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Supreme Court ने ‘नियमों के विरुद्ध बुलडोजर एक्शन’ पर लगाई ‘रोक’;जानें कहां नहीं होगा लागू फैसला

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम फैसला-गैरकानूनी बुलडोजर एक्शन पर नपेंगे अधिकारी,देशभर के लिए जारी गाइडलाइंस

Supreme court guidelines for demolition across country-bans bulldozer action-सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर बड़ा अहम फैसला(Supreme court verdict on bulldozer action) सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि सरकार और अधिकारी मनमाने तरीके से बुलडोजर कार्रवाई नहीं कर सकते।

बुलडोजर एक्शन(Bulldozer Action)के लिए नियमों का पालन किया जाना जरुरी है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर देशभर के लिए गाइडलाइंस भी जारी की(Supreme court guidelines for demolition across country-bans bulldozer action)है।

किसी को दोषी या आरोपी मानकर नियमों के विरुद्ध मनमाने तरीके से सरकार तोड़फोड़ की कार्रवाई नहीं कर(SC bans bulldozer action against rules)सकती।

विध्वंस की कार्रवाई के लिए 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है और नोटिस में बताना जरुरी है कि अवैध निर्माण किस आधार पर तोड़ा जा रहा है। साथ ही इसकी जानकारी जिला प्रशासन को भी दी जाए।

इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court)ने बुलडोजर एक्शन पर अपने फैसले में कहा कि किसी भी शख्स के घर को केवल इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में आरोपी, प्रदर्शनकारी या फिर दोषी है। 

बुलडोजर एक्शन पर 13 नवंबर को सुनाएं गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और निगमों द्वारा नियमों का उल्लंघन कर बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी और देशभर में विध्वंस कार्रवाई के लिए नए दिशानिर्देश भी जारी(Supreme court guidelines for demolition across country-bans bulldozer action)किए।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाया।

शीर्ष अदालत ने बुलडोजर एक्शन पर अपने फैसले में आगे कहा कि यदि किसी निर्माण को नियमों का पालन किए बिना गलत तरीके से तोड़ा गया है तो मुआवजा भी दिया जाए और मनमानी करने वाले सरकारी अधिकारी पर भी कार्रवाई की जा सकती है।

कानून को तांक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यह साफ किया है कि मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दिया है।

तो चलिए बताते है कि क्या है  अनुच्छेद 142 और बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की नई गाइडलाइंस(Supreme court guidelines for demolition across country-bans bulldozer action)।

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क्या है अनुच्छेद 142?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति देता है। आसान भाषा में समझें तो जिन मामलों में अब तक कानून नहीं बन पाया है उन मामलों में न्याय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है।

सिर्फ बुलडोजर एक्शन को लेकर ही नहीं, इससे पहले तलाक के कुछ खास मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 को आधार बनाते हुए फैसला सुनाया था।

90 के दशक से अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 142 ने सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति दी।

हालांकि, जब भी इसे आधार बनाकर फैसला सुनाया जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है कि उस फैसले से किसी और को कोई नुकसान न हो।

अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को दो पक्षों के बीच पूर्ण न्याय करने की विशेष शक्ति प्रदान करता है।

ऐसे मामलों में अदालत किसी विवाद को इस तरह से आगे बढ़ा सकता है जो तथ्यों के अनुरूप हो।

हालांकि, कई बार अनुच्छेद 142 की आलोचना भी की जा चुकी है। तर्क दिया गया कि अदालत के पास व्यापक विवेकाधिकार हैं। लेकिन न्याय को लेकर मनमाने ढंग से इसका दुरुपयोग हो सकता है।

Supreme court guidelines for demolition across country-bans bulldozer action

 

 

सुप्रीम कोर्ट की बुलडोजर एक्शन पर अहम गाइडलाइंस-(Supreme court guidelines for demolition across country)

 

 

1- कोई मनमानी कार्रवाई नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य या अधिकारी द्वारा नियमों के विरुद्ध आरोपी या दोषी के खिलाफ बुलडोजर एक्शन नहीं लिया जा सकता।

 

2- मनमानी हुई तो देना होगा मुआवजा: कोर्ट का कहना है कि अगर राज्य सरकार मनमाने तरीके से दोषी या आरोपी के अधिकार का उल्लंघन करती है तो मुआवजा दिया जाना चाहिए।

 

पीठ ने आगे कहा कि अगर यह पाया गया कि घर अवैध तरीके से गिराया गया है तो, उसके लिए मुआवजा भी मिलेगा। बिना किसी का पक्ष सुने कार्यवाही न की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्राशसन जज नहीं बन सकता।

 

3- मौलिक है घर का अधिकार: कोर्ट का कहना है कि घर सिर्फ एक संपत्ति नहीं होता, यह परिवार की सामूहिक आशाओं का प्रतीक होता है। जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और आश्रय का अधिकार इसका एक पहलू है।

 

4- अधिकारों की रक्षा करना अदालत की जिम्मेदारी: सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण के साथ तीन फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, अगर कानून के खिलाफ जा कर कोई कार्रवाई की जाती है तो अधिकारों की रक्षा करने का काम अदालत का है।

 

5- कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती: कोर्ट ने साफ कहा है कि क्या राज्य सरकार न्यायिक कार्य कर सकती है?

राज्य मुख्य कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकता है। अगर राज्य इसे ध्वस्त करता है तो इसे अन्यायपूर्ण माना जाएगा।

बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के संपत्तियां नहीं तोड़ी जा सकती हैं।

 

 

6. नियमों का पालन जरूरी- कोर्ट ने कहा है कि यह पूरी तरह असंवैधानिक होगा कि लोगों के मकान सिर्फ इसलिए ध्वस्त कर दिए जाएं कि वे आरोपी या दोषी हैं।

कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना ढहाने की कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी और ये कदम या तो स्थानीय नगरपालिका के नियमों के अनुसार निर्धारित समय पर उठाए जाएंगे या फिर नोटिस जारी करने के 15 दिन के भीतर उठाए जाएंगे।

रात के समय महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर घसीटते देखना सुखद दृश्य नहीं है। बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के कोई ध्वस्तीकरण नहीं किया जाना चाहिए, जो या तो स्थानीय नगरपालिका कानूनों में दिए गए समय के अनुसार या सेवा की तारीख से 15 दिनों के भीतर (जो भी बाद में हो) प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

यह नोटिस पंजीकृत डाक के माध्यम से मालिक को भेजा जाएगा और संरचना के बाहरी हिस्से पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, विशेष उल्लंघन का विवरण और डेमोलेशन के आधार शामिल होने चाहिए।

 

 

7-अथॉरिटी को आरोपी को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देना होगा। ऐसी बैठक के विवरण को रिकॉर्ड किया जाएगा। प्राधिकारी के अंतिम आदेश में नोटिसधारी के पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए।

डेमोलशन की प्रक्रिया का वीडियो रिकॉर्डिंग किया जाएगा। डेमोलेशन रिपोर्ट को एक डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

 

 

8-किसी भी निर्देश के उल्लंघन से अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी। अधिकारियों को सूचित किया जाना चाहिए कि यदि ध्वस्तीकरण को निर्देशों के उल्लंघन में पाया जाता है, तो उन्हें ध्वस्त की गई संपत्ति की पुनर्स्थापना के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

अधिकारियों को व्यक्तिगत खर्च पर जवाबदेह ठहराया जाएगा, साथ ही हर्जाने का भुगतान भी करना होगा।

 

 

 

 

अपराध की सजा पूरे परिवार को नहीं- सुप्रीम कोर्ट

बुलडोजर ऐक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आप आरोपी के कारण उसके पूरे परिवार को परेशान नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हमारा यह फैसला किसी एक राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है।

इसके लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि कार्रवाई के लिए नोटिस डीएम को दी जाए।

नोटिस में यह भी बताएं कि यह मकान कैसे अवैध है या कौन सा हिस्सा अवैध है। बेंच ने कहा कि 3 महीने में पोर्टल बनाकर नोटिस साझा किए जाएं।

यही नहीं, अवैध निर्माण को गिराने के लिए पहले से बताना जरूरी है। कोर्ट न कहा कि हमने आर्टिकल 142 के तहत फैसला सुनाया है।

 

 

 

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश कहां लागू नहीं होगा

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि पब्लिक प्लेस के संबंध में अदालत के निर्देश लागू नहीं होंगे। बेंच ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है।

इसके साथ ही कोर्ट का आदेश उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां किसी अन्य कोर्ट ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है।

अदालत के फैसले से साफ है कि सड़क और फुटपाथ बनाने, रेलवे लाइन निर्माण को लेकर किसी अनधिकृत स्ट्रक्चर को गिराया जाता तो उस पर यह फैसला लागू नहीं होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी नदी या जलाशय के किनारे अगर कोई अवैध निर्माण हुआ है या फिर किसी कोर्ट के आदेश से डेमोलेशन का आदेश(Demolition)जारी हुआ है तो भी उक्त निर्देश वहां लागू नहीं होगा।

 

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Supreme court guidelines for demolition across country-bans bulldozer action

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Varsa

वर्षा कोठारी एक उभरती लेखिका है। पत्रकारिता जगत में कई ब्रैंड्स के साथ बतौर फ्रीलांसर काम किया है। अपने लेखन में रूचि के चलते समयधारा के साथ जुड़ी हुई है। वर्षा मुख्य रूप से मनोरंजन, हेल्थ और जरा हटके से संबंधित लेख लिखती है लेकिन साथ-साथ लेखन में प्रयोगात्मक चुनौतियां का सामना करने के लिए भी तत्पर रहती है।

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