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Sunday Thoughts:कौन कहता है कि, नेचर और सिग्नेचर कभी बदलता नहीं…

बस एक चोट की ज़रूरत है, अगर ऊँगली पर लगी तो सिग्नेचर बदल जाता है, और दिल पर लगी तो नेचर बदल जाता है।

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कौन कहता है कि,
नेचर और सिग्नेचर कभी बदलता नहीं,
बस एक चोट की ज़रूरत है,
अगर ऊँगली पर लगी तो सिग्नेचर बदल जाता है,
और दिल पर लगी तो नेचर बदल जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शोर मचाने से सुर्खियां नहीं मिलती,

कर्म ऐसे करो कि खामोशी भी अखबारों में छप जाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मनुष्य का असली चरित्र
तब सामने आता है,
जब वो नशे में होता है।
फिर नशा चाहे धन का हो,
पद का हो, रूप का हो या शराब का।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

वृक्ष कभी इस बात पर व्यथित नहीं होता कि
उसने कितने पुष्प खो दिए;
वह सदैव नए फूलों के सृजन में व्यस्त रहता है।
जीवन में कितना कुछ खो गया,
इस पीड़ा को भूल कर, क्या नया कर सकते हैं,
इसी में जीवन की सार्थकता है ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Dropadi Kanojiya

द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।