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भगवान महावीर जयंती विशेष-आज क्यों जरुरत है महावीर के आदर्शों की

हिंसा सिर्फ किसी पर शस्त्र या उसे चोट पहुंचाकर नहीं होती है हिंसा वह जिससे आपके द्वारा बोले गए शब्दों से...

Mahavir Jayanti Special – Why Are Jain God Mahavir’s ideals needed today?

नयी दिल्ली (समयधारा) :  नमस्कार दोस्तों दिनांक 21 अप्रैल 2024 को भगवान महावीर का जन्मोत्सव धूमधाम से देश-विदेश में मनाया जा रहा है l 

यह भगवान महावीर का 2623 वां जन्म कल्याणक महोत्सव है l यह त्यौहार जैन समाज के लिए सबसे बड़े त्यौहारों में से एक हैl 

भगवान महावीर जयंती विशेष-आज क्यों जरुरत है महावीर के आदर्शों की

आज उनके आदर्शों उनके दिखाएं अहिंसा के मार्ग से न सिर्फ जैन समाज बल्कि विश्व का हर तबका प्रभावित हो रहा है,

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उनके आदर्शों की आज समाज के हर तबकों को जरुरत है, महावीर सिर्फ जैनों के ही नहीं वह समाज में अहिंसा के सबसे बड़े देवताओं में से एक है l

आपने रामायण-महाभारत की लड़ाई हो या कोई भी ग्रंथ को जरुर पढ़ा या उनके बारें में सूना होगा l

जहाँ लगभग हर धर्म के देवताओं ने या महापुरषों ने शत्रुओं का नाश करने के लिए शस्त्र उठाये थे l

वही विश्व का एक मात्र धर्म यानी जैन धर्म ऐसा है जिसने दुश्मन पर विजय पाने के लिए शस्त्रों का उपयोंग नहीं कियाl

जैन धर्म ने विजय प्राप्त करने के लिए अहिंसा का रास्ता अपनाया l हिंसा सिर्फ किसी पर शस्त्र या उसे चोट पहुंचाकर नहीं होती है, 

हिंसा वह है-जिससे आपके द्वारा बोले गए शब्दों से किसी के मन दुखा हो उसका जाने-अनजाने नुकसान हुआ हो, आपके द्वारा किसी अन्य आत्मा को क्षति पहुंची हो l

जीव-सजीव इंसान या फिर जानवर  हो या फिर पेड़-पौधें इस संसार में हर कोई – का जाने अनजाने बुरा न करना ही अहिंसा हैl

Mahavir Jayanti Special – Why Are Jain God Mahavir’s ideals needed today?

और जैन समाज ने इन्ही आदर्शों को अपनाया जिसकी जरुरत आज के प्रगतिशील समाज के लिए सबसे बड़ा उपचार राहत का संदेश बनकर उभरा हैl

अहिंसा जिस धर्म की पहचान है उसी धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने जैन धर्मों को नईं ऊँचाइयों पर पहुंचाया l

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आज के माहौल में भगवान महावीर के आदर्शों उनके बताएं गए सिद्धांतों की बेहद ही ज्यादा जरूरत आन पड़ी है l

समाज में व्याप्त असमानता-अराजकता और चारों तरफ फैली हिंसा से भगवान महावीर ही नया पार लगा सकते है l

उनके बताये मार्ग पर चलकर आज का समाज मोक्ष की और अग्रसर हो सकता है l

भोग विलासिता कृतिम आडम्बरों से युक्त आज के इस जीवन सैली को उच्च कोटि के साधारण व शांत जीवन में बदलने का अगर कोई काम कर सकता है तो वह है भगवान महावीर के आदर्श … l

जैन समाज की अनंत बारीकियों का उन्होंने गहराई से अध्यन कर पांच इन्द्रियों पर विजय पाकर जब वह तीर्थंकर बने तो न सिर्फ जैन समाज बल्कि समाज के हर तबके को अहिंसा का पाठ पढ़ाया l

कहते है जैसी चाह होती है वैसी ही राह होती है l भगवान महावीर ने अपना समस्त जीवन अहिंसा को समाज में फैलाने में लगा दिया l

भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर थे। जैन दर्शन के अनुसार, सभी तीर्थंकरों का जन्म मनुष्य के रूप में हुआ था,

लेकिन उन्होंने ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से पूर्णता या आत्मज्ञान की स्थिति प्राप्त की है।  वे जैनियों के देवता हैं।

तीर्थंकरों को अरिहंत या जिन के नाम से भी जाना जाता है।

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भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव पर आज पहले जान लेते है संक्षिप्त में कुछ उनके बारें में l

महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में भारत के बिहार में एक राजकुमार के रूप में हुआ था। 

Mahavir Jayanti Special – Why Are Jain God Mahavir’s ideals needed today?

30 साल की उम्र में, उन्होंने अपना परिवार और शाही घराना छोड़ दिया, कपड़ों सहित अपनी सांसारिक संपत्ति छोड़ दी और एक भिक्षु बन गए।

उन्होंने अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर विजय पाने के लिए अगले बारह वर्ष गहन मौन और ध्यान में बिताए। वह लंबे समय तक बिना भोजन के रहे।

उन्होंने सावधानीपूर्वक जानवरों, पक्षियों और पौधों सहित अन्य जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचाने या परेशान करने से परहेज किया।

उनके ध्यान के तरीके, तपस्या के दिन और व्यवहार का तरीका धार्मिक जीवन में भिक्षुओं और ननों के लिए एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

उनकी आध्यात्मिक खोज बारह वर्षों तक चली। अंत में उन्हें पूर्ण अनुभूति, ज्ञान, शक्ति और आनंद का एहसास हुआ। इस अनुभूति को केवल-ज्ञान के नाम से जाना जाता है।

उन्होंने अगले तीस साल पूरे भारत में नंगे पैर यात्रा करते हुए लोगों को उस शाश्वत सत्य का प्रचार करते हुए बिताया जिसे उन्होंने महसूस किया था।

उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को आकर्षित किया, अमीर और गरीब, राजा और आम लोग, पुरुष और महिलाएं, राजकुमार और पुजारी, स्पृश्य और अस्पृश्य।

उन्होंने अपने अनुयायियों को चार भागों में संगठित किया, अर्थात् भिक्षु (साधु), नन (साध्वी), आम आदमी (श्रावक), और आम महिला (श्राविका)। बाद में वे जैन कहलाये।

उनकी शिक्षा का अंतिम उद्देश्य यह है कि कोई व्यक्ति जन्म, जीवन, दर्द, दुःख और मृत्यु के चक्र से पूर्ण स्वतंत्रता कैसे प्राप्त कर सकता ,

है और स्वयं की स्थायी आनंदमय स्थिति प्राप्त कर सकता है। इसे मुक्ति, निर्वाण, पूर्ण स्वतंत्रता या मोक्ष के रूप में भी जाना जाता है।

उन्होंने समझाया कि अनंत काल से, प्रत्येक जीवित प्राणी (आत्मा) कर्म परमाणुओं के बंधन में है, जो उसके अपने अच्छे या बुरे कर्मों से संचित होते हैं।

कर्म के प्रभाव में, आत्मा को भौतिक वस्तुओं और संपत्तियों में सुख तलाशने की आदत होती है।

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Mahavir Jayanti Special – Why Are Jain God Mahavir’s ideals needed today?

जो आत्म-केन्द्रित हिंसक विचारों, कार्यों, क्रोध, घृणा, लालच और ऐसी अन्य बुराइयों के गहरे जड़ वाले कारण हैं। इनके परिणामस्वरूप अधिक कर्म एकत्रित होते हैं।

उन्होंने उपदेश दिया कि सही विश्वास (सम्यक-दर्शन), सही ज्ञान (सम्यक-ज्ञान), और सही आचरण (सम्यक-चरित्र) एक साथ मिलकर व्यक्ति को स्वयं की मुक्ति प्राप्त करने में मदद करेंगे।

जैनियों के लिए सही आचरण के मूल में पाँच महान व्रत हैं:

 अहिंसा (अहिंसा) – किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान न पहुँचाना

 सत्यता (सत्य) – हानिरहित सत्य ही बोलना

 चोरी न करना (अस्तेय) – उचित रूप से दी गई वस्तु न लेना

 शुद्धता (ब्रह्मचर्य) – कामुक सुख में लिप्त नहीं होना

 गैर-कब्जा/गैर-लगाव (अपरिग्रह) – लोगों, स्थानों और भौतिक चीजों से पूर्ण अलगाव।

जैन इन व्रतों को अपने जीवन के केंद्र में रखते हैं। भिक्षु और भिक्षुणियाँ इन प्रतिज्ञाओं का सख्ती से और पूरी तरह से पालन करते हैं,

जबकि आम लोग प्रतिज्ञाओं का पालन करने की कोशिश करते हैं जहाँ तक उनकी जीवन शैली अनुमति देती है।

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Mahavir Jayanti Special – Why Are Jain God Mahavir’s ideals needed today?

72 वर्ष की आयु (527 ईसा पूर्व) में, भगवान महावीर की मृत्यु हो गई और उनकी शुद्ध आत्मा ने शरीर छोड़ दिया और पूर्ण मुक्ति प्राप्त की।

वह एक सिद्ध, एक शुद्ध चेतना, एक मुक्त आत्मा बन गया, जो हमेशा के लिए पूर्ण आनंद की स्थिति में रहने लगा। उनके उद्धार की रात को, लोगों ने उनके सम्मान में रोशनी का त्योहार (दीपावली) मनाया।

अब बात करते है जैन समाज के महत्वपूर्ण स्थान जो उन्हें भगवान का दर्जा यानी भगवान बनाता है l

  • तीर्थंकर – वह जो धर्म के चार गुना क्रम (भिक्षु, भिक्षुणी, आम आदमी और आम महिला) की स्थापना करता है।
  • अरिहंत – जो अपने आंतरिक शत्रुओं जैसे क्रोध, लोभ, जुनून, अहंकार आदि को नष्ट कर देता है।
  • जिन – जो अपने आंतरिक शत्रुओं जैसे क्रोध, लोभ, जुनून, अहंकार आदि को जीत लेता है। जिन के अनुयायियों को जैन के रूप में जाना जाता है।

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जरुर पढ़े भगवान महावीर जी के कुछ अनमोल विचार :

आपने कभी किसी का भला किया हो तो उसे भूल जाओॉ और कभी किसी ने आपका बुरा किया हो तो उसे भूल जाओ

आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।

किसी के अस्तित्व को मत मिटाओ। शांतिपूर्वक जियो और दूसरों को भी जीने दो।

अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। शांति और आत्म-नियंत्रण ही सही मायने में अहिंसा है।

हर जीवित प्राणी के प्रति दयाभाव ही अहिंसा है। घृणा से मनुष्य का विनाश होता है।

Mahavir Jayanti Special – Why Are Jain God Mahavir’s ideals needed today?

सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं और वे खुद अपनी गलती सुधार कर सुखी हो सकते हैं l

महावीर हमें स्वयं से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं- स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।

 

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