शायरी : वो इत्र की शीशियां बेवज़ह इतराती हैं खुद पे..

हम तो उनके साथ होते है तो महक जाते है...

वो इत्र की शीशियां बेवज़ह इतराती हैं खुद पेहम तो दोस्तों के साथ होते है तो महक जाते है...

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वो इत्र की शीशियां

बेवज़ह इतराती हैं खुद पे

हम तो उनके साथ होते है

तो महक जाते है…

जला हुआ जंगल

छिप कर रोता रहा…..

लकड़ी उसी की थी   

उस माचिस की तीली में……

मँज़िले बड़ी ज़िद्दी होती हैँ ,

हासिल कहाँ नसीब से होती हैं !

मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं ,

जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैँ !

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Sonal: सोनल कोठारी एक उभरती हुई जुझारू लेखिका है l विभिन्न विषयों पर अपनी कलम की लेखनी से पाठकों को सटीक जानकारी देना उनका उद्देश्य है l समयधारा के साथ सोनल कोठारी ने अपना लेखन सफ़र शुरू किया है l विभिन्न मीडिया हाउस के साथ सोनल कोठारी का वर्क एक्सपीरियंस 5 साल से ज्यादा का है l