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Tuesday Thoughts – उम्र है… चालाकी की चार दिन, ईमानदारी की उम्र भर

थक कर ही बैठा हूँ, हार कर नहीं…सिर्फ बाजी हाथ से निकली है, जिन्दगी नहीं।

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“उम्र है”

चालाकी की चार दिन

ईमानदारी की उम्र भर

थक कर ही बैठा हूँ, हार कर नहीं…

सिर्फ बाजी हाथ से निकली है, जिन्दगी नहीं।

 

 

 

 

 

वो लोग अक्सर सब के लिए हाजिर रहते है,

जिन्हें पता है की अकेलापन क्या होता है

 

 

 

 

 

 

ज़िन्दगी के सफ़र में ऐसा अकसर होता है,

मुश्किल फैसला ही हमेशा बेहतर होता है।

 

 

 

 

सफ़ल होने की तमन्ना मुझ में भी है,

मगर गलत रास्तों से होकर जाऊं, इतनी भी जल्दी नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

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Dropadi Kanojiya

द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।