Saturday Thoughts: जुल्म की दास्तान पत्रकार लिखते कम है…

....आजकल खबरें ज्यादा अख़बार बिकते कम है जब जब एक हुई आवाज़ ज़ुल्म के खिलाफ इतिहास गवाह है अत्याचारी टिकते कम है

प्रेरणादायक विचार

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जुल्म की दास्तान पत्रकार लिखते कम है
आजकल खबरें ज्यादा अख़बार बिकते कम है
जब जब एक हुई आवाज़ ज़ुल्म के खिलाफ
इतिहास गवाह है अत्याचारी टिकते कम है
सियासत के ठेकेदारों को ख़बर पहुंचा दो
जुल्म के खिलाफ अब आवाज़ उठेगी
या तो मिटेंगे या अत्याचारयों की कब्र खुदेगी
मिलकर आवाज़ उठाओ तो सही
नजरों से नजरें मिलाओ तो सही
गिरेगी ख़ुद ताश के पत्तों की तरह
इन ज़ुल्म की दीवारों को हिलाओ तो सही

 

कोई औरत न कहलाये कभी बदचलन,
यदि आदमी सुधार ले अपने चाल-चलन।

 

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अगर आप शांत रहकर अपने जवाब का इंतज़ार करते हैं

तो आपका मन ही आपके अधिकतर सवालों का जवाब दे देगा

आज से हम अपने मन की हर शंका को दूर करने के लिए

अपने मन को शांत और स्थिर रखें…

 

 

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Dropadi Kanojiya: द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।