Trump की वापसी, बाइडन के फैसलें फुस्स, WHO से बाहर, जानें विस्तार से INDIA पर इसका प्रभाव

America के 47वें राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने जोरदार चौकें सहित ताकतवर छक्कें मारने शुरू कर दिए l  उन्होंने अपने दमदार फैसलों से एक बार फिर अपनी 5 साल की लंबी मजबूत पारी की मजबूत शुरुआत कर दी.

बाजार पर डबल अटैक,निफ्टी-सेंसेक्स में भारी गिरावट, #stockmarketupdates

DonaldTrump WHO Exit Biden’s Policies Reversed India’s New Strategic Challenges

अमेरिका/नईं दिल्ली (समयधारा) : डोनाल्ड ट्रंप फिर से बने अमेरिका के राष्ट्रपति, बाइडन के निर्णयों को पलटा, WHO से बाहर निकला अमेरिका, जानें इस आर्टिकल में भारत पर इसका प्रभाव l 

डोनाल्ड ट्रंप (#DonaldTrump) ने 47वें राष्ट्रपति पद की वही दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली l उन्होंने शपथ लेते ही कड़े फैसले लेना शुरू कर दिया है।

America के 47वें राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने जोरदार चौकें सहित ताकतवर छक्कें मारने शुरू कर दिए l  उन्होंने अपने दमदार फैसलों से एक बार फिर अपनी 5 साल की लंबी मजबूत पारी की मजबूत शुरुआत कर दी l

#Trump ने आते ही कई अहम मुद्दों पर हस्तारक्षर कर दिए हैँ। जिसे देखकर पूरी दुनिया हैरान है।

ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण के कुछ ही घंटों बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (#WorldHealthOrgnization-#WHO) से अमेरिका के बाहर निकलने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। 

#Thoughts: आपकी सबसे बड़ी ताकत आपकी सोच है.

उन्होंने अमेरिका में थर्ड जेंडर को अमान्य घोषित कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया है कि अमेरिका में ड्रग्स तश्कर आतंकी घोषित होंगे।

अवैध अप्रवासियों को बाहर किया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने मेक्सिको बॉर्डर पर नेशनल इमरजेंसी लगाने का ऐलान कर दिया है।

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अमेरिका के राजनीति में एक नया मोड़ आया है जब डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से राष्ट्रपति पद की शपथ ली और बाइडन प्रशासन के द्वारा किए गए कई महत्वपूर्ण निर्णयों को पलट दिया।

ट्रंप के प्रशासन ने अपने पहले कार्यकाल में कई विवादित निर्णय लिए थे, और अब उनके दूसरे कार्यकाल में भी उन्होंने कुछ ऐसी नीतियों को फिर से लागू किया है, जिन्हें बाइडन प्रशासन ने बदल दिया था।

इनमें से एक महत्वपूर्ण निर्णय था, अमेरिकी निकासी से संबंधित, जो डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में हुए थे और जिन्हें बाइडन प्रशासन ने फिर से बहाल किया था।

सबसे अहम बात यह है कि ट्रंप ने फिर से एक बड़ा कदम उठाया और अमेरिका को WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) से बाहर कर दिया।

यह कदम ट्रंप की विदेश नीति का हिस्सा था, जो उन्होंने पहले भी अपने पहले कार्यकाल में उठाया था।

इस आर्टिकल में हम डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के पहले निर्णयों का विश्लेषण करेंगे और यह देखेंगे कि उनका राष्ट्रपति बनने का असर अमेरिका और दुनिया पर कैसे पड़ सकता है।

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1. ट्रंप की वापसी-अमेरिका के लिए क्या मतलब है?

डोनाल्ड ट्रंप की वापसी अमेरिका के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है। 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद, ट्रंप ने एक नई तरह की राजनीति पेश की थी, जिसने अमेरिका के भीतर और बाहर विवादों को जन्म दिया था।

उनके पहले कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई अप्रत्याशित कदम उठाए थे, जिनमें से कुछ ने अमेरिकी राजनीति को नया रूप दिया और कुछ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की स्थिति को कमजोर किया।

अब, जब ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बने हैं, तो उनकी वापसी ने अमेरिका के आंतरिक और बाहरी राजनीति में हलचल मचा दी है।

ट्रंप की नीतियाँ अक्सर ‘अमेरिका पहले’ के सिद्धांत पर आधारित होती हैं, जिसमें वह देश के राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि मानते हैं।

उनके पहले कार्यकाल में किए गए कुछ बड़े फैसले जैसे कि टैक्स में कटौती, व्यापार युद्ध, और कड़े आप्रवासन नियमों ने अमेरिका को वैश्विक राजनीति में एक अलग दिशा में ले जाने का प्रयास किया।

ट्रंप की वापसी का मतलब यह भी है कि अमेरिका में एक बार फिर से ऐसी नीतियाँ लागू हो सकती हैं, जो पहले की तुलना में अधिक आक्रामक और स्वार्थी हो सकती हैं।

इससे न केवल अमेरिका के नागरिकों को फायदा हो सकता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर अमेरिका के साथ व्यापार और कूटनीतिक संबंधों में भी बदलाव आ सकता है।

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2. बाइडन के निर्णयों को पलटने का ट्रंप का फैसला

जब डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभाला, तो उन्होंने बाइडन प्रशासन द्वारा किए गए कई प्रमुख निर्णयों को पलट दिया।

इनमें से कुछ फैसले घरेलू नीतियों से संबंधित थे, जबकि कुछ अंतर्राष्ट्रीय नीतियों पर आधारित थे। आइए जानते हैं कि ट्रंप ने कौन से प्रमुख फैसले पलट दिए:

a. पेरिस जलवायु समझौता

बाइडन प्रशासन ने 2021 में पेरिस जलवायु समझौते में फिर से शामिल होने का फैसला किया था, जिससे अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लिया। लेकिन ट्रंप ने 2017 में अमेरिका को इस समझौते से बाहर कर दिया था, यह कहते हुए कि यह समझौता अमेरिका के लिए आर्थिक रूप से हानिकारक था।

अब, ट्रंप ने फिर से पेरिस समझौते से बाहर रहने का फैसला किया। उनका मानना है कि यह समझौता अमेरिका की ऊर्जा और उद्योगों पर अनावश्यक बोझ डालता है। ट्रंप की यह नीति एक बार फिर से अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देती है, भले ही यह वैश्विक स्तर पर आलोचना का कारण बने।

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b. स्वास्थ्य नीति – Affordable Care Act (Obamacare)

बाइडन प्रशासन ने Obamcare (Affordable Care Act) को बहाल करने के लिए कई कदम उठाए थे, जिसका उद्देश्य अमेरिकी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ती और सुलभ बनाना था। लेकिन ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान Obamacare को कमजोर करने के लिए कई कदम उठाए थे।

अब, ट्रंप ने पुनः स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार करने के लिए नीतियाँ बनाना शुरू किया है, जो पहले की तुलना में अधिक निजीकरण और बाजार-आधारित होंगी। इसका उद्देश्य अमेरिकी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच देना है, जबकि लागत को कम करना है।

c. इन्फ्रास्ट्रक्चर और रोजगार नीति

बाइडन प्रशासन ने अमेरिकी इन्फ्रास्ट्रक्चर को पुनर्जीवित करने के लिए एक बड़ा पैकेज घोषित किया था, जिसमें सड़क, पुल, और अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए अरबों डॉलर का निवेश करने की योजना थी। लेकिन ट्रंप ने इस योजना को लेकर विरोध किया था, उनका मानना था कि यह योजना अमेरिकी करदाताओं पर अनावश्यक बोझ डालेगी।

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ट्रंप ने अब एक नया इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज प्रस्तुत किया है, जो निजी क्षेत्र को अधिक प्रोत्साहन देगा और रोजगार सृजन पर जोर देगा। यह पहल अमेरिकी नागरिकों के लिए नए रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की दिशा में हो सकती है।


3. WHO से बाहर जाने का ट्रंप का निर्णय

ट्रंप का एक और प्रमुख कदम था, अमेरिका का WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) से बाहर निकलना। ट्रंप ने 2020 में यह निर्णय लिया था, यह आरोप लगाते हुए कि WHO ने COVID-19 महामारी को लेकर चीन के पक्ष में पक्षपाती रुख अपनाया और महामारी से निपटने में अपनी भूमिका सही ढंग से नहीं निभाई।

ट्रंप का यह निर्णय अमेरिकी नागरिकों को वैश्विक स्वास्थ्य संगठन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करता है। उनका कहना था कि WHO ने चीन को ढाल बनाकर, वायरस के प्रसार को बढ़ने दिया और अमेरिका का नुकसान किया। ट्रंप के अनुसार, अमेरिका WHO को वित्तीय सहायता नहीं देना चाहता था, क्योंकि संगठन ने अमेरिका के हितों का पालन नहीं किया था।

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अब जब ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बने हैं, तो उन्होंने एक बार फिर से यह फैसला लागू किया है और अमेरिका को WHO से बाहर कर दिया है। इस फैसले के साथ, ट्रंप का उद्देश्य अमेरिकी स्वास्थ्य नीति को मजबूत करना और अमेरिकी नागरिकों के हितों की रक्षा करना है, चाहे यह वैश्विक सहयोग के लिए विवाद का कारण बने।


4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और कूटनीतिक संबंधों में बदलाव

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका के व्यापार और कूटनीति को लेकर कई महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। उनके पहले कार्यकाल में किए गए व्यापार युद्धों और कड़े व्यापार समझौतों ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को प्रभावित किया।

ट्रंप का मानना है कि अमेरिका को वैश्विक व्यापार प्रणाली में अपनी स्थिति मजबूत करनी चाहिए और देशों को अमेरिकी व्यापारियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। ट्रंप ने चीन, यूरोपीय संघ, और अन्य देशों के साथ व्यापार समझौतों में बदलाव किए थे और उनके प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण को अधिक कड़ा बना दिया था।

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अब, ट्रंप ने इन नीतियों को फिर से लागू किया है और अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है। यह नीति वैश्विक व्यापार और कूटनीति में एक नई दिशा की ओर संकेत करती है, जिसमें अमेरिका की स्थिति और व्यापारिक लाभ को सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाए जा रहे हैं।


5. ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का भविष्य:

डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का भविष्य निश्चित रूप से रोचक और चुनौतीपूर्ण होगा। उन्होंने पहले ही कई महत्वपूर्ण फैसले किए हैं, जो अमेरिका और दुनिया पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। हालांकि, उनके इन फैसलों को लेकर आलोचना भी हो सकती है, लेकिन ट्रंप के समर्थक उन्हें एक मजबूत और निर्णय लेने वाला नेता मानते हैं।

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ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका को किस दिशा में ले जाया जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या वह अपनी “अमेरिका पहले” की नीति को और अधिक सख्ती से लागू करेंगे, या क्या वह वैश्विक स्तर पर सहयोग बढ़ाने के लिए अपने दृष्टिकोण में बदलाव करेंगे, यह समय ही बताएगा।

ट्रंप की नीतियाँ हमेशा से ही विवादास्पद रही हैं, लेकिन उनके समर्थक मानते हैं कि इन फैसलों से अमेरिका की स्थिति मजबूत होगी। भविष्य में क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका को एक नई दिशा मिल सकती है, जो वैश्विक राजनीति और आंतरिक विकास दोनों के लिए महत्वपूर्ण होगी।

वही इन सब के बीच भारत पर इनका प्रभाव क्या होगा l

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डोनाल्ड ट्रंप फिर से बने अमेरिका के राष्ट्रपति: भारत पर इसका प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप का फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनना, न केवल अमेरिका, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बड़ा बदलाव लेकर आया है। विशेष रूप से भारत के लिए, ट्रंप के राष्ट्रपति बनने का मतलब है कि अमेरिकी नीतियाँ और द्विपक्षीय संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते में कई उतार-चढ़ाव आए थे, लेकिन कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग भी बढ़ा था। अब जब ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बने हैं, तो यह सवाल उठता है कि इस बदलाव का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यह लेख इस बात की विस्तृत चर्चा करेगा कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में क्या बदलाव हो सकते हैं और इसके भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर क्या प्रभाव हो सकते हैं।


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1. भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर प्रभाव

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में पिछले कुछ वर्षों में काफी वृद्धि हुई है, खासकर बाइडन प्रशासन के समय में। हालांकि, ट्रंप के पहले कार्यकाल में व्यापार युद्ध और उच्च शुल्क जैसे मुद्दे उठे थे। उन्होंने कई बार भारत से यह शिकायत की थी कि भारतीय बाजार अमेरिकी कंपनियों के लिए बंद है और भारत ने अपने व्यापारिक माहौल को अमेरिकी हितों के अनुरूप नहीं ढाला।

लेकिन ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में, भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है। ट्रंप का मानना है कि अमेरिका को अपने व्यापारिक फायदे के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए, और इसके लिए वह किसी भी देश के साथ नए व्यापारिक समझौते करने के लिए तैयार हो सकते हैं। अगर ट्रंप भारत के साथ व्यापार बढ़ाने का फैसला करते हैं, तो भारत को अमेरिकी बाजार में और अधिक अवसर मिल सकते हैं।

कृषि और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में व्यापार

अमेरिका में भारतीय कृषि उत्पादों और टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए बड़ा बाजार है। ट्रंप का रुख भारत के कृषि उत्पादों जैसे कि राइस, मसाले, और दवाओं के निर्यात को बढ़ाने के लिए सकारात्मक हो सकता है। वहीं, भारत की आईटी कंपनियाँ अमेरिका में बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं और ट्रंप के प्रशासन में तकनीकी सहयोग बढ़ने की संभावना है।

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2. भारत-चीन संबंधों में ट्रंप का दृष्टिकोण

भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंध पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं, खासकर लद्दाख क्षेत्र में। चीन द्वारा भारतीय सीमा का उल्लंघन और सीमा पर जारी संघर्ष ने भारत को वैश्विक मंच पर चीन के खिलाफ अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए प्रेरित किया है।

ट्रंप के पहले कार्यकाल में, उन्होंने भारत के पक्ष में खुलकर बयान दिए थे, खासकर भारत-चीन सीमा पर। उन्होंने कई बार यह कहा कि अमेरिका भारत का समर्थन करता है और चीन को किसी भी तरह से चुनौती देने के लिए तैयार है। ट्रंप का ‘अमेरिका पहले’ दृष्टिकोण चीन को अमेरिका के लिए एक प्रमुख खतरे के रूप में देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है, और इसमें भारत का समर्थन भी मिल सकता है।

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यदि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत और चीन के बीच तनाव को और बढ़ाता है, तो अमेरिका भारत का एक मजबूत सहयोगी बन सकता है। यह स्थिति भारत के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि इससे भारत को चीन के खिलाफ और अधिक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिल सकता है।


3. रक्षा सहयोग और सामरिक साझेदारी

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुआ है, और ट्रंप के पहले कार्यकाल में इसे और अधिक बढ़ाया गया था। दोनों देशों के बीच रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जैसे कि लुसा, केमका, और बीका (BECA) समझौते, जिनसे दोनों देशों के सैन्य संबंधों को और मजबूत किया गया है।

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में, यह संभावना है कि रक्षा सहयोग को और बढ़ाया जाए, खासकर चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के खिलाफ। ट्रंप प्रशासन का रक्षा और सामरिक सहयोग पर जोर जारी रह सकता है, जिससे भारत को सैन्य उपकरणों, प्रौद्योगिकी और रणनीतिक मदद मिल सकती है।

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इसके अलावा, भारत-यूएस सैन्य अभ्यास और संयुक्त सैन्य संचालन को भी बढ़ावा मिल सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी और भी सशक्त हो सकती है।


4. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नीति पर प्रभाव

बाइडन प्रशासन ने पेरिस जलवायु समझौते में वापसी की थी, जबकि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका को इस समझौते से बाहर कर दिया था। अगर ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनते हैं, तो यह संभावना है कि वह जलवायु समझौते से बाहर रहेंगे, क्योंकि उनका मानना था कि यह अमेरिका के लिए आर्थिक रूप से हानिकारक है।

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भारत के लिए, यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। हालांकि, भारत ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व का संकल्प लिया है, लेकिन अगर अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर रहता है, तो वैश्विक पर्यावरण नीति पर भारत का प्रभाव सीमित हो सकता है।

इससे यह भी संभव है कि भारत को पर्यावरणीय नीतियों पर अधिक स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर मिले, और भारत अपनी विकासात्मक योजनाओं में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए नई नीतियाँ लागू कर सके। ट्रंप प्रशासन भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिकी निवेश को बढ़ावा दे सकता है, खासकर सोलर पैनल और विंड पावर के क्षेत्र में।


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5. भारतीय आप्रवासन नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भारतीय आप्रवासन नीति पर कई बार सवाल उठाए थे, खासकर H-1B वीजा जैसे कार्यक्रमों को लेकर। उनका कहना था कि इन वीजा कार्यक्रमों का दुरुपयोग हो रहा है और अमेरिकी नागरिकों के लिए नौकरियाँ कम हो रही हैं।

ट्रंप का रुख भारतीय पेशेवरों के लिए कड़ा हो सकता है, और वह अमेरिका में भारतीयों के लिए वीजा नियमों को और सख्त कर सकते हैं। हालांकि, ट्रंप का यह कदम भारत में कुछ विवाद पैदा कर सकता है, लेकिन भारत के पेशेवरों के लिए यह भी एक अवसर हो सकता है कि वे अन्य देशों में अपनी सेवाएँ प्रदान करें और भारत में स्थानीय आईटी उद्योग को और मजबूत करें।

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6. भारत के लिए ट्रंप की नीतियाँ: एक समग्र विश्लेषण

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से भारत के लिए कुछ फायदे और नुकसान दोनों हो सकते हैं। जहां एक ओर व्यापार, रक्षा और सामरिक सहयोग में वृद्धि हो सकती है, वहीं कुछ मुद्दों पर भारत को कठिनाई का सामना भी करना पड़ सकता है, जैसे कि पर्यावरण नीति और आप्रवासन के क्षेत्र में।

ट्रंप का ‘अमेरिका पहले’ दृष्टिकोण भारत को एक मजबूत रणनीतिक साझेदार बना सकता है, लेकिन इसका मतलब यह भी हो सकता है कि भारत को अमेरिका के साथ कई क्षेत्रों में कड़ा और सख्त रुख अपनाने की आवश्यकता होगी। भारत को यह समझने की जरूरत होगी कि ट्रंप के शासन में उसे कई बार जटिल और प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

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#DonaldTrump  अमेरिका में एक बार फिर ‘ट्रंप राज’ की वापसी हुई है। रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण कर ली है।

इस शपथ के साथ ही ट्रंप अमेरिका 47वें राष्ट्रपति बन गए हैं। USA के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने ट्रंप को 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई।

ट्रंप के शपथ लेने के बाद कुछ देर तक कैपिटल बिल्डिंग के रोटुंडा में तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही।

ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें बधाई दी और साथ में काम करने की इच्छा भी जताई। वहीं राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने एक के बाद एक कई बड़े ऐलान किए हैं।

अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने अपने तेवर दिखा दिए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही पहला बड़ा फैसला लिया है।

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उन्होंने मैक्सिको बॉर्डर पर इमरजेंसी की घोषणा की। साथ ही अमेरिका में ड्रग तस्करों को आतंकवादी घोषित किया।

राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप ने अपने पहले भाषण में कहा, ‘हम अपनी दक्षिणी सीमा पर नेशनल इमरजेंसी की घोषणा करते हैं।

ट्रंप ने मेक्सिको के साथ लगती अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर घुसपैठ को रोकने के लिए सेना भेजने का भी ऐलान किया है।

उन्होंने कहा, ‘अवैध प्रवासियों को वहीं छोड़कर आएंगे जहां से वो आए हैं। शपथ लेने के बाद ट्रंप ने कहा कि, मेक्सिको बॉर्डर पर दीवार बनाने का काम होगा।

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संगठिक अपराध के खिलाफ आज से ही काम शुरू होगा। हम महंगाई कम करने के लिए काम करेंगे। उन्होंने कहा कि हम घुसपैठियों को अमेरिका से बाहर निकालेंगे।

उन्होंने दक्षिणी सीमाओं पर इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने आगे कहा कि, ‘दूसरे की जंग में अमेरिका सेना नहीं जाएगी।

मैं चाहता हूं कि दुनिया मुझे शांति दूत के तौर पर जाने। चीन को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा कि पनामा कैनाल से चीन का अधिपत्य खत्म करेंगे। पनामा कैनाल को वापस लेंगे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति बनने पर बधाई दी है।

पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ”मेरे प्रिय मित्र राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में ऐतिहासिक शपथ ग्रहण पर बधाई! मैं एक बार फिर साथ मिलकर काम करने, दोनों देशों को लाभ पहुंचाने और दुनिया के लिए बेहतर भविष्य को आकार देने के लिए तत्पर हूं। आने वाले सफल कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं!’

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निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप का फिर से अमेरिका का राष्ट्रपति बनना, भारत के लिए एक नई चुनौती और अवसर दोनों लेकर आता है। व्यापार, रक्षा, और सामरिक साझेदारी में वृद्धि की संभावना है, लेकिन कुछ मुद्दों पर जैसे कि पर्यावरण नीति और आप्रवासन में कठिनाइयाँ आ सकती हैं। भारत को ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अपने राष्ट्रीय हितों को सही तरीके से संतुलित करते हुए अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

अंततः, ट्रंप का नेतृत्व भारत के लिए एक नया अवसर और चुनौती दोनों हो सकता है, और भारत को अपनी नीतियों में लचीलापन और संवेदनशीलता दिखाते हुए अमेरिका के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना होगा।

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डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने अमेरिकी राजनीति को एक नया आयाम दिया है। उनके फैसले, जैसे कि WHO से बाहर निकलना और बाइडन के निर्णयों को पलटना, यह दर्शाते हैं कि वह अपनी नीतियों में किसी प्रकार की नरमी नहीं दिखाएंगे। इन निर्णयों के प्रभाव से न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

ट्रंप की नीतियाँ हमेशा से ही विवादास्पद रही हैं, लेकिन उनके समर्थक मानते हैं कि इन फैसलों से अमेरिका की स्थिति मजबूत होगी। भविष्य में क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका को एक नई दिशा मिल सकती है, जो वैश्विक राजनीति और आंतरिक विकास दोनों के लिए महत्वपूर्ण होगी।

(इनपुट एजेंसी/सोशल मीडिया सहित AI से भी)

Priyanka Jain: