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मुंबई:तकरीबन 25 साल बाद गुलशन कुमार मर्डर केस में फैसला आया है। गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुलशन कुमार हत्याकांड पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया और दाऊद के साथी अब्दुल रऊफ मर्चेंट की उम्र कैद की सजा को बरकरार (Bombay high court upholds Dawood’s aide Rauf’s life sentence)रखा।
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इतना ही नहीं, बॉलिवुड प्रोड्यूसर और म्यूजिक कंपनी टिप्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मालिक रमेश तौरानी(Ramesh Taurani) को सभी आरोपों से बरी कर(Acquitted Ramesh Taurani all charges)दिया।
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गुलशन कुमार(Gulshan kumar)हत्याकांड में बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस जाधव और बोरकर की बेंच ने अपना यह फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने रमेश तौरानी की रिहाई के फैसले को बरकरार रखते हुए तौरानी के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील खारिज कर दी।
गुलशन कुमार मर्डर केस में आएं फैसले रमेश तौरानी (Ramesh Taurani) ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, ‘अब मुझे राहत है। मैं हमेशा से जानता था कि मैं निर्दोष हूं। यह सच्चाई की जीत है।’
बता दें, तौरानी इस हत्याकांड के आरोपियों में से एक थे। तौरानी की मानें तो उनकी ये परीक्षा 19 साल बाद समाप्त हुई।
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गौरतलब है कि टी-सीरीज कंपनी के संस्थापक गुलशन कुमार(Gulshan Kumar) की 12 अगस्त, 1997 को जूहू इलाके में हत्या कर दी गई थी।
दरअसल, गुलशन कुमार मर्डर केस(Gulshan-Kumar-Murder-Case)से संबंधित हाईकोर्ट में कुल चार अपीलें सूचीबद्ध थीं।
इनमें से तीन अपीलें आरोपी रऊफ मर्चेंट, राकेश चंचाया पिन्नम और राकेश खाओकर की दोषसिद्धि के खिलाफ थीं, जबकि एक अन्य अपील महाराष्ट्र सरकार ने रमेश तौरानी को बरी किए जाने के खिलाफ दायर की थी।
बता दें कि उसे हत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी कर दिया गया था।
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कैसे हुई थी गुलशन कुमार की हत्या,जानेंGulshan-Kumar-Murder
12 अगस्त 1997 को भारतीय संगीत उद्योग को एक बड़ा झटका लगा था,जब गुलशन कुमार की दिनदहाड़े बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
संगीत निर्देशक नदीम अख्तर सैफी और तौरानी इस मामले में आरोपी थे। तौरानी पर दुबई माफिया अबू सलेम को हत्या को अंजाम देने के लिए सैफी के साथ कथिततौर पर साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।
उस दौरान नदीम अख्तर सैफी देश छोड़कर ब्रिटेन भाग गए, लेकिन बॉम्बे की अपराध शाखा ने तौरानी को गुलशन कुमार की हत्या के लिए ‘उकसाने’ के लिए गिरफ्तार किया।
पुलिस ने आरोप लगाया गया कि रमेश तौरानी ने कथित तौर पर गुलशन कुमार के हत्यारों को 25 लाख रुपये दिए थे।
हालांकि बाद में कैद होने के बाद उन्हें जमानत दे दी गई। पांच साल बाद, 2002 में, सत्र अदालत ने उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए।
निचली अदालत में उनके बरी होने के बाद, महाराष्ट्र राज्य ने फिर उच्च न्यायालय में अपील की थी।