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Rafale Deal पर सनसनीखेज रिपोर्ट, PMO से हो रही थी समानांतर वार्ता, रक्षामंत्रालय ने किया था विरोध

तो क्या मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में राफेल पर झूठ बोला?

नई दिल्ली,8 फरवरी : #Rafale deal PMO’s parallel negotiation, Defense ministry protest भारत और फ्रांस के बीच 7.87 बिलियन डॉलर की राफेल डील (#Rafale deal) पर एक सनसनीखेज रिपोर्ट सामने आई है जो दिखाती है कि राफेल डील पर वार्ता में PMO की भी भूमिका थी और इसके कारण फ्रांस के समक्ष भारत की नेगोशिएटिंग पोजिशन कमजोर होती चली गई चूंकि PMO का राफेल डील पर फ्रांस सरकार के प्रतिनिधियों से सीधे-सीधे सामानंतर हस्तक्षेप हो रहा था।

इस बात की भनक जब रक्षामंत्रालय को लगी तो उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यलय पीएमओ से विरोध जताया था कि वे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहे है।

इस खबर के साथ ही ट्विटर पर हैशटैग #PakdaGayaModi और #RafaleDeal नंबर वन पर ट्रेंड करने लगा और लोगों ने मोदी को राफेल डील पर लेकर तरह-तरह के ट्वीट किए।

गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को प्रसिद्ध डेली न्यूजपेपर द हिंदू के हवाले से प्रकाशित किया गया है और द हिंदू ने अपनी प्रकाशित रिपोर्ट में रक्षामंत्रालय के वो आधिकारिक दस्तावेज भी प्रकाशित किए है जिनमें स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि राफेल डील वार्ता में पीएम मोदी नित पीएमओ का भी दखल था और रक्षामंत्रायल इसके खिलाफ था।

जबकि कल ही मोदी राफेल डील पर संसद में कांग्रेस पर आरोप लगा चुके है कि कांग्रेस खुद वायुसेना को कमजोर करना चाहती है तभी राफेल डील में घोटाले की बात उठा रही है। ऐसे में इस रिपोर्ट से मोदी के दावे संदिग्ध प्रतीत हो सकते है।

आज ही प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट के अनुसार, रक्षामंत्रालय ने राफेल वार्ता में मोदी नित पीएमओ के सामानंतर वार्ता करने का विरोध जताया था और एक नोट लिखकर इस बात को चेताया था कि राफेल डील पर भारत के रक्षामंत्रालय के साथ-साथ पीएमओ(PMO) द्वारा भी फ्रांस के साथ वार्ता करने से रक्षामंत्रालय (MoD) और भारत (भारत की नेगोशिएटिंग टीम) की स्थिति कमजोर हो गई है।“

#Rafale pe report

रक्षामंत्रालय का यह नोट 24 नवंबर 2015 को तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के ध्यान में लाया गया था।

इस नोट में लिखा है कि “हम PMO को सलाह दे सकते है कि कोई भी अधिकारी जो भारतीय निगोशिएटिंग टीम का हिस्सा नहीं है, वह फ्रांस सरकार के अधिकारियों के साथ समानांतर चर्चा करने से बच सकता है। हम सुझाव देते है कि यदि पीएमओ समझौता ज्ञापन पर रक्षामंत्रालय द्वारा की जा रही नेगोशिएटिंग वार्ता के परिणामों को लेकर आश्वस्त नही है तो उचित स्तर पर पीएमओ की अगुवाई में होने वाली वार्ताओं में की संशोधित तौर-तरीके को अपनाया जा सकता है। ”

मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर 2018  में जो निवेदन किया गया था, उसके अनुसार, राफेल सौदे पर वार्ता सात सदस्यीय दल द्वारा आयोजित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता वायु सेना के उप प्रमुख ने की थी। इन वार्ताओं में पीएमओ के लिए किसी भूमिका का कोई उल्लेख नहीं था।

 ‘द हिंदू’ को उपलब्ध आधिकारिक दस्तावेज, हालांकि, यह बताते हैं कि रक्षा मंत्रालय ने विरोध किया कि पीएमओ द्वारा लिया गया पद “MoD (Ministry of Defense) और वार्ता दल द्वारा उठाए गए रुख के विरोधाभासी था।” तब तत्कालीन रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने इसे अपने हाथों से लिखकर आधिकारिक अधिसूचना बनाया था: अपने हाथ में संकेतन: “आरएम (RM),कृप्या ध्यान दें। यह वांछनीय है कि पीएमओ (PMO) द्वारा इस तरह की चर्चाओं से बचा जाना चाहिए क्योंकि यह हमारी बातचीत की स्थिति को गंभीरता से कमजोर करता है। ”

कड़ा विरोध (Firm opposition)

रक्षा सचिव का कड़ा विरोध 24 नवंबर, 2015 को एसके शर्मा, उप सचिव (वायु-द्वितीय) (Air-II),  द्वारा तैयार किए गए एक नोट पर दर्ज किया गया था और  मंत्रालय में संयुक्त सचिव और अधिग्रहण प्रबंधक (वायु) और महानिदेशक (अधिग्रहण) द्वारा इसका समर्थन किया गया था। ।

नई राफेल डील, जो लंबे समय तक बातचीत के तहत मूल सौदे के लिए बहुत कम थी, अप्रैल 2015 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पेरिस में घोषित की गई थी।

इसके बाद भारत और फ्रांस के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए जब राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने 2016 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली का दौरा किया। 36 राफेल लड़ाकू जेट विमानों के लिए अंतर-सरकारी समझौते पर अंततः 23 सितंबर, 2016 को हस्ताक्षर किए गए थे।

रक्षा मंत्रालय के नोट के अनुसार, पीएमओ द्वारा आयोजित समानांतर वार्ताओं का विवरण केवल 23 अक्टूबर, 2015 को फ्रेंच नेगोशिएटिंग टीम के हेड, जनरल स्टीफन रेब के पत्र से मंत्रालय के ध्यान में आया।

इस पत्र में “प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में संयुक्त सचिव श्री जावेद अशरफ और फ्रांस के रक्षा मंत्री के कूटनीतिक सलाहकार, श्री लुइस वेसी के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत का उल्लेख है, जोकि 20.10.2015 को हुई थी।”

रक्षा मंत्रालय द्वारा जनरल रेब के पत्र को PMO के संज्ञान में लाया गया था। भारतीय वार्ताकार दल के प्रमुख, एयर मार्शल एस. बी. पी. सिन्हा, एवीएसएम वीएम, वायु सेना के उप प्रमुख, ने भी प्रधान मंत्री के संयुक्त सचिव श्री अशरफ को इस बारे में लिखा।

11 नवंबर, 2015 को एयर मार्शल सिन्हा को दिए अपने जवाब में, श्री अशरफ ने “पुष्टि की कि उन्होंने फ्रांस के रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार, श्री लुइस वेसी के साथ चर्चा की थी”, इसके साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति के कार्यालय की सलाह पर “श्री वेसी” ने भी उनसे बात की थी और जनरल रेब के पत्र के संदर्भित मुद्दों पर चर्चा की गई। ”

राष्ट्रपति होलांदे ने सितंबर 2018 में ले मोंडे की रिपोर्ट के अनुसार एएफपी को बताया था, कि “शुक्रवार को मॉन्ट्रियल में एक सम्मेलन के मौके पर एजेंसी फ्रांस-प्रेस द्वारा पूछा गया, हॉलैंड ने कहा कि ‘रिलायंस समूह’ का नाम राफेल सौदे पर बातचीत में ‘नए फॉर्मूला’ के ​​रूप में सामने आया था, जिसका फैसला मोदी सरकार द्वारा सत्ता में आने के बाद लिया गया था।‘

इसमें ‘संदर्भ अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस डिफेंस (Reliance Defence) का था।

रक्षा मंत्रालय के नोट में यह भी कहा गया है कि “फ्रांसीसी रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार और पीएम (PM) के संयुक्त सचिव के बीच समानांतर वार्ता के लिए विचार-विमर्श किया जा रहा है, जबकि रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित भारतीय नेगोशिएटिंग टीम फ्रांसीसी पक्ष के साथ औपचारिक वार्ता की प्रक्रिया का संचालन कर रही है।“

हितों के लिए हानिकारक

Rafale deal PMO’s parallel negotiation, Defense ministry protest reveal by The Hindu exclusive report

इस नोट में आगे लिखा है कि “इस तरह की समानांतर वार्ता हमारे हितों के लिए हानिकारक हो सकती है क्योंकि फ्रांसीसी पक्ष अपने लाभ के लिए इस तरह की चर्चाओं की व्याख्या करके और भारतीय नेगोशिएटिंग टीम द्वारा लिए गए पद को कमजोर करके उसी का लाभ उठा सकता है। इस मामले में ठीक यही हुआ है।“

“एक शानदार उदाहरण” का हवाला देते हुए, रक्षा मंत्रालय ने ध्यान दिलाया कि जनरल रेब ने अपने पत्र में कहा था कि “फ्रांस के रक्षा मंत्री के राजनयिक सलाहकार और प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव के बीच चर्चा के परिणाम को ध्यान में रखते हुए, कोई भी बैंक गारंटी नहीं दी जाती है। सप्लाई प्रोटोकॉल और लेटर ऑफ कम्फर्ट औद्योगिक आपूर्तिकर्ताओं द्वारा सप्लाई प्रोटोकॉल के उचित कार्यान्वयन का पर्याप्त आश्वासन प्रदान करता है।“

नोट में यह भी कहा गया था, “MoD (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस)  के विरोध और भारतीय नेगोशिएटिंग टीम द्वारा अवगत कराया गया है कि कमर्शियल ऑफर को अधिमानी / सरकारी गारंटी या अन्यथा बैंक गारंटी द्वारा समर्थित होना चाहिए।” नोट ने यह भी बताया कि समानांतर बातचीत मध्यस्थता व्यवस्था पर थी।

यह “समानांतर वार्ता” (“parallel negotiations”) का एकमात्र उदाहरण नहीं है जिसमें भारतीय पक्ष ने विरोधाभासी स्थिति ली। यह पहले भी कहीं और बताया जा चुका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अजीत डोभाल(Ajit Doval) ने जनवरी 2016 में पेरिस में फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत की थी और ‘द हिंदू’ के पास ऐसे दस्तावेज है जो इसकी पुष्टि करते हैं।

राफेल सौदे के लिए संप्रभु गारंटी या बैंक गारंटी के लिए श्री पर्रिकर को श्री डोभाल की सलाह को भी तत्कालीन रक्षा मंत्री ने एक फाइल नोटिंग में दर्ज किया था।

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Dharmesh Jain

धर्मेश जैन www.samaydhara.com के को-फाउंडर और बिजनेस हेड है। लेखन के प्रति गहन जुनून के चलते उन्होंने समयधारा की नींव रखने में सहायक भूमिका अदा की है। एक और बिजनेसमैन और दूसरी ओर लेखक व कवि का अदम्य मिश्रण धर्मेश जैन के व्यक्तित्व की पहचान है।

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