shayari – कोई जिस्म पर अटक गया, कोई दिल पर अटक गया…

इश्क़ उसका ही मुक्कमल हुआ, जो रूह तक पहुंच गया...

शायरी - कोई जिस्म पर अटक गया, कोई दिल पर अटक गया, हिंदी न्यूज़

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कोई जिस्म पर अटक गया
कोई दिल पर अटक गया

इश्क़ उसका ही मुक्कमल हुआ
जो रूह तक पहुंच गया…

सोचा था आज
तेरे सिवा कुछ और सोचूं,

अभी तक इस सोच में हूँ,
कि और क्या सोचूं…?

आँगन में होती तो हम गिरा भी देते, साहेब…

कम्बख़्त आदमी ने “दीवार” दिल मे उठा रखी है…

बहुत सी है जगह रहने की यूं तो ,. मगर…

” औक़ात ” में रहने का अपना ही मज़ा है !!

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इश्क न होने के सिर्फ दो तरीके थे…
दिल न बना होता, या तुम ना बनी होती…

दर्द सबके एक है,
मगर हौंसले सबके अलग अलग है,
कोई हताश हो के बिखर गया
तो कोई संघर्ष करके निखर गया !

कारवाँ  ए जिंदगी 

हसरतों के सिवा 

कुछ भी नहीं 

ये किया नहीं, वो हुआ नहीं 

ये मिला नहीं, वो रहा नहीं..

दूरियाँ
तो पहले ही आ चुकी थी ज़माने में ,

कोरोना ने आकर
इल्ज़ाम अपने सर ले लिया 

मँज़िले बड़ी ज़िद्दी होती हैँ ,

हासिल कहाँ नसीब से होती हैं !

मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं ,

जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैँ !

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समयधारा डेस्क: