आज है होलिका दहन, इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा
होलिका दहन के इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से मिलेगी सुख-शांति-समृद्धि
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रंग,अबीर और गुलाल का रंगारंग त्यौहार होली(holi)का इंतजार सभी को रहता है।होली को दुल्हंडी(dhulandi) या बड़ी होली(Holi 2022)भी कहते है।
अब आप जानना चाहेंगे कि इस वर्ष 2022 में होली कब(holi 2022 kab hai-holi-date)है? और होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या(Holika-Dahan-Shubh-Muhurt) है?
चूंकि हमेशा की तरह इस वर्ष भी काफी लोगों को कंफ्यूजन है कि आखिर होली 18 की है या 19 मार्च की?तो चलिए आज आपके सारे सवालों के जवाब हम देते(holi-2022-kab-hai-dhulandi-holi-date-Holika-Dahan-Shubh-Muhurt-holi-story)है।
होली का पावन पर्व होलिका दहन(Holika-Dahan 2022),जिसे आम भाषा में छोटी होली भी कहते है,से शुरू हो जाता है।
होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।बुराई पर अच्छाई का प्रतीक होलिका दहन सभी नकारात्मक शक्तियों को पावन अग्नि में खत्म कर देता है।
होलिका दहन के अगले दिन ही मुख्य होली या दुल्हेंडी मनाई जाती है,जिसमें सभी लोग एक-दूसरे को रंग,अबीर और गुलाल लगाते है। मीठी गुजियां खाते है और स्वादिष्ट पकवान बनाएं जाते है।
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इस साल होली या दुल्हंडी कब है?
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इस साल होलिका दहन 17 मार्च ,गुरुवार को है और बड़ी होली या दुल्हंडी 18 मार्च,शुक्रवार को खेली जाएगी।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?-Holika Dahan 2022 Shubh Muhurat
होलिका दहन इस वर्ष गुरुवार 17 मार्च 2022 को है।होलिका दहन की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक का है।
यानि आपको होलिका दहन की पूजा के लिए तकरीबन एक घंटे का ही समय मिल सकेगा।
आपको बता दें कि होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए लेकिन यदि इस बीच भद्राकाल हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
भद्राकाल समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन करना चाहिए। दरअसल, हिंदू शास्त्रों में भद्राकाल को अशुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भद्राकाल में किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता और उसके अशुभ परिणाम मिलते हैं।
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होली से जुड़ी कथा या क्यों मनाते है होली?-holi story-why is holi celebrated
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक,प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर राजा था। उसने घमंड में चूर होकर खुद के ईश्वर होने का दावा किया था।
इतना ही नहीं, हिरण्यकश्यप ने राज्य में ईश्वर के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था।
वहीं, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आग में भस्म न होने का वरदान मिला हुआ था। एक बार हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए।
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लेकिन आग में बैठने पर होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। और तब से ही ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलीका दहन किया जाने लगा।
एक अन्य मान्यता के अनुसार होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से से पूछा था कि वो राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं।
इस पर यशोदा ने मजाक में कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
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