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“एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर-बुरी माँ” है या नहीं..? कोर्ट ने लिया ऐतिहासिक फैसला

कोर्ट की इस ऐतिहासिक फैसले से "बुरी माँ" का खिताब हटा, बच्चा माँ को मिला

punjab and haryana high court rules extramarital relationship of woman cant define her as bad mother 

नई दिल्ली (समयधारा) : औलाद किसे प्यारी नहीं होती l अक्सर तलाक के चक्कर में औलाद किसके पास रहे इसे लेकर लड़ाई कोर्ट रूम में चली जाती है l

भारत में इसके पीछे कानून काफी अलग है l अक्सर इस केस में 5 साल के नीचे के बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी माँ को मिलती है, 

वही 5 साल के ऊपर के बच्चें की देखभाल की जिम्मेदारी पिता को l कई बार इस लड़ाई में आपसी रिश्तों की भी धज्जियां उड़ा दी जाती है l

बच्चें की देखभाल के लिए एक दूसरें पर लांक्षण लगाना आम बात  है l  पर कुछ फैसले ऐतिहासिक भी होते है l जो एक मिसाल बन जाते है l 

ऐसा ही एक फैसला पिछले दिनों पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लिया l 

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि

एक महिला के विवाहेतर संबंध (Extramarital Affair) उसे बुरी मां (Bad Mother) के रूप में परिभाषित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

punjab and haryana high court rules extramarital relationship of woman cant define her as bad mother 

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि महिला का विवाहेतर संबंध इस बात का आधार नहीं हो सकता कि वह अच्छी मां नहीं है

और ना ही इस आधार पर उसे अपने बच्चे की कस्टडी से रोका जा सकता है।

हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए बुधवार को उसकी साढ़े चार साल की बेटी की कस्टडी महिला को सौंप दी।

कोर्ट का कहना है कि वैवाहिक विवाद में किसी महिला के विवाहेतर संबंधों की वजह से उसके बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का कोई आधार नहीं है।

याचिकाकर्ता महिला ने अपनी साढ़े चार साल की बेटी की कस्टडी के लिए अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी।

बच्ची फिलहाल महिला के अलग रह रहे पति के साथ है। punjab and haryana high court rules extramarital relationship of woman cant define her as bad mother 

जस्टिस अनूपिंदर सिंह ग्रेवाल ने याचिकाकर्ता महिला को बच्चे की कस्टडी देने की मंजूरी देते हुए कहा कि

प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता महिला के चरित्र पर आरोप लगाए हैं कि महिला का अपने किसी संबंधी के साथ विवाहेतर संबंध हैं।

जस्टिस ग्रेवाल ने कहा कि याचिका में इस दावे के अलावा अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री या साक्ष्य पेश नहीं किया गया है, जो इसका समर्थन करता हो।

जस्टिस ग्रेवाल ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं पर लांक्षण लगाना आम धारणा है।

इससे भी बड़ी बात यह है कि बिना किसी ठोस बुनियाद पर महिलाओं को बदनाम किया जाता है।

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कोर्ट ने कहा कि सिर्फ यह की महिला का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है या हो सकता है, के आधार पर यह सिद्ध नहीं किया जा सकता है कि वह बुरी मां है।

इसलिए उसे बच्चे की कस्टडी से भी वंचित नहीं किया जा सकता।

जस्टिस ग्रेवाल ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता महिला के खिलाफ ये आरोप पूरी तरह से निराधार हैं

और इन्हें नाबालिग बच्चे की कस्टडी से जुड़े मामले के फैसले के लिए प्रासंगिक नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि बच्चे को किशोरावस्था के दौरान अपने विकास के लिए मां का प्यार, देखभाल और स्नेह की जरूरत होगी।

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