होलाष्टक पर वर्जित काम
Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam
होली 2023(Holi 2023)की आवक होने को है और आज से होली आने में अब महज आठ दिन बचे है। होली से आठ दिन पहले का समय होलाष्टक(Holashtak)के नाम से जाना जाता है। जिसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।
चूंकि इसकी शुरूआत के साथ ही मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।
दरअसल,होलाष्टक(Holashtak 2023)फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि तक रहता है।
होलाष्टक के दौरान शुभ कामों को वर्जित माना जाता(Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam)है।
होलाष्टक यानि होली(Holi)से पहले के वह महत्वपूर्ण आठ दिन जब सभी मांगलिक और शुभ कामों पर रोक लग जाती है। उनकी मनाई होती है।
यह रोक और मनाई होलिका दहन(Holika Dahan)के साथ ही खत्म होती है। इसलिए होलाष्टक का शुरू होना होली(Holi 2023 kab hai)के आगमन की सूचना देता है।
लेकिन ऐसे में आपके मन मे भी सवाल उठ रहा होगा कि आखिर होलाष्टक यानि होली से आठ दिन पहले शुभ कामों पर रोक क्यों लग जा्ती(prohibited-work-before-8-day-holi)है? जबकि होली तो बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार है।
आज हम आपको इसके पौराणिक महत्व के बारे में बताएंगे कि आखिर होलाष्टक कब से कब तक है और होलाष्टक के दौरान शुभ कामों को वर्जित क्यों माना जाता(Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam)है। कौन-कौन से काम है जिन्हें होलाष्टक के दौरान करने की मनाई(Holashtak pe kya kaam na kare)है।
होली से पूर्व के आठ दिन सभी मांगलिक कार्यों जैसेकि विवाह, गृहप्रवेश या नई दुकान खोलना इत्यादि सरीखे शुभ कार्यों को नहीं किया जाता है।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही होलाष्टक की समाप्ति होती(Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam)है।
होलाष्टक का समापन होलिका दहन पर होता है। रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है। होली के त्यौहार की शुरुआत ही होलाष्टक से प्रारम्भ होकर धुलैण्डी(Dhulandi)तक रहती है।
इस समय पर प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत के क्षेत्रों में अधिक मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां कुछ मुख्य कामों का प्रारम्भ होता है।
वहीं कुछ कार्य ऎसे भी काम हैं जो इन आठ दिनों में बिलकुल भी नहीं किए जाते हैं। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है।
तो चलिए बताते है कि हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक,होलाष्टक पर कौन-कौन से काम वर्जित(Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam)है।
होलाष्टक के समय पर हिंदुओं में बताए गए शुभ कार्यों एवं सोलह संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाने का विधान रहा है।
-मान्यता है की इस दिन अगर अंतिम संस्कार भी करना हो, तो उसके लिए पहले शान्ति कार्य किया जाता है।
उसके उपरांत ही बाकी के काम होते हैं। संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना गया है।
-इस समय पर कुछ शुभ मागंलिक कार्य जैसे कि
-विवाह,
-सगाई,
-गर्भाधान संस्कार,
-शिक्षा आरंभ संस्कार,
-कान छेदना,
-नामकरण,
-गृह निर्माण करना या नए अथवा पुराने घर में प्रवेश करने का विचार इस समय पर नहीं करना(Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam)चाहिए।
ज्योतिष अनुसार, इन आठ दिनों में शुभ मुहूर्त का अभाव होता है।
होलाष्टक की अवधि को साधना के कार्य अथवा भक्ति के लिए उपयुक्त माना गया है।
इस समय पर केवल तप करना ही अच्छा कहा जाता है।
ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए किया गया धर्म कर्म अत्यंत शुभ दायी होता है। इस समय पर पूजा, दान और स्नान की भी परंपरा रही है।
होलाष्टक पर शुभ और मांगलिक कार्यों को रोक लगा दी जाती है। इस समय पर मुहूर्त विशेष का काम रुक जाता है। इन आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता(Holashtak-2023-begins-and-end-date-holashtak-pe-varjit-kaam)है।
इस समय पर शुभता की कमी होने के कारण ही मांगलिक आयोजनों को रोक दिया जाता है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दैत्यों के राजा हिरयकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान श्री विष्णु की भक्ति न करने को कहा।
लेकिन प्रह्लाद अपने पिता कि बात को नहीं मानते हुए श्री विष्णु(Lord Vishnu)भगवान की भक्ति करता रहा। इस कारण पुत्र से नाराज होकर राजा हिरयकश्यप ने प्रह्लाद को कई प्रकार से यातनाएं दी।
प्रह्लाद को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक बहुत प्रकार से परेशान किया। उसे मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान किया।
प्रह्लाद को मारने का भी कई बार प्रयास किया गया। प्रह्लाद की भक्ति में इतनी शक्ति थी की भगवान श्री विष्णु ने हर बार उसके प्राणों की रक्षा की।
आठवें दिन यानी की फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को जिम्मा सौंपा।
होलिका को वरदान प्राप्त था की वह अग्नि में नहीं जल सकती।
होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है। मगर भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त को बचा लिया।
उस आग में होलिका जलकर मर गई लेकिन प्रह्लाद को अग्नि छू भी नहीं पायी। इस कारण से होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता हैं और शुभ समय नहीं माना जाता।
होलाष्टक के समय पर जो मुख्य कार्य किए जाते हैं। उनमें से मुख्य हैं होलिका दहन के लिए लकडियों को इकट्ठा करना।
-होलिका पूजन करने के लिये ऎसे स्थान का चयन करना जहां होलिका दहन किया जा सके।
-होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को शुद्ध किया जाता है। उस स्थान पर उपले, लकडी और होली का डंडा स्थापित किया जाता है। इन काम को शुरु करने का दिन ही होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है।
-शहरों में यह परंपरा अधिक दिखाई न देती हो, लेकिन ग्रामिण क्षेत्रों में आज भी स्थान-स्थान पर गांव की चौपाल इत्यादि पर ये कार्य संपन्न होता है।
-गांव में किसी विशेष क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर होली पूजन के स्थान को निश्चित किया जाता है।
-होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक रोज ही उस स्थान पर कुछ लकडियां डाली जाती हैं। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बहुत बड़ा ढ़ेर तैयार किया जाता है।
-शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के समय पर व्रत किया जा सकता है, दान करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है।
-इन दिनों में सामर्थ्य अनुसार वस्त्र, अन्न, धन इत्यादि का दान किया जाना अनुकूल फल देने वाला होता है।
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है।
सर्दियां अलविदा कहने लगती है और गर्मियों का आगमन होने लगता है। साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है।
होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ(Lord Shiva)ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।
इस दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है।
होलाष्टक की एक कथा हरिण्यकश्यपु और प्रह्लाद से संबंध रखती है। होलाष्टक इन्हीं आठ दिनों की एक लम्बी आध्यात्मिक क्रिया का केन्द्र बनता है जो साधक को ज्ञान की परकाष्ठा तक पहुंचाती है।
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