
Pitru-Paksha-Amavasya-2025-Shubh-Muhurat-Mahatva-Hindi
नयी दिल्ली (समयधारा) : भारत में हर पर्व और तिथि का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इन्हीं में से एक है पितृपक्ष अमावस्या, जिसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है।
इस दिन विशेष रूप से पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान का आयोजन किया जाता है।
मान्यता है कि पितृपक्ष अमावस्या के दिन किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करने के साथ-साथ पूरे परिवार को सुख, समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करता है।
पितृपक्ष अमावस्या हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन को अपने पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से समर्पित किया गया है।
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और दान करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
पितृपक्ष अमावस्या को विशेष इसलिए माना जाता है क्योंकि यह दिन पूरे पितृपक्ष का समापन भी है और इस दिन किए गए कर्म पूरे परिवार और आने वाली पीढ़ियों के लिए मंगलकारी माने जाते हैं।
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🕉 पितृपक्ष अमावस्या का महत्व
पितृपक्ष की यह अंतिम तिथि मानी जाती है और इसे सबसे ज्यादा फलदायी कहा गया है।
इस दिन पितरों की आत्मा पृथ्वी पर आती है और अपने वंशजों से तर्पण और श्राद्ध की अपेक्षा करती है।
यदि कोई व्यक्ति पूरे पितृपक्ष में श्राद्ध न कर पाए तो वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध करके अपने सभी पूर्वजों को तृप्त कर सकता है।
यह दिन कर्मफल, मोक्ष और परिवार में शांति लाने वाला माना गया है।
📜 धार्मिक मान्यताएँ
गरुड़ पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण में उल्लेख है कि पितरों को अन्न और जल अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
महालय अमावस्या को पितरों के साथ-साथ देवी-देवताओं और यमराज की भी विशेष पूजा की जाती है।
इस दिन का किया गया श्राद्ध अनंत गुना फल देता है और यह सीधा पितरों तक पहुँचता है।
🌾 श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया
सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
घर के आंगन या पवित्र स्थान पर कुशासन बिछाकर पितरों का आह्वान करें।
तिल, कुश और जल से तर्पण करें।
खीर, पूरी, दाल, सब्ज़ी, फल आदि का नैवेद्य बनाकर पितरों को समर्पित करें।
ब्राह्मण भोजन कराना और गरीबों को दान करना विशेष पुण्यकारी माना गया है।
🪔 क्यों खास है पितृपक्ष अमावस्या?
संपूर्ण श्राद्ध का अवसर – अगर किसी कारणवश 15 दिन श्राद्ध नहीं हो पाए तो यह एक दिन पूरे पूर्वजों को समर्पित होता है।
मोक्षदायी तिथि – मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
परिवार की समृद्धि – पितरों की कृपा से घर में सुख-शांति और आर्थिक उन्नति होती है।
नकारात्मक ऊर्जा का शमन – पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए भी यह दिन बेहद महत्वपूर्ण है।
🧘 आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व
पितृपक्ष अमावस्या केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह तिथि हमें यह याद दिलाती है कि हमारा अस्तित्व केवल हमारे प्रयासों का परिणाम नहीं है, बल्कि हमारे पूर्वजों की तपस्या और त्याग का भी योगदान है। इस दिन पितरों का स्मरण हमें आत्मिक शांति और कृतज्ञता का भाव सिखाता है।
🌍 समाज और परंपरा में भूमिका
भारतीय समाज में पितृपक्ष अमावस्या का सामूहिक महत्व भी है। गाँवों और कस्बों में लोग इस दिन सामूहिक श्राद्ध, भंडारा और पितरों की स्मृति में अनुष्ठान करते हैं। इससे न केवल धार्मिक आस्था प्रबल होती है, बल्कि सामाजिक एकता और परंपरा भी जीवित रहती है।
🪙 दान का महत्व
श्राद्ध के साथ-साथ दान का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन अन्न, वस्त्र, तिल, गौ और स्वर्ण का दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और दानदाता को पुण्यफल प्राप्त होता है।
🌸 पितृपक्ष अमावस्या के उपाय
ब्राह्मण को भोजन कराने से पितृदोष दूर होता है।
पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
गौ सेवा और गरीबों को भोजन कराना अति शुभ है।
घर में गंगाजल का छिड़काव करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
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📅 2025 में पितृपक्ष अमावस्या की तिथि
21 सितंबर 2025, रविवार को पितृपक्ष अमावस्या मनाई जाएगी। इस दिन सूर्योदय से लेकर दोपहर तक श्राद्ध, तर्पण और दान का विशेष महत्व रहेगा।
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 20 सितंबर 2025, रात 09:14 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त: 21 सितंबर 2025, रात 08:10 बजे
👉 इस कारण सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध 21 सितंबर 2025 को ही किया जाएगा।
🕰️ श्राद्ध का श्रेष्ठ समय (कुतुप काल और रौहिण काल)
कुतुप काल: सुबह 11:51 बजे से दोपहर 12:41 बजे तक
रौहिण काल: दोपहर 12:41 बजे से 01:30 बजे तक
अपराह्न काल: दोपहर 01:30 बजे से 03:55 बजे तक
➡️ इन मुहूर्तों में पितरों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
✅ निष्कर्ष
पितृपक्ष अमावस्या हमें केवल धार्मिक कर्मकांड का अवसर नहीं देती, बल्कि यह हमें अपने पूर्वजों को याद करने, उनके त्याग के प्रति आभार प्रकट करने और परिवार में एकता बनाए रखने की सीख भी देती है। यह दिन हमें आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर मजबूती प्रदान करता है।
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