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Wednesday Thought : तलाश जिंदगी की थी दूर तक निकल पड़े….

जिंदगी मिली नही तज़ुर्बे बहुत मिले....किसी ने मुझसे कहा कि... तुम इतना *ख़ुश कैसे रह लेते हो? तो मैंने कहा कि.... मैंने जिंदगी की गाड़ी से... वो साइड ग्लास ही हटा दिये... जिसमेँ पीछे छूटते रास्ते और.. बुराई करते लोग नजर आते थे..

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तलाश जिंदगी की थी
दूर तक निकल पड़े….

जिंदगी मिली नही
तज़ुर्बे बहुत मिले….

किसी ने मुझसे कहा कि…
तुम इतना *ख़ुश कैसे रह लेते हो?
तो मैंने कहा कि….
मैंने जिंदगी की गाड़ी से…
वो साइड ग्लास ही हटा दिये…
जिसमेँ पीछे छूटते रास्ते और..
बुराई करते लोग नजर आते थे..

“सदा मुस्कुराते रहिये”

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Dropadi Kanojiya

द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।

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