itr shayaris shayri-in-hindi india-sayari
वो इत्र की शीशियां
बेवज़ह इतराती हैं खुद पे
हम तो उनके साथ होते है
तो महक जाते है…
जला हुआ जंगल
छिप कर रोता रहा…..
लकड़ी उसी की थी
उस माचिस की तीली में……
मँज़िले बड़ी ज़िद्दी होती हैँ ,
हासिल कहाँ नसीब से होती हैं !
मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं ,
जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैँ !
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