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जानें खौफ की दूसरा नाम-बाहुबली-डॉन व 5 बार के विधायक ​मुख्तार अंसारी की पूरी कहानी

अर्श से फर्श तक, जैसी करनी वैसी भरनी न जानें कितनी कहावतों का दूसरा नाम मुख्तार अंसारी की मौत के बाद जाने उसकी जीवनी के बारें में सब कुछ

Mukhtar Ansari Story  Name-of-Fear Bahubali Don 5-Time MLA 

नयी दिल्ली/उत्तर प्रदेश (समयधारा) : अर्श से फर्श तक, जैसी करनी वैसी भरनी सहित, 

न जानें कितनी कहावतों का दूसरा नाम मुख्तार अंसारी की मौत,  जाने उसकी जीवनी के बारें में सब कुछ l 

मुख्तार अंसारी  कभी जुर्म की दुनिया का शहंशाह रहा और फिर जब  राजनीति में आए तो ऐसा खेल खेला कि बड़े बड़ों को मात दे दी।

उत्तर प्रदेश गवाह रहा है कई ऐसे बाहुबली नेताओं का जिनका नाता जितना राजनीति से है उतना ही अपराध से भी है।

ये बात दूसरी है कि अपराध साबित हुआ या नहीं, वो जेल में हैं या बाहर लेकिन ऐसे नेताओं पर हत्या, लूटपाट, किडनैपिंग जैसे बड़े-बड़े आरोप लगते ही रहे हैं।

हम बात कर रहे हैं मुख्तार अंसारी की, जो अब इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं।

बांदा जेल में तबीयत बिगड़ने के बाद उनको मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

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पहले बात करते है मुख्तार अंसारी के व्यक्तित्व की – लंबा चौड़ा कद, रौबीली मूंछें, दमदार आवाज़, उत्तर प्रदेश के इस बाहुबली नेता को राजनीति में कौन नहीं जानता।

उत्तर प्रदेश मऊ से लगातार 5 बार विधानसभा सीट जीत चुके बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी किसी न किसी खबर का हिस्सा अक्सर होते ही हैं।

वो जेल में रहे या जेल से बाहर, वक्त-वक्त पर इस बाहुलबी नेता की खबरें सुर्खियां बंटोर ही लेती हैं।

पिछले 13 सालों से जेल में बंद मुख्तार अंसारी पर 40 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं।

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पिछले एक साल से उत्तरप्रदेश की बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी को लेकर खबरें तो आपने कई देखी होंगी

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लेकिन आज हम इस सीरीज में आपको इस बाहुबली के उन पहलुओं से रुबरू करवांगे जो उनके राजनैतिक करियर से तो जुड़े ही होंगे,

साथ ही उनकी पर्सनल ज़िंदगी से भी ताल्लुक रखते हैं। हम आपको बताएंगे जुर्म की दुनिया के इस बेताज़ बादशाह को क्या है पसंद और क्या ना पसंद।

कैसे बीता इस बाहुबली का बचपन और कैसे मुख्तार अंसारी ने रखा अपराध की दुनिया में पहला कदम।

मुख्तार अंसारी जो बेशक पूर्वांचल के माफिया डॉन के नाम से भी जाने जाते हो लेकिन उनका परिवार का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है।

मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में बेहद सम्मानित परिवार में हुआ।

मुख्तार अंसारी के दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे।

वे 1926-1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग अध्यक्ष भी रहे।

डॉक्टर अंसारी गांधी जी से बेहद प्रभावित थे और गांधी जी के काफी करीबी भी माने जाते थे।

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डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी के नाम पर दिल्ली में एक सड़क का नाम भी रखा गया था।

मुख्तार अंसारी का परिवार पूर्वांचल में हमेशा से सिर्फ बड़ा रुतबा ही नहीं रखता आया बल्कि जनता के बीच उनका खासा सम्मान भी रहा है।

मुख्तार अंसारी के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी बड़े कम्युनिस्ट नेता थे और अपने परिवार की विरासत को उन्होंने खूससूरती के साथ आगे बढ़ाया।

आप हैरान रह जाएंगे जब आप ये जानेंगे कि एक और बेहद सम्मानित नाम मुख्तार अंसारी के साथ जुड़ा हुआ है।

जी हां भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा लगते हैं।

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अगर बात करे मुख्तार अंसारी के ननिहाल की तो वो भी काफी ऊंचा और इज्जतदार घराना माना जाता था।

मुख्तार अंसारी के नाना बिग्रेडियर उस्मान आर्मी में थे और उन्हें उनकी वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

बिग्रेडियर उस्मान ने 1947 की जंग में भारत को नवशेरा में जीत दिलाई थी।

वो इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए थे और उनकी शहादत के बाद ही उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

अब आप सोच रहे होंगे कि इतने गौरवशाली परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद क्यों मुख्तार अंसारी जुर्म की दुनिया में पहुंच गए।

क्या वजह थी कि एक स्वतंत्रता सेनानी का पोता, एक बेहद सम्मानित आर्मी ऑफिसर का नाती का नाम हमेशा जुर्म के काली किताब में दर्ज रहा।

आखिर ऐसी क्या वजह थी कि इतने बड़े परिवार से आने के बावजूद मुख्तार अंसारी ने चुना माफिया डॉन बनना।

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मुख्तार अंसारी का बचपन भी बेहद अच्छे माहौल में बीता। उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई युसुफपुर गांव में पुरी की।

उसके बाद उन्होंने गाजीपुर कॉलेज से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी की।

स्कूल और कॉलेज के दौरान वो अक्सर खेलों में हिस्सा लेते रहे। कहते हैं मुख्तार अंसारी को क्रिकेट और फुटबाल में खासी दिलचस्पी है।

1989 में अफशा अंसारी से मुख्तार की शादी हुई। दोनों के दो बेटे हैं।

मुख्तार अंसारी के बड़े बेटे राजनीति में ही जबकी छोटे बेटे अब्बास अंसारी शॉट गन शूटिंग के इंटरनेशनल प्लेयर हैं और कई बार उन्होंने पदक हासिल कर देश का नाम रौशन किया है।

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इतने पढ़े लिखे और इतने इज्जतदार परिवारे से होने के बावजूद मुख्तार अंसारी ने खुद के लिए अपराध की दुनिया को चुना।

1988 में पहली बार उनका नाम किसी आपराधिक मामले से जुड़ा। 1988 में ही मुख्तार अंसारी का नाम एक हत्या के मामले में सामने आया।

मुख्तार अंसारी पर मंडी परिषद के ठेके के मामले में एक लोकल ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या के आरोप लगे।

इतना ही नहीं इसी दौरान पुलिस से बचते हुए एक कॉंस्टेबल की हत्या के आरोप भी मुख्तार अंसारी पर लगे लेकिन पुलिस को उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला।

इसके बाद तो जैसे आए दिन मुख्तार अंसारी के अपराध से जुड़ने की खबरे आने लगी।

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पूर्वांचल अपराधियों का गढ़ माना जाता है और नब्बे के दशक में इस फेहरिस्त में मुख्तार अंसारी का नाम भी शामिल हो गया।

उन दिनों ये इलाका दो गैंग में बंट गया था। एक था मुख्तार अंसारी का गैंग और दूसरा ब्रजेश सिंह का गैंग।

ब्रजेश सिंह को एक और माफिया त्रिभुवन सिंह का भी साथ मिल रहा था। ब्रजेश सिहं और त्रिभुवन सिंह मुख्तार अंसारी के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके थे।

जमीनी ठेकों को लेकर अक्सर दोनो के गैंग में कई सालों तक खूनी खेल चलता रहा। 2001 में ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर जानलेवा हमला भी किया था।

बाद में इस मामले ब्रजेश सिंह को 12 साल तक जेल में रहना पड़ा। इस मामले में इसी साल ब्रजेश को जेल से सशर्त जमानत देकर रिहा किया गया है.

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गाजीपुर, मऊ, बनारस इनसभी इलाकों में मुख्तार ने अपना दबदबा कायम कर लिया। कुछ ही सालों में उनका गैंग काफी मजबूत हो गया था।

कहा जाता है कि एक तरफ मुख्तार अंसारी अंडरग्राउंड होकर अवैधानिक कामों से जबरदस्त पैसा बना रहे थे।

जमीन कब्जा, शराब के ठेके, रेलवे ठेकेदारी, खनन जैसे कई अवैधानिक कामों में उनका कब्जा बढ़ रहा तो वहीं दूसरी तरफ वो आम जनता की मदद करके अपनी छवि सुधारने का भी काम कर रहे थे।

मुख्तार अंसारी ने राजनीति में आने का मन बना लिया था।

अंसारी परिवार पूर्वांचल में अच्छा खासा रुतबा रखता ही था और साथ ही मुख्तार अंसारी ने भी गरीब लोगों के बीच अपनी छवि रॉबिन हुड वाली बना ली थी और इसलिए 1996 में बहुजन समाज पार्टी की तरफ से मऊ सीट से मुख्तार अंसारी ने विधानसभा चुनाव लड़ा।

अंसारी ने इस चुनाव में जीत दर्ज की और इस तरफ पूर्वांचल का ये भू माफिया अपराध की दुनिया से राजनीति में प्रवेश कर चुका था।

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मुख्तार अंसारी हर बार मऊ सीट से ही चुनाव लड़ते रहे और यहां से पांच बार लगातार विधायक भी चुने गए।

2002 और 2007 में मुख्तार अंसारी ने मऊ से ही निर्दलयी चुनाव लड़ा और उसमें भी जीत हासिल की।

विधानसभा की सीट वो जीत ही रहे थे 2009 में बीएसपी से ही मुख्तार ने लोकसभा वाराणसी सीट पर अपनी किस्मत अजमाने की सोची लेकिन इस बार किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वो अपना पहला लोकसभा चुनाव हार गए।

2012 में मुख्तार अंसारी ने कौमी एकता दल के नाम से एक नई पार्टी बनाई और इसी पार्टी से उन्होंने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की।

2017 में एक बार फिर मुख्तार अंसारी ने बीएसपी का रुख किया और मऊ से फिर विधायक चुने गए।

1996 में बेशक मुख्तार अंसारी राजनीति में आ गए लेकिन अपराध से उन्होंने नाता नहीं तोड़ा।

मुख्तार पर अंसारी पर राजनीति में आने के बाद भी कई मामले दर्ज होते रहे। 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद की हत्या के आरोप जब मुख्तार अंसारी पर लगे तो ये मामला काफी ज्यादा सुर्खियों में रहा।

दरअसल ये किस्सा शुरू हुआ मुहम्मदाबाद सीट से। ये सीट 1985 से अंसारी परिवार के पास रही है और उस वक्त मुख्तार अंसारी के भाई अफजल अंसारी इससे चुनाव लड़ रहे थे।

2002 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने अफजल अंसारी को यहां से चुनाव में मात दी।

कहते हैं ये बात मुख्तार अंसारी को नागवार गुजरी और कृष्णानंद राय, मुख्तार अंसारी के निशाने पर आए गए।

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2005 में मऊ में हिंसा भड़की और हिंसा भड़काने के आरोप लगे मुख्तार अंसारी पर।

मुख्तार अंसारी ने इस मामले में गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया।

मुख्तार अंसारी जेल में थे लेकिन बाहर एक ऐसा खेल खेला गया जिसका आरोप लगा मुख्तार अंसारी पर।

29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद अपने काफिले के साथ गाजीपुर से एक क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन करके लौट रहे थे।

तभी उनके काफिले पर एके 47 से हमला कर दिया गया। कृष्णानंद समेत पांच लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया गया और उनकी मौत हो गई।

इस हत्याकांड का आरोप लगा मुख्तार अंसारी पर। कहा जाता है कि जेल में रहकर ही मुख्तार अंसारी ने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी और अतीक उर रहमान की मदद से कृष्णानंद की हत्या करवाई।

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मुख्तार अंसारी 2005 के बाद से ही अलग अलग जेलों में बंद हैं। पहले उन्हें गाजीपुर जेल में रखा गया,

उसके बाद मथुरा, आगरा, बांदा, कई जेलों में सालों से वो बंद हैं, लेकिन बावजूद इसके पूर्वांचल में उनका दबदबा कायम रहा अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर वो कुछ समय तक पंजाब की रोपड़ जेल में भी रहे।

रोपड़ जेल में तो मुख्तार अंसारी को वीआईपी ट्रीटमेंट देने की खबरें भी सामने आईं थीं। कहा जा रहा था कि खुद कई जेल अधिकारी मुख्तार अंसारी की तीमारदारी में लगे हुए थे।

हालांकि बाद में एक बार फिर उन्हें बांदा जेल में ही भेज दिया गया। मुख्तार जिस भी जेल में रहे राजनीति की विसात वहीं से बिछाते रहे।

वो जेल से ही पूर्वांचल की राजनीति में अपना खेल खेलते रहे। अपने बेटे और भाई दोनों को सीट दिलवाने में मुख्तार अंसारी का ही हाथ है। हालांकि पिछले कुछ सालों में जब से बीजेपी की सरकार आई मुख्तार अंसारी की मुसीबतें बढ़ती नज़र आईं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्तार अंसारी और उनके पूरे गैंग पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है।

उनकी करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति को जब्त कर लिया गया है जबकी इस गैंग के कई गुर्गे अलग-अलग आरोपों में जेल में बंद हैं।

मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी और बहनोई एजाजुल की अवैध संपत्ति को भी जब्त किया गया।

अफजल अंसारी और एजाजुल पर भी 2007 में ही कृष्णानंद हत्याकांड में गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था। 

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(इनपुट NBT से, यह लेख सिर्फ और सिर्फ लोगों की जानकारी को बढ़ाने के माध्यम से लिया गया है, NBT के इस सहयोग के लिए हम उनके आभारी है.)

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