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Pitru Paksha 2021:जानें कब से शुरू हो रहे है पितृ पक्ष?क्या है श्राद्ध की प्रमुख तिथियां

श्राद्ध कर्मकांड को महालय या पितृपक्ष के नाम से भी पुकारा जाता है। हिंदू धर्मानुसार, श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति श्रद्धा भाव। हमारे भीतर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध(shradh)कर्म किये जाते हैं।

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नई दिल्ली:हिन्दू धर्म में पितृपक्ष(pitru-paksha)का विशेष महत्व है। लोग इन खास दिनों में अपने पूर्वजों को याद करके उनकी आत्मा की शांति के लिए और अपने द्वारा की गई गलतियों के लिए श्राद्ध पूजा करते है।

उनके नाम पर दान धर्म करते है। पितृपक्ष का आरंभ हमेशा भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से होता है। यह सोलह दिवसीय होते है।

इस वर्ष पितृपक्ष की श्राद्ध तिथि का आरंभ 20 सितंबर(pitru-paksha-2021-date),दिन सोमवार से हो रहा है और इनका अंत अश्विन माह की अमावस्या को अर्थात 6 अक्टूबर,दिन बुधवार को होगा।

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श्राद्ध कर्मकांड को महालय या पितृपक्ष के नाम से भी पुकारा जाता है। हिंदू धर्मानुसार, श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति श्रद्धा भाव।

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हमारे भीतर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध(shradh)कर्म किये जाते हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो,पिता के जिस शुक्राणु के साथ जीव माता के गर्भ में जाता है, उसमें 84 अंश होते हैं, जिनमें से 28 अंश तो शुक्रधारी पुरुष के खुद के भोजनादि से उपार्जित होते हैं और 56 अंश पूर्व पुरुषों के रहते हैं।

उनमें से भी 21 उसके पिता के, 15 अंश पितामह के, 10 अंश प्रपितामाह के, 6 अंश चतुर्थ पुरुष के, 3 पंचम पुरुष के और एक षष्ठ पुरुष के होते हैं।

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इस तरह सात पीढ़ियों तक वंश के सभी पूर्वज़ों के रक्त की एकता रहती है, लिहाजा श्राद्ध या पिंडदान मुख्यतः तीन पीढ़ियों तक के पितरों को दिया जाता है।

पितृपक्ष में किये गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

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जानें क्या है श्राद्ध?

श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण विधि-विधान से किया जाता है। श्राद्ध में हम पूर्वजों के लिए जो दान करते है,वहीं श्राद्ध कहलाता है। इसमें पितरों की मुक्ति के लिए कर्म किये जाते है और अपनी जानी-अनजानी गलतियों के लिए उनसे माफी मांगी जाती है।

शास्त्रों के अनुसार जिनका देहांत हो चुका है और वे सभी इन दिनों में अपने सूक्ष्म रूप के साथ धरती पर आते हैं और अपने परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं।

श्राद्ध के बारे में हरवंश पुराण में बताया गया है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध करने वाला व्यक्ति दोनों लोकों में सुख प्राप्त करता है।

श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितर धर्म को चाहने वालों को धर्म, संतान को चाहने वाले को संतान, कल्याण चाहने वाले को कल्याण जैसे इच्छानुसार वरदान देते हैं।

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इस दिन से शुरू हो रहे पितृ पक्ष के श्राद्धkab-se-shuru-hai shradh

पितृ पक्ष 20 सितंबर 2021 से प्रारंभ हो रहे हैं और यह 6 अक्टूबर को अमावस्या तिथि के साथ समाप्त होंगे।

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श्राद्ध की तिथियां-Pitru-Paksha-2021-shradh-dates 

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पहला श्राद्ध: पूर्णिमा श्राद्ध: 20 सितंबर  2021 , सोमवार

दूसरे श्राद्ध: प्रतिपदा श्राद्ध: 21 सितंबर 2021, मंगलवार

तीसरे श्राद्ध: द्वितीय श्राद्ध: 22 सितंबर  2021, बुधवार

तृतीया श्राद्ध: 23 सितंबर 2021, गुरूवार

चतुर्थी श्राद्ध: 24 सितंबर  2021, शुक्रवार

महाभरणी श्राद्ध: 24 सितंबर 2021 , शुक्रवार

पंचमी श्राद्ध: 25 सितंबर  2021, शनिवार

षष्ठी श्राद्ध: 27 सितंबर  2021, सोमवार

सप्तमी श्राद्ध: 28 सितंबर 2021, मंगलवार

अष्टमी श्राद्ध: 29 सितंबर 2021, बुधवार

नवमी श्राद्ध (मातृनवमी): 30 सितंबर  2021, गुरुवार

दशमी श्राद्ध: 01 अक्टूबर  2021,शुक्रवार

एकादशी श्राद्ध: 02 अक्टूबर  2021, शनिवार

द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णवजनों का श्राद्ध: 03 अक्टूबर 2021 त्रयोदशी श्राद्ध: 04 अक्टूबर  2021, रविवार

चतुर्दशी श्राद्ध: 05 अक्टूबर 2021, सोमवार

अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि पितृ श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या समापन- 06 अक्टूबर 2021, मंगलवार

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पितृ पक्ष की पौराणिक कथा-pitru-paksha story

कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में कर्ण का निधन हो गया था और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें रोजाना खाने की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए।

इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा। तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को नहीं दिया।

तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। तब से इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।

 

 

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