
PitruPaksha-2025-Shradh-Tithi-Mahatva-Upay
पितृपक्ष यानी श्राद्धपक्ष की शुरुआत 7 सितम्बर से होगी l इस लेख में हमनें पितृपक्ष के लगभग सभी सवालों को कवर करने की कोशिश की है जैसे की..
- पितृपक्ष 2025 की शुरुआत और समाप्ति तिथि
- जिनके पास तिथि उपलब्ध नहीं है उनके लिए कौन-सा दिन श्राद्ध करना उचित है
- श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की परंपरा
- अमीर, सामान्य और गरीब व्यक्ति के लिए श्राद्ध करने के शास्त्रीय उपाय
- पितृदोष निवारण और पितरों को प्रसन्न करने के सरल उपाय
- धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
पितृपक्ष 2025: तिथि, महत्व, श्राद्ध विधि और पितरों को प्रसन्न करने के उपाय
🌿 परिचय
सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा को स्मरण कर श्राद्ध, तर्पण और दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। कहा गया है – “श्रद्धया पितृ तर्यन्ति”, अर्थात पितरों को श्रद्धा और भावना से ही तृप्त किया जा सकता है, न कि केवल धन से।
📅 पितृपक्ष 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार पितृपक्ष 2025 की शुरुआत 7 सितंबर 2025 (रविवार) को भाद्रपद मास की पूर्णिमा से होगी और इसका समापन 21 सितंबर 2025 (रविवार) को अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या) पर होगा।
- आरंभ तिथि: 7 सितंबर 2025, पूर्णिमा (प्रोष्ठपदी पूर्णिमा)
- समाप्ति तिथि: 21 सितंबर 2025, सर्वपितृ अमावस्या
- कुल अवधि: 15 दिन
इन दिनों में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का विधान है।
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🌑 पितृपक्ष का महत्व
पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितरों का आशीर्वाद लेने से –
- परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- व्यापार और नौकरी में उन्नति होती है।
- घर में अन्न, धन और समृद्धि बढ़ती है।
- पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
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🙏 श्राद्ध करने का महत्व
श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं बल्कि पितरों के प्रति कृतज्ञता का भाव है। इस दौरान किए गए दान, तर्पण और पिंडदान का फल सीधा पितरों तक पहुंचता है।
शास्त्रों के अनुसार –
- धनी व्यक्ति – खुले मन से ब्राह्मणों को भोजन कराएं, वस्त्र, अन्न और धन दान करें, पिंडदान करें।
- साधारण आय वाला व्यक्ति – आटा, गुड़, फल, शक्कर, शाक और दक्षिणा देकर ब्राह्मण को भोजन कराएं।
- गरीब व्यक्ति – जल में काले तिल डालकर तर्पण करें और ब्राह्मण को एक मुट्ठी काले तिल दान करें।
- असमर्थ व्यक्ति – यदि कोई श्राद्ध न कर सके तो सूर्य देव को प्रणाम कर पितरों को याद करना भी फलदायी होता है।
🕉️ पितृपक्ष 2025 की खास बातें
- इस बार पितृपक्ष की शुरुआत और समापन दोनों रविवार को हो रहे हैं।
- 21 सितंबर की सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व रहेगा। इस दिन जिनकी तिथि उपलब्ध नहीं है, वे अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं।
- श्राद्ध पक्ष में भगवान विष्णु, यमराज और पितृदेव की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है।
🌼 अगर तिथि न हो तो कब करें श्राद्ध?
बहुत से लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती। शास्त्रों के अनुसार –
- यदि पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो सर्वपितृ अमावस्या (21 सितंबर 2025) के दिन श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
- इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन किया गया तर्पण और श्राद्ध सभी पितरों को तृप्त करता है।
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🔱 श्राद्ध विधि (संक्षेप में)
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का ध्यान करें।
- जल में तिल और कुश मिलाकर तर्पण करें।
- ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति वस्त्र, अन्न या दक्षिणा दें।
- पिंडदान (यदि संभव हो) अवश्य करें।
🌿 पितृदोष निवारण के उपाय
पितृदोष के कारण जीवन में अड़चनें आती हैं। पितृपक्ष में निम्न उपाय करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है –
- प्रतिदिन तिल तर्पण करें।
- गरीबों, गायों और पक्षियों को भोजन कराएं।
- तुलसी के पौधे की पूजा करें।
- गीता का पाठ करें और भगवान विष्णु की पूजा करें।
🌸 सरल उपाय जिनसे पितर प्रसन्न होते हैं
- गाय को हरा चारा खिलाना।
- कौओं को भोजन कराना।
- जल में काले तिल डालकर अर्पण करना।
- ब्राह्मण को वस्त्र या भोजन देना।
- सुबह-सुबह सूर्यदेव को जल अर्पित कर पितरों को प्रणाम करना।
🕯️ धार्मिक मान्यता
शास्त्रों में कहा गया है कि –
“पितृ प्रसन्ने यः सदा देवाः प्रसन्नाः सदा।”
अर्थात जब पितर प्रसन्न होते हैं तो देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं।
इसलिए पितृपक्ष में की गई हर छोटी-बड़ी भक्ति, तर्पण या श्राद्ध पितरों को संतुष्ट करती है और परिवार के लिए शुभ फल लेकर आती है।
📌 निष्कर्ष
पितृपक्ष 2025 का आरंभ 7 सितंबर से होगा और समापन 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या पर होगा। इस दौरान किए गए श्राद्ध और तर्पण से न केवल पितरों की आत्मा तृप्त होती है बल्कि परिवार में सुख, समृद्धि और शांति भी बनी रहती है।
धनवान, सामान्य या गरीब – हर व्यक्ति अपनी शक्ति और श्रद्धा के अनुसार पितरों को प्रसन्न कर सकता है। असली महत्व श्रद्धा और भावना का है।