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रेप हो या कोई भी अत्याचार, कौन है उसका जिम्मेदार..? आप-मैं या सरकार..??

"अंधेरा खुद ही छंट जाएगा, कुछ चिराग तो रौशन करिए"

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नई दिल्ली,(समयधारा) :  “आज़ाद, तुम ऐसे निकलोगे, मैं सोच भी नहीं सकती थी।”  
प्रिया आज़ाद के साथ चार दोस्तों को देखकर हक्की बक्की थी। रोज़ बस से उतरने के बाद अपने घर का रास्ता वह पैदल ही पार करती थी।
सर्दियों की शुरुआत के दिन थे और उसे वापस आते आते शाम के सात बज जाते थे।
यूँ तो गर्मियों में सात बजे अंधेरा नहीं गहराता लेकिन सर्दियों की शाम 6 बजे ही अंधेरे के साथ साथ सन्नाटा भी हो जाता था।
एक दिन प्रिया को ऑफिस से लौटते समय लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है।
वह एक दुकान के पास रुककर पीछे आ रहे लड़के को देखने लगी, “हाय! मैं आज़ाद, रोज़ इसी रास्ते से आपको आते जाते देखता हूँ।
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मेरा घर आपके घर के पास ही है, अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं कुछ दूर आपके साथ चल सकता हूँ?”
लड़के ने इस शालीनता से पूछा कि प्रिया मना न कर सकी, वैसे भी अकेले उसे आने जाने में कुछ डर लगने लगा था।
ऐसे में कोई कुछ कदम साथ चले तो बुराई ही क्या है।प्रिया एक दो दिन तो आज़ाद के साथ चलते हुए भी सतर्क रही,
लेकिन जल्दी ही आज़ाद ने अपनी बातों से प्रिया का विश्वास जीत लिया। शायद यही प्रिया की ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी,
जिसकी वजह से आज वह आज़ाद के चार साथियों से घिरी हुई थी। वो चीख रही थी,”हट जाओ आज़ाद, तुम बहुत गलत कर रहे हो।
मैंने तुम्हें अपना शुभचिंतक समझा था और तुम मुझसे ही धोखेबाजी कर रहे हो।” प्रिया की चीखों का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था।
वह अपने चारों साथियों के साथ अपनी वहशियाना हरकत को अंजाम दे रहा था और प्रिया चीखों के साथ साथ बोलती जा रही थी,”
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तुम नहीं बचोगे आज़ाद, किसी लड़की के साथ ज़बरदस्ती की गई ऐसी दरिंदगी की सज़ा सिर्फ मौत है।
तुम और तुम्हारे सारे साथी मारे जाएंगे।” प्रिया की चीख पुकार से खीझकर आज़ाद ने उसके मुंह को अपने दोनों हाथों से कसकर भींच दिया।
प्रिया की चीखें उसके गले में ही घुटती रह गईं। उसके साथ घिनौने कृत्य को अंजाम देने के बाद एक साथी ने आज़ाद से कहा,
“गुरु, यह लड़की पहले वाली की तरह नहीं है, जो डरकर चुप बैठ जाएगी।इसका मुंह हमेशा के लिए बंद करना पड़ेगा।
आँखों ही आंखों में चारों ने एक दूसरे को इशारे किए और मुँह के साथ साथ उसका गला भी दबा डाला। वह घुटती रही, छटपटाती रही,
लेकिन उन सब की आंखों में शैतानी चमक थी।वे हवस में इस कदर अंधे हो चुके थे कि
उन्हें पता ही न चला कि जहां पर वे इस वारदात को अंजाम दे रहे थे उससे कुछ ही दूरी पर एक खिड़की खुली थी,
जिससे पीछे से डरी सहमी झांकती हुई दो आँखों ने उस लड़की का गला दबाते हुए उन्हें देखकर पुलिस को सूचित कर दिया था।
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मृतप्राय लड़की को वे ठिकाने लगाने की सोच ही रहे थे कि पुलिस ने उन्हें चारो तरफ से घेर लिया।
लडक़ी को फौरन अस्पताल ले जाया गया जहां काबिल डॉक्टरों के प्रयास से उसे बचा लिया गया।
उन चारों को ऐसी दरिंदगी के लिए फांसी की सज़ा सुनाई गई। सुबह सुबह काला कपड़ा पहने हुए उन्हें फांसी के फंदे की ओर ले जाया जा रहा था।
आज उन्हें कोई दया की भीख नहीं मिलने वाली थी।फंदे की ओर जाते हुए उन सभी के जेहन में गूंज रहा था,
“किसी लड़की के साथ ज़बरदस्ती की गई ऐसी दरिंदगी की सज़ा सिर्फ मौत है। तुम और तुम्हारे सारे साथी मारे जाएंगे।”
दोस्तों, अत्याचार हमारे आसपास ही होते हैं। हमे स्वार्थ से परे हटकर सजग रहना चाहिए
और यथासंभव ऐसे अपराधी को रोकने में अपना योगदान देना चाहिए।
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