नवरात्रि स्पेशल : जानियें नवरात्र के 5वें, 6वें और 7वें दिन का महत्व
Navratri special :5th-6th-7th-days-worship-maa-skandamata-maa-katyayni-maa-kaalratri
नवरात्रि के पवन अवसर पर समयधारा लाया है आपके लिए माँ के एक नहीं दो नहीं पूरे तीन दिन(5,6,7) की विस्तृत जानकारी l
माँ की पूजा क्यों की जाती है? इनकी पूजा अर्चना करने से माँ कैसे प्रसन्न होगी ?
और माँ के आशीर्वाद से हम कैसे भव पार तर जायेंगे l हिन्दू धर्म में नवरात्र का अलग ही महत्व होता है
और माँ को प्रसन्न करने की गुप्त पूजा भी होती है l
इसी गुप्त पूजा व कई तरह की पूजा से माँ को प्रसन्न कर हम अपना मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते है l
सिद्धियों को देवी माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप का अपना अलग ही महत्व है l
आज हम आपको माँ के पाचवें-छठे व सातवें स्वरूप के बारे में बताएँगे l
माँ का पाचंवा स्वरूप : माँ स्कंदमाता
कहते है मोक्ष को पाने का सबसे सरल उपाय है l नवरात्र में माँ स्कंदमाता का ध्यान करना l
दुनिया की सारी मोह माया से हमें मोक्ष की तरफ ले जाती है माँ स्कंदमाता l
माँ अम्बे के पांचवे स्वरुप को स्कंदमाता के स्वरूप में पूजा जाता है l भगवती दुर्गा के इस पाचवें स्वरूप को पूजने से सारे कष्ट मिट जाते है
और सारे पाप धुल जाते है l देवी स्कंदमाता के इस पाचवे स्वरुप में माँ हमें आशीर्वाद के रूप में मोक्ष देती है l
माँ की आराधना करने के लिए इस मंत्र का पाठ करना चाहियें l
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस देवी को साउथ इंडिया में भी काफी पूजा जाता है l इसे कार्तिकेय भगवान की माता कहा जाता है l
माँ का छठा स्वरूप : माँ कात्यायनी
भय का नाश करती हैं मां कात्यायनी l
नवरात्रि के षष्ठी तिथि पर आदिशक्ति दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा करने का विधान है।
महर्षि कात्यायनी की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रृति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं।
वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
नवरात्र की षष्ठी तिथि यानी छठे दिन माता दुर्गा को शहद का भोग लगाएं ।
इससे धन लाभ होने के योग बनने हैं ।
माँ का सातवाँ सवरूप : देवी ‘कालरात्री
संसार में कालों का नाश करने वाली देवी ‘कालरात्री’ ही है. कहते हैं इनकी पूजा करने से सभी दु:ख, तकलीफ दूर हो जाती हैl
दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल देती हैंl यह संसार के सभी कालों को हर लेती है l अगर कोई विपदा आने वाली है l
तो इस देवी का ध्यान तन मन धन से करे तुरंत इच्छा पूर्ण होती है l दुखों का नाश करने वाली माँ कालरात्रि की माया व
इनका तेज एक अलग ही रूप का हमें अवलोकन करवाता है l इनका ध्यान मात्र ही दुखों से हमें छुटकारा दिलाता है l
देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला हैl इनके बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में विधुत की माला हैl इनके चार हाथ है l
जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है l इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है l
इनके तीन नेत्र है और इनके श्वास से अग्नि निकलती है l कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है l
मां दुर्गा के सातवें रूप या शक्ति को कालरात्रि कहा जाता है, दुर्गा-पूजा के सातवें दिन मां काल रात्रि की उपासना का विधान हैl
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है l इनका वर्ण अंधकार की तरह काला है l
केश बिखरे हुए हैं l कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है l मां कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल और गोल हैं l
जिनमें से बिजली की तरह किरणें निकलती रहती हैं l
माता कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥