दिखाएं रास्ते पर चलती है तो वह गद्दार कहला दी जाती है। फिर चाहे वह भाजपा हो,कांग्रेस हो,शिवसेना,जेडीयू,एनसीपी या आरजेडी।

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The game Maharashtra politics who passed…who failed… editorial on indian politics in hindi

नईं दिल्ली (समयधारा):महाराष्ट्र की राजनीति इस देश के केंद्र बिंदु में आ चुकी है।भले ही इसका खेल महाराष्ट्र में खेला जा रहा है लेकिन शह-मात की बिसात और नई-नई चालें दिल्ली से चली जा रही है। 

जनता को भले ही यह महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट दिख रहा हो लेकिन एक्सपर्ट्स जानते है कि निशाने पर लोकसभा चुनाव 2024 है।

आज हम महाराष्ट्र के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम और उससे जुड़ीं कुछ जानी-अनजानी बातों पर रोशनी डालेंगे l

वही हम इस के द्वारा पैदा हुए हालातों के दूरगामी परिणाम के बारे में भी बात करेंगे l

सबसे पहले महाराष्ट्र के ताजा राजनीतिक घटनाक्रमों के बारे में एक नजर डाल लेते है। 

अब इन सारी राजनीतिक गतिविधियों को बारीकी से समझना जरुरी है l

हमने इन सब गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया और कुछ निष्कर्ष निकालें है।

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हालांकि कुछ सवालों के जवाब भविष्य की गर्त में छिपे है l हमारी एक ईमानदार कोशिश है इन जवाबों को तलाश करने की l

शायद हमारे जवाब आपको पसंद न आये, पर यह यह बताना जरुरी है कि यह जवाब सिर्फ हमारी एक राय है,

हम यह जवाब किसी भी पार्टी या व्यक्ति के हित या अहित की वजह से नहीं लिख रहे है l

हमारा मकसद है कि आप देश की राजनीति के खेल को समझें, सिर्फ मोहरा बनकर अपने आप को इस्तेमाल न होने दें l

किन्हीं भी भावनाओं में बहकर फैसला न लें क्योंकि भावनाओं की सत्ता में कोई अहमियत नहीं होती और यह बात जनता जितनी जल्दी समझ लें उतना अच्छा है।

यहां दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को सगा भाई सिर्फ और सिर्फ कुर्सी के लिए दो पल में ही बना लिया जाता है।

इसे विडंबना ही कहिये कि जनता की भावनाओं,नैतिकता को बेचकर ही एक राजनेता शीर्ष तक पहुंच बनाता है और फिर वहां पहुंचकर जनता की उसी मूल भावना,अपने कार्यकर्ताओं की अपने प्रति नैतिकता को दरकिनार करने में दो पल भी नहीं लगाता।

इसी की बानगी न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि भारतीय राजनीति के आज अमूमन हर राज्य में देखने को मिल रही है।

राजनेता कभी हिंदुत्व या इस्लाम का वास्ता देकर,तो कभी हमारे खोखले राष्ट्रवाद की आड़ में अपना हित साधकर  सिर्फ और सिर्फ जनता का इस्तेमाल करता है l कैसे  जानें….

  • एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर 39 विधायकों संग बीजेपी के साथ सत्ता की बागडोर संभाल ली l

शिवसेना से बगावत कर करीब-करीब एक हफ्ते तक सूरत से गुवाहाटी व गोवा तक भ्रमण कर रहे दागी विधायकों ने अपना अलग गुट बनाकर बीजेपी के समर्थन में सरकार बना ही ली l

अब उनका कहना है कि वो ही असली शिवसेना है। वह ही बालासाहेब ठाकरे के विचारों को आगे लेकर जायेंगे l

वह हिंदुत्व की राजनीति कर रहे है l उनको सत्ता का लालच नहीं है l वह हिंदुत्व की रक्षा कर रहे है l

जिस हिंदुत्व की बालासाहेब ठाकरे बात करते थे वह उसी पथ पर चल रहे है l उनके पुत्र उद्धव ठाकरे यह सब भूल गए थे l

अब उनके इस दावे में कितनी सच्चाई है वो तो आप-हम अच्छी तरह से जानते ही है… एक व्यक्ति ढाई साल तक चुप रहता है, तब उसे  हिंदुत्व की याद नहीं आती…!

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फिर अचानक वह हिंदुत्व के लिए जाग उठता है…!  यह कैसा हिंदुत्व…? एक आदमी उस व्यक्ति के साथ गद्दारी करता है जिसके पिता ने उसे राजनीति का क ख ग सिखाया….. वह व्यक्ति हिंदुत्व का सच्चा हितेषी है, तो सत्ता से दूर रहता।पहले ही दिन उद्धव ठाकरे से बगावत कर लेता और जिस हठधर्मी का परिचय ढाई साल बाद दिया। उसी कथित हिंदुत्व की रक्षा के लिए महाविकास आघाड़ी को कभी बनने ही नहीं देता।

वर्तमान में हिंदुत्व का इस्तेमाल उस औजार की तरह किया जा रहा है,जिससे सभी अनैतिकताओं को नैतिकता का अमलीजामा पहनाया जा सकें। हिंदुत्व का मतलब मौका परस्ती या अपने स्वाभिमान से खिलवाड़ नहीं है।

एकनाथ शिंदे अपनी सत्ता लोलुपता को भले ही हिंदुत्व का नाम दें लेकिन सच्चाई यही है कि अगर उन्होंने सच में सिर्फ हिंदुत्व के लिए कुछ किया होता तो वह हिन्दुत्व के नाम पर देश में सत्ता पर काबिज उस बड़ी पार्टी से कतई हाथ नहीं मिलाते जिन्होंने खुद कश्मीर में पाकिस्तान को समर्थन करने वाली महबूबा मुफ़्ती के साथ मिलकर सरकार बना ली थी l

जिन्होंने खुद महाराष्ट्र में सरकार  बनाने के लिए भोर तले उस एनसीपी से हाथ मिला लिया था,जिन्हें आज वह अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के रहनुमा कहते फिरते है। यह तो वहीं बात हुई कि छन्नी भी वो बोली जिसमें दसईयों छेद।

अगर उद्धव ठाकरे एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन से सत्ता पर काबिज हुए और उन्होंने हिंदुत्व के साथ समझौता किया, तो फिर भाजपा ने भी जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान को पुरजोर समर्थने करने वाली पीडीपी से हाथ मिलाकर क्या हिंदुत्व का मुखौल नहीं उड़ाया था?

क्या खुद महाराष्ट्र में वर्ष 2019 में संविधान को तांक पर रखकर तड़के देवेंद्र फडणवीस ने दाऊद की कथित समर्थक पार्टी एनसीपी के साथ मिलकर खुद सत्ता में काबिज होने की कोशिश नहीं की थी?

राजनीति का खेल भी बहुत दिलचस्प है। यहां जब आप खुद कुछ करते है तो उसे राष्ट्रवाद का नाम दे दिया जाता है और जब दूसरी पार्टी आपके ही दिखाएं रास्ते पर चलती है तो वह गद्दार कहला दी जाती है। फिर चाहे वह भाजपा हो,कांग्रेस हो,शिवसेना,जेडीयू,एनसीपी या आरजेडी।

दरअसल,राजनीति में जो  भी सामने दिखता है या बोला जाता है वह कुछ और होता है और जो पर्दे के पीछे खेल खेला जाता है वो काफी जुदा होता है।

वो कहावत है न अगर आप किसी को कनविंस नहीं कर सकते तो आप उसे कंफ्यूज कर दो…।

यही चाल चली है हमारे नए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने। उन्होंने देश के सभी शिवसैनिकों को बालासाहेब के हिंदुत्व का वास्ता देकर अपनी बगावत को सही ठहरा दिया l

भले वो पार्टी में बढ़तेआदित्य ठाकरे के कद से घबरा गए हो या पार्टी में बौना होते अपने वर्चस्व को लेकर l उन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपना फायदा देखा…

और जो सबसे बड़ा काम वो करने जा रहे है…..

जिसे कभी ठाकरे परिवार के राज ठाकरे तक नहीं कर पायें, नारायण राणे से लेकर छगन भुजबल तक नहीं कर पायें वह काम है…

शिवसेना से ठाकरे परिवार का एकाधिकार ख़त्म करना…।

यह तो तय है कि बागी विधायकों के समर्थन के साथ ही वह शिवसेना पर अपना अधिकार जताएंगे l इस चाल से वह शिवसेना को दो गुटों में बाँट देंगे l

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यहाँ जो सबसे बड़ा नुकसान होगा, वह सच में एक हिंदू पार्टी के बिखर जाने का होगा यानी शिवसेना के बिखर जाने का।

न हम शिवसेना के समर्थक है न उसके आलोचक. l

पर संतुलन जरुरी है… राजनीति में अगर संतुलन बिगड़ गया तो पलड़ा एक का भारी हो जाएगा और उसका असर बहुत ही बुरा होगा, इतिहास गवाह है कि जब-जब संतुलन बिगड़ा है उसका खामियाजा सबको भुगतना पड़ा है l

एकनाथ शिंदे की यह बगावत एक नईं राजनीति को जन्म देगी जिसका असर काफी दूरगामी और ख़राब होगा l

  • उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दिया और शिवसेना पर अपना हक़ जताया l 

अपने बाप की विरासत में मिली राजनीति को उद्धव ठाकरे ने बखूबी आगे किया l शिवसेना को न सिर्फ उन्होंने संभाला बल्कि उसे एक नईं ताकत दी l

बालासाहेब की बातों को उनकी दिखाई राह को वह एक कदम आगे ले गए, जितने तीखे और मंजे हुए बालासाहेब थे उतना नहीं पर खामोशी से अपने वजूद को ठाकरे परिवार की विरासत को उद्धव आगे लेकर आये l

सब कुछ ठीक चल रहा था पर उद्धव के एक कदम ने कई लोगों को चौंका दिया l

रातों-रात अपने कद्दावर दुश्मन एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ-मिलाकर महाराष्ट्र की सत्ता पर वह काबिज हो गए। लेकिन ढ़ाई साल तक,कोविड के हालातों से महाराष्ट्र जैसे राज्य को संभालना वह भी दो धुर विरोधी दलों के साथ उनकी राजनीतिक समझ और बुद्धिमता का परिचायक ही है।

जिसे देखकर भाजपा भी कहीं न कहीं घबरा गई,जिसे उम्मीद थी कि ठाकरे परिवार की हठधर्मी उद्धव ठाकरे भी दिखाएंगे और महाविकास आघाड़ी महज छह महीना या सालभर में टूट जाएंगी।

लेकिन हुआ इसका एकदम उल्टा। उद्धव ठाकरे ने विरोधी विचारधारा को भी शालीनता के साथ साथ रखा और कम से कम इस इल्जाम से बच गए कि वह धुर-विरोधियों संग सामंजस्य नहीं बैठा सकते।

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लेकिन इतिहास गवा है कि अक्सर घरों में आग घर के ही चिराग से लगती है। यही कारण है कि उनकी प्रशासनिक सफलता एकनाथ शिंदे से देखी न गई और उन्होंने शिवसेना का भविष्य न सोचते हुए निजी स्वार्थवश शिवसेना की ठाकरे सरकार को आखिरकार गिरा ही दिया। 

यहां यह समझने की जरुरत है कि उद्धव ठाकरे परिवार के वह पहले वंशज है जिन्होंने सत्ता की कमान संभाली। अगर वह ऐसे ही बिना खट-पट के अपने पांच साल पूर कर लेते तो कहीं न कहीं महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा से भी कई गुना बड़ा चेहरा बनकर उभर आते जो भाजपा को कतई गंवारा नहीं है।

वह चाहते है कि एक किंगमेकर सिर्फ किंगमेकर ही रहें किंग कतई न बनें। इसी कारण एकनाथ शिंदे के कंधे पर बंदूक रखकर ठाकरे परिवार का वजूद खत्म करने की कोशिश की गई।

शिंदे ने बड़ी इज्जत के साथ उद्धव के हाथ से शिवसेना पार्टी को लेने की एक सफल कोशिश की l आज जब यह मैं आर्टिकल लिख रहा हूँ तब तक शिवसेना पर किसका अधिकार है यह स्पष्ट नहीं है पर आंकड़ों के हिसाब से इस समय एकनाथ शिंदे का पलड़ा भारी है l पर आगे क्या…?

सबक- राजनीति में किसी पर भरोसा मत करों क्योंकि सत्ता किसी की सगी नहीं होती… भरोसा यानी विश्वास कभी भी स्थायी नहीं होता यह टूटता जरुर है और यह बड़ा ही गहरा घाव करके जाता है l

  • बीजेपी ने एक और राज्य में सत्ता पर कब्जा कर लिया l 

आंकड़ों के खेल में मात खा जाने वाली बीजेपी के लिए यह एक बहुत ही बड़ी जीत है l देश की आर्थिक राजधानी और कुबेर वाले राज्य पर सत्ता का मतलब देश के सबसे ज्यादा टैक्स देने वाले राज्य पर अपना अधिकार होना l

यह सत्ता बीजेपी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थी l बुलेट ट्रेन हो या कई सारे प्रोजेक्ट जो अधर में अटके थे वह अब जल्द से जल्द पूरे करने होंगे, जिससे बीजेपी का जनाधार बढ़ेगा l

अमित शाह और मोदी की जोड़ी का फिर राजनीति में लोहा माना जाएगा l वही महाराष्ट्र में अब वह और मजबूती के साथ दिखाई देगी l

  • कांग्रेस का एक और राज्य की सत्ता से पलायन हो गया l

देश की सबसे पुरानी और लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी कांग्रेस के लिए यह एक बहुत ही बड़ा झटका हैl कांग्रेस इस समय बहुत ही बुरे दौर से गुजर रही है l

उसके हाथ से सत्ता जाना मतलब पार्टी की आर्थिक हालात पर भी फर्क पड़ेगा l

कांग्रेस सहित देश की सभी बड़ी पार्टियों को जो चंदा मिलता है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र से आता है और सत्ता में रहने पर इसका फायदा भी होता है जो शायद अब न हो l

वही पार्टी में जारी असंतोष अब और खुलकर सामने आयेगा l

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  • शरद पवार की पार्टी एनसीपी के हाथ से सत्ता चली गयी l

राजनीति के पंडित और महा धुरंधरों में से एक शरद पवार के लिए भी महाराष्ट्र की सत्ता पर से हटना किसी सदमे से कम नहीं है l

एनसीपी को शिवसेना का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी माना जाता था पर जब से सत्ता में वो साथ आये है तब से वह सरकार में बड़े भाई की भूमिका में रही l

लेकिन इस सत्ता परिवर्तन से शरद पवार की पार्टी को बड़ा झटका लगा है l पर हमारी नजर में उसे इसका फायदा भी मिलेगा l

शिवसेना के कमजोर होने से अब वह उद्धव की शिवसेना के साथ मुंबई की महानगरपालिका पर कब्जा जमा सकती है l

मुंबई महानगरपालिका का बजट  देश के कई राज्यों ही नहीं कई देशों की बजट से भी ज्यादा है और उसपर सत्ता पर कब्जा मतलब किसी भी पार्टी के मालामाल होने जैसा है l

लेकिन यही रणनीति भाजपा की भी है। शिंदे का कद शिवसेना में बड़ा ही इसलिए किया जा रहा है ताकि ठाकरे परिवार के हाथ से बीएमसी का प्रभुत्व छिन्न लिया जाएं और शिवसैनिक वर्ष 2024 के चुनाव में भाजपा के लिए कार्य करें।

चूंकि एकनाथ शिंदे अब भाजपा के एहसानों तले दबे मुख्यमंत्री बन गए है। जिसका परिचय उन्होंने आरे में मेट्रो कार शेड के फैसले पर शिवसेना की लाइन से परे जाकर दे भी दिया है।

अब आगे क्या होगा यह तो आनेवाल वक्त ही बताएगा पर इस सत्ता परिवर्तन का बहुत ही गहरा असर होगा l

  • हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों यानी नेताओं ने एक बार फिर हमें राजनीति कैसे करते है सीखाने की कोशिश की l

इस बगावत और फिर सत्ता परिवर्तन के खेल में जिसकी सबसे बड़ी जीत हुई है वो है हमारे राजनेताओं की।

एक गया तो दूसरा नेता आया l क्या कुछ बदलेगा…? पहले क्या बदला था जो अब बदलेगा… ? जिनकों चुना उसी ने चूना लगाया l न कोई नैतिकता, न कोई लाज, शर्म… बस कुर्सी-कुर्सी और कुर्सी l इसके आगे सब नतमस्तक l

  • शिवसेना का भविष्य, ठाकरे परिवार का शिवसेना पर से एकाधिकार ख़त्मl

हमारी नजर में इस सत्ता परिवर्तन में सबसे बड़ा नुकसान शिवसेना को हुआ है l

ढाई साल पहले जब वह बीजेपी के साथ चुनाव जीतकर आई थी तो बीजेपी की ताकत के आगे उसे अपना वजूद बचाना था।

तब शिवसेना ने सबसे बड़ा और बेहद ही मुश्किल भरा फैसला लेते हुए अपने धुर विरोधी एनसीपी-काग्रेस से हाथ मिलाकर न सिर्फ सत्ता पर कब्जा जमाया बल्कि शिवसेना के वजूद को भी ज़िंदा रखा l

उनके इस कदम से बीजेपी पूरी तरह बौखला गयी l उस पर शिवसेना नेता संजय राउत के भड़काऊं बयान ने आग में घी का काम कियाl

सबसे ज्यादा विधायक होने के बाद भी बीजेपी का सत्ता से दूर रह जाना बीजेपी के लिए एक दुखद स्वप्न बन गयाl

बस उसी पल से बीजेपी ने शिवसेना को सत्ता से बेदखल करने की सोच ली और उसका सपना पूरा हुआ एकनाथ शिंदे की बगावत से।

बीजेपी ने न सिर्फ शिंदे को अपना समर्थन दिया बल्कि उसके साथ सरकार बनाकर शिवसेना को दो टुकड़ों में बाँट दिया l

इस पूरे ऑपरेशन लोट्स की बागडोर संभाली फणनवीस ने।

उन्होंने न सिर्फ एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया बल्कि इस कदम से उसने शिवसेना को ही तोड़ दिया l उद्धव जो बार-बार मेरी शिवसेना, मेरी शिवसेना  कह रहे है उस पर शिंदे ने अपना हक़ जताया है l

शिवसेना किसकी है इसकी लड़ाई शुरू हो गयी है। इसमें अभी पलड़ा शिंदे का भारी लग रहा है, पर उद्धव ठाकरे भी अब चुप नहीं रहने वाले है l

शिवसेना किसकी है यह तो वक्त ही बताएगा पर हमारी नजर में शिवसेना उद्धव ठाकरे की है l

हमने कई शिवसैनिकों से बात की उनसे राय ली सबकी नजर में उद्धव ठाकरे जो बालासाहेब ठाकरे के पुत्र है उनकी ही शिवसेना है l

फिर चाहे अभी हालात उनके पक्ष में नहीं है, पर हवा का रुख बदलते हुए ज्यादा समय नहीं लगता l

शिंदे को अगर शिवसेना पर कब्जा करना है तो शिवसैनिकों के मन से उद्धवठाकरे का वजूद उनका नाम खत्म करना होगा और यह होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है l

लोग शिवसेना को ठाकरे से जोड़कर देखते है l ठाकरे और शिवसेना का चोली दामन का साथ है उसे अलग करना शिंदे के लिए काफी मुश्किल भरा होगा l

कई लोगों ने इसके सपने देखें खुद राज ठाकरे भी यह नहीं कर सके तो शिंदे की औकात ही क्या है, ऐसा हमारा मानना है l

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https://samaydhara.com/india-news-hindi/politics/breakingnews-thackerays-government-in-maharashtra-is-in-crisis-eknath-shinde-along-with-20-mlas-in-surat/amp/

जो भी हो महाराष्ट्र में हिंदुत्व के नाम पर भाजपा को वोटों की काट करने वाली शिवसेना में ही अब दो-फाड़ करके भाजपा ने 2024 के चुनावों के लिए जमीन तैयार कर ली है।

वक्त रहते अगर शिवसेना पर उद्धव ठाकरे का प्रभुत्व कायम नहीं हुआ तो यकीनन इसका खामियाजा शिवसेना को 2024 के लोकसभा चुनावों और हाल के चुनावों में उठाना ही पड़ेगा। 

रास्ते पर खड़ा शिवसैनिक भ्रमा जाएगा कि उसे किसके प्रभुत्व में काम करना है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे या फिर ठाकरे परिवार के उद्धव ठाकरे का।

जिसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा हो ही मिलने वाला है। चूंकि राज्य में वह अकेली ऐसी पार्टी बन जाएगी जो हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोर लेगी।

क्या आप लोगों को भी ऐसा ही लगता है l आप इस पर अपनी राय जरुर दें और हमें बताएं की आप इस राजनीतिक घटनाक्रम को किस तरह से देखते है l

क्या आपको भी लगता है कि उद्धव ठाकरे शिवसेना के सही वारिस नहीं है..?

आप राय हमें कॉमेंट बॉक्स में जरुर दीजिएगा। आप हमें ईमेल (Contact@samaydhara.com) भी कर सकते है। 

Dharmesh Jain

धर्मेश जैन www.samaydhara.com के को-फाउंडर और बिजनेस हेड है। लेखन के प्रति गहन जुनून के चलते उन्होंने समयधारा की नींव रखने में सहायक भूमिका अदा की है। एक और बिजनेसमैन और दूसरी ओर लेखक व कवि का अदम्य मिश्रण धर्मेश जैन के व्यक्तित्व की पहचान है।