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Alert..! टेक्नोलॉजी हेल्थ के लिए नया खतरा..! हो जाएँ सावधान

क्या आपको पता है की नई टेक्नोलॉजी आपके हेल्थ के लिए खतरा है...? यह हमारे वायुमंडल में प्रदूषण के खतरें को और ख़राब कर सकती है.

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नई दिल्ली,(समयधारा) : कोरोना काल के दौरान सभी लोगों ने टेक्नोलॉजी का खूब इस्तेमाल किया l

सिर्फ टेक्नोलॉजी ने ही हम सब को एक दूसरे से जोड़ कर रखा l 

क्या आपको पता है की नई टेक्नोलॉजी आपके हेल्थ के लिए खतरा है…?

यह हमारे वायुमंडल में प्रदूषण के खतरें को और ख़राब कर सकती है l  

बेहतरीन प्रौद्योगिकी प्रदूषण के संकट को खत्म नहीं कर सकती,

बल्कि यह ज्यादा महीन कणों की निगरानी कर सकेगी, जो स्वास्थ्य के लिए नया खतरा होंगे। 

पर्यावरण व स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में हवा में पीएम10 व पीएम2.5 या 10 व 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले कणों का प्रवाह है,

जो प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं के कारक हैं। इससे तेज प्रवाह वाले जैसे पीएम1 अगला खतरा हो सकते हैं।

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सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) के परियोजना निदेशक गुफरान बेग ने हमारे सहयोगी चैनल से कहा,

“अत्यधिक महीन कण ज्यादा खतरनाक होते हैं, लेकिन वर्तमान में इस पर विचार नहीं हो रहा है।

साक्ष्यों की कमी के कारण हमारे पास पीएम1 के मानक नहीं हैं। इसे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक माना जाता है।”

उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ वर्षो में महीन कणों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

वाहनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए भारत स्टैंडर्ड-6(यूरो-6 के समतुल्य) के अनुरूप स्वच्छ परिवहन

ईंधन को देश भर में अप्रैल 2020 में लागू करने की उम्मीद है, और इसे दिल्ली में अप्रैल 2018 तक लागू किया जाना है।

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यूरोपीय संघ द्वारा आयोजित एक चर्चा से इतर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने हमारे सहयोगी चैनल से कहा,

“कोई प्रौद्योगिकी सुधरती है तो दूसरी समस्याएं भी पैदा करती है। बीएस-6 व इसके आगे के कण महीन होंगे।”

हालांकि, उन्होंने कहा, “हमें पीएम2.5 के प्रभाव के बारे में कोई संदेह नहीं है, जबकि पीएम1 के मौजूदा समय में कोई साक्ष्य नहीं हैं।”

गौरतलब है कि पीएम2.5 को मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है।

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक अध्ययन में सितंबर 2017 में कहा गया था

कि लंबे समय तक पीएम2.5 के संपर्क में रहने पर सीधे तौर पर जीवन प्रत्याशा पर असर पड़ता है

और एक भारतीय की औसत आयु में चार साल की कमी हो रही है।

अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली के लोग नौ साल ज्यादा जी सकते हैं, यदि प्रदूषक कणों का मानक पूरा होता है।

(इनपुट समयधारा के पुराने पन्नों से)

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