शायर की शायरी : जला हुआ जंगल.. छिप कर रोता रहा..
लकड़ी उसी की थी उस माचिस की तीली में... : शायरियां
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जला हुआ जंगल
छिप कर रोता रहा…..
लकड़ी उसी की थी
उस माचिस की तीली में……
मँज़िले बड़ी ज़िद्दी होती हैँ ,
हासिल कहाँ नसीब से होती हैं !
मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं ,
जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैँ !
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