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Friday thoughts:अक्सर वही लोग उठाते हैं हम पर उँगलियां…

जिनकी हमें छूने की औकात नहीं होती!

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नज़रों से “घमण्ड” का पर्दा भी हटाएगा,

वक़्त ही तुझे तेरी औक़ात दिखाएगा!

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अक्सर वही लोग उठाते हैं हम पर उँगलियां,

जिनकी हमें छूने की औकात नहीं होती!

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मैं हमदर्दी की ख़ैरातों के सिक्के मोड़ देता हूँ,

जिस पर बोझ बन जाउँ, उसे मैं ख़ुद ही छोड़ देता हूँ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अहसास बदल जाते है बस और कुछ नहीं,

वरना मोहब्बत और नफरत एक ही दिल से होती है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दर्द हमेशा अपने ही देते हैं, वरना गैरों को क्या पता,

आपको तकलीफ किस बात से होती हैं!

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Dropadi Kanojiya

द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।