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Sunday Thoughts: जरूरत नही ऐसे रिश्तों की जो नजरअंदाज करे…

...मेरे अपमान को ऐसी भी क्या मोहब्ब्त की मैं खो दूं अपने आत्म सम्मान को

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जरूरत नही ऐसे रिश्तों की
जो नजरअंदाज करे मेरे अपमान को,
ऐसी भी क्या मोहब्ब्त की
मैं खो दूं अपने आत्म सम्मान को

 

 

 

अपमान किया उस माँ का जिसका तिरस्कार त्रिदेव ना कर सके.

क्या जीके करना ओ इन्सान,

जो इन्सान के रूप में भगवान को पहचान न सके

 

 

 

 

किरदार की अजमत को

गिरने न दिया हमने 

धोखे तो बहुत खाएं 

धोखा न दिया हमने 

 

 

 

अपमान करके दान देना, विलंब से देना, मुख फेर के देना,

कठोर वचन बोलना और देने के बाद पश्चाताप करना- ये पांच क्रियाएं दान को दूषित कर देती हैं।

 

 

 

 

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Dropadi Kanojiya

द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।