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Bihar Exit Poll : नीतीश की नैया पार, तेजस्वी की मुश्किलें बरकरार.!

बिहार विधानसभा चुनाव खत्म हो गए इस बार बिहार में जमकर वोटिंग हुई, किसके हाथ होगी सत्ता की चाभी चलिए जानते है क्या कह रहे है एग्जिट पोल (#ExitPoll)

BiharElection2025 ExitPoll NDALead MahagathbandhanFails

नयी दिल्ली/ पटना : आखिरकार बिहार विधानसभा चुनाव खत्म हो गए इस बार बिहार में जमकर वोटिंग हुईl

जिसका असर नतीजों पर साफ़ नजर आयेगा l किसके हाथ होगी सत्ता की चाभी चलिए जानते है क्या कह रहे है एग्जिट पोल (#ExitPoll)

बिहार विधानसभा चुनाव (#BiharAssemblyElection) को लेकर एग्जिट पोल में सर्वे करने वाली मैट्रिज-आईएएनएस ने 48 प्रतिशत वोटों के सात एनडीए को 147 से 167 सीटें दी हैं।

बीजेपी को 65-73 और जेडी यू को भी 75 से ज्यादा सीटें दी गई हैं। महागठबंधन को 37 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना जताई गई है।

आरजेडी को 53-58 और कांग्रेस 10-12 सीटें मिल सकती है। लेफ्ट के खाते में 9-14 सीटें जा सकती हैं।

चाणक्य के पूर्वानुमान में एनडीए को 130-138 , महागठबंधन को 100-108 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है।

  स्रोत 
चाणक्य स्ट्रेटेजीज (Chanakya Strategies)
एनडीए (NDA)
130-138
महागठबंधन (MGB)
100-108
JSP
0-0
OTH
3-5
दैनिक भास्कर (Dainik Bhaskar)
145-160
73-91
0-3
5-7
डी वी रिसर्च  (DV Research)
137-152
83-98
2-4
1-8
जेवीसी  (JVC)
135-150
88-103
0-1
3-6
मेट्रीज़ (Matrize)
147-167
70-90
0-2
2-8
पी-मार्क  (P-Marq)
142-162
80-98
1-4
0-3
पीपल्स इनसाइट (Peoples Insight)
133-148
87-102
0-2
3-6
पीपल्स पल्स (Peoples Pulse)
133-159
75-101
0-5
2-8
टीआईएफ रिसर्च  (TIF Research)
145-163
76-95
0
3-6
 पोल ऑफ पोल्स
147
90
01
05

 

🔸 एग्जिट पोल के नतीजे: एनडीए को स्पष्ट बढ़त

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम 14 नवंबर को आने वाले हैं, लेकिन उससे पहले एग्जिट पोल ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। लगभग सभी प्रमुख एग्जिट पोल एजेंसियों ने इस बार एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को बड़ी बढ़त दी है, जबकि महागठबंधन (राजद–कांग्रेस गठबंधन) पिछड़ता हुआ दिख रहा है।

पोल स्ट्रेट के अनुमान के अनुसार एनडीए को 133 से 148 सीटें, जबकि महागठबंधन को 87 से 102 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। वहीं पोल डायरी ने तो एकतरफा रिजल्ट दिखाते हुए एनडीए को 184 से 209 सीटें और महागठबंधन को सिर्फ 50 सीटें दी हैं।

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प्रजा पोल ने भी एनडीए को भारी बढ़त दी है — लगभग 186 सीटों के साथ। इन तीनों सर्वेक्षणों के औसत के अनुसार, एनडीए लगभग 150 सीटों तक पहुँच सकता है, जबकि महागठबंधन को 85 से 90 सीटें मिलने की संभावना है।

ये आंकड़े संकेत देते हैं कि बिहार की राजनीति में एनडीए के पक्ष में हवा बह रही है, और जनता ने एक बार फिर स्थिर सरकार और विकास के एजेंडे को प्राथमिकता दी है।


🔸 जनता के मूड को दिखा रहे हैं एग्जिट पोल

एग्जिट पोल दरअसल जनता के रुझान को सामने रखते हैं। इन नतीजों से स्पष्ट है कि बिहार की जनता ने इस बार एनडीए पर भरोसा जताया है।
कई राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह भरोसा नीतीश कुमार की प्रशासनिक छवि, महिलाओं के लिए की गई योजनाओं और एनडीए के जातीय संतुलन के कारण बना।

2020 में जहाँ एनडीए को आंतरिक मतभेदों का सामना करना पड़ा था, वहीं इस बार गठबंधन पहले से अधिक एकजुट नजर आया। चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं की वापसी ने एनडीए की पकड़ को मजबूत किया

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🔸 नीतीश कुमार की रणनीति: जनता के बीच, मीडिया से दूर

इस चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्टाइल पहले से अलग दिखा। उन्होंने मीडिया से दूरी बनाई, लेकिन जनता के बीच सक्रियता बढ़ाई।
उन्होंने लगभग हर रैली में महिलाओं, अतिथि शिक्षकों और जीविका दीदी समूहों को संबोधित किया — जिनके लिए हाल में सरकार ने आर्थिक पैकेज और प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की थीं।

नीतीश सरकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए “जीविका योजना”, अतिथि शिक्षकों को मानदेय वृद्धि, और स्व-सहायता समूहों को अनुदान जैसे कदम उठाए।
इन योजनाओं ने चुनाव में बड़ा असर डाला।
महिला वोटर वर्ग ने नीतीश पर भरोसा जताया, ठीक वैसे ही जैसे झारखंड में “मइंया योजना” ने हेमंत सोरेन को महिला वोट दिलाए थे।


🔸 महागठबंधन के वादे और असफल रणनीति

दूसरी ओर, महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव इस बार भी अपने पुराने वादों को लेकर जनता के बीच गए।
उन्होंने नौकरी देने, भ्रष्टाचार खत्म करने और नए युवाओं को अवसर देने का वादा किया, परंतु जनता को यह वादा अधूरा और अव्यवहारिक लगा।

महागठबंधन की रणनीति में कई कमियाँ दिखीं —

  • कैंडिडेट चयन में जातीय असंतुलन,
  • कांग्रेस को ज़्यादा सीटें देने से आंतरिक असहमति,
  • मुस्लिम वोट का सीमित प्रभाव,
  • और तेजस्वी की टीम में अनुभव की कमी

इसके अलावा, मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम घोषित करने के फैसले ने कई अन्य जातियों को नाखुश कर दिया।
मुस्लिम वोट भले महागठबंधन के साथ रहे हों, लेकिन सवर्ण, महादलित और पिछड़ा वर्ग बड़े पैमाने पर एनडीए के साथ जुड़ा रहा।

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🔸 जातीय समीकरण: एनडीए के पक्ष में गोलबंदी

बिहार की राजनीति सदैव जातीय समीकरणों पर टिकी रही है।
इस बार भी एनडीए ने बड़ी सावधानी से सामाजिक समीकरण बनाए रखे
जहाँ महादलित और सवर्ण वोट बैंक पहले से ही एनडीए के साथ हैं, वहीं इस बार कुशवाहा और पासवान समुदाय का भी झुकाव एनडीए की ओर देखा गया।

2020 के चुनाव में चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोलकर एनडीए को नुकसान पहुँचाया था, लेकिन इस बार वह दोबारा गठबंधन के साथ लौटे।
इससे बीजेपी–जेडीयू–एलजेपी (राम विलास)–HAM–आरएलएसपी का संयुक्त मोर्चा और मज़बूत हुआ।


🔸 प्रशांत किशोर का ‘जनसुराज’ फैक्टर: उम्मीद टूटी

चुनाव से पहले बहुत चर्चा थी कि प्रशांत किशोर (PK) की नई पार्टी जनसुराज पारंपरिक राजनीति को झटका देगी।
उन्होंने जाति और समाज के समीकरणों के हिसाब से उम्मीदवार उतारे, लेकिन वह बिहार की जातीय राजनीति की गहराई को तोड़ नहीं पाए।

उनकी रणनीति शहरी इलाकों में चर्चा तो बनी, पर ग्राम्य बिहार में प्रभाव नहीं डाल पाई
जातीय वोटिंग पैटर्न ने जनसुराज को सीमित कर दिया।
इसके अलावा, PK का ब्राह्मण होना भी उनके लिए चुनौती बना, क्योंकि बिहार की राजनीति में अभी भी जातीय पहचान गहरी जमी है।


🔸 सीमांचल में ओवैसी फैक्टर

सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इस बार महागठबंधन को भारी नुकसान पहुँचाया।
जहाँ मुस्लिम वोट पारंपरिक रूप से राजद-कांग्रेस को मिलते थे, वहीं ओवैसी की पार्टी ने उसमें सेंध लगाई।
कई मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवारों ने महागठबंधन के वोट काट दिए, जिससे एनडीए को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हुआ।

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🔸 कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने का नुकसान

महागठबंधन में इस बार कांग्रेस को अपेक्षाकृत अधिक सीटें दी गईं।
लेकिन कांग्रेस का ग्राउंड नेटवर्क कमजोर था और पार्टी स्थानीय स्तर पर सक्रिय नहीं दिखी।
इसका सीधा असर राजद के वोट शेयर पर पड़ा —
जहाँ वोट बैंक महागठबंधन के नाम पर था, वहाँ कांग्रेस के प्रत्याशी पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा सके।

राजद कार्यकर्ताओं में भी असंतोष देखा गया, क्योंकि वे महसूस कर रहे थे कि कांग्रेस को अनुपात से ज़्यादा सीटें मिल गईं।


🔸 मीडिया से दूरी, जनता से नज़दीकी: नीतीश का मौन अभियान

नीतीश कुमार ने पूरे चुनाव में मीडिया से सीधा संवाद करने से बचा, ताकि विपक्ष को उन पर हमला करने का मौका न मिले।
उन्होंने केवल ग्राउंड कनेक्ट पर भरोसा किया
उनकी सभाओं में भीड़ कम थी, लेकिन वोट बैंक मजबूत था।
नीतीश के समर्थक कहते हैं कि “वह प्रचार से नहीं, प्रदर्शन से जीतते हैं।”

महागठबंधन की ओर से जहाँ तेजस्वी यादव मीडिया में सक्रिय दिखे, वहीं नीतीश ने जमीनी कार्यकर्ताओं को सशक्त किया।
इस मौन रणनीति ने एनडीए को फायदा पहुँचाया।

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🔸 महिलाओं का वोट बैंक: निर्णायक भूमिका

बिहार चुनाव में एक बार फिर महिलाओं का वोट निर्णायक साबित हुआ।
सरकार की योजनाएँ जैसे —

  • जीविका समूह
  • साइकिल योजना
  • स्व-सहायता समूहों को ऋण सहायता
  • किचन गार्डन व आत्मनिर्भर महिला अभियान
    ने महिलाओं का विश्वास मजबूत किया।

विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने कहा कि “सरकार ने हमें कुछ दिया, इसलिए हम उसे लौटाएंगे।”
यही भावनात्मक रिश्ता एनडीए के पक्ष में गया।


🔸 विपक्ष के नैरेटिव की कमजोरी

विपक्ष ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद और बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाए,
परन्तु उन्हें जनता के दिल तक पहुँचाने में सफलता नहीं मिली।
विकास के मुद्दे पर विपक्ष कमजोर रहा।
तेजस्वी यादव ने भले कहा कि वे “हर परिवार में नौकरी देंगे”, लेकिन लोगों ने इसे अव्यवहारिक माना।
वहीं नीतीश कुमार ने ठोस योजनाओं और विकास के ट्रैक रिकॉर्ड के जरिए भरोसा जीता।

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🔸 समापन: रुझानों से स्पष्ट जनमत

अगर एग्जिट पोल और ग्राउंड फैक्टर को मिलाकर देखा जाए, तो तस्वीर साफ है —
बिहार की जनता ने इस बार स्थिरता, अनुभवी नेतृत्व और योजनाओं के भरोसे एनडीए को आगे बढ़ाया है।
महागठबंधन ने वादों के सहारे उम्मीदें जगाईं, लेकिन ज़मीनी रणनीति में पिछड़ गया।

चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को आएंगे, लेकिन रुझान साफ बताते हैं कि
नीतीश कुमार और एनडीए की सरकार एक बार फिर सत्ता में लौट सकती है।

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