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सुविचार-‘है’ को स्वीकारों ‘थे’ वाले तो कभी थे ही नहीं

क्या सदा मौन रहना उचित है, नहीं इतिहास साक्षी है, संसार में अधिक विपदाएं इसलिए आई...

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है को स्वीकारों

थे वाले तो कभी थे ही नहीं

 

क्या सदा मौन रहना उचित है,
नहीं इतिहास साक्षी है,
संसार में अधिक विपदाएं इसलिए आई
क्योंकि समय पड़ने पर मनुष्य उसका विरोध नहीं कर पाया। 

 

 

 

 

 

एक बार माफ़ करके अच्छे बन जाओ,
पर दोबारा उसी इन्सान पर भरोसा करके बेवकूफ़ कभी न बनो। 

 

 

 

 

 

 

 

हर किसी के अंदर अपनी ताकत
और अपनी कमज़ोरी होती है,
मछली जंगल में नहीं दौड़ सकती
और शेर पानी में राजा नही बन सकता,
इसलिए अहमियत सभी को देनी चाहिए।

 

 

 

 

 

 

औकात तब पता चलती है, 
जब उसे वहाँ से धोखा मिलता है,
जहाँ उसे वफा की सबसे ज्यादा उम्मीद होती है।

 

 

 

 

 

 

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समयधारा डेस्क