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ढाका (समयधारा): बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और आवामी लीग की प्रमुख शेख हसीनाको अदालत की अवमानना के मामले में छह महीने जेल की सजा सुनाई गई है। ढाका स्थित इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल (ICT) ने बुधवार को यह बड़ा फैसला सुनाया।
⚖️ इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल-1 का ऐतिहासिक फैसला
यह निर्णय ICT-1 की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनाया, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस मोहम्मद गोलाम मोर्तुजा मोजूमदार कर रहे थे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शेख हसीना ने ऐसे बयान दिए जो न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं और न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं।
बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मामला पिछले साल अक्टूबर में लीक हुए एक फोन कॉल से शुरू हुआ था, जिससे विवाद खड़ा हो गया।
⏳ 11 महीने बाद पहली बार सजा सुनाई गई
यह पहली बार है जब शेख हसीना को, प्रधानमंत्री पद छोड़ने और देश से बाहर जाने के 11 महीने बाद किसी कानूनी मामले में सजा सुनाई गई। इसे बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है।
🔥 मोहम्मद यूनुस और शेख हसीना की पुरानी तनातनी
नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस और शेख हसीना के बीच वर्षों से चली आ रही तनातनी किसी से छुपी नहीं है। यूनुस को जब माइक्रोफाइनेंस मॉडल के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला और उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति बढ़ी, तो यह लोकप्रियता शेख हसीना को पसंद नहीं आई।
इसके बाद उन्होंने यूनुस पर कर चोरी और वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगाए और उन्हें ग्रामीण बैंक से हटाने की कोशिश की। इसके जवाब में यूनुस ने भी कई मंचों पर सरकार की कड़ी आलोचना की।
🏛️ सत्ता पर लंबे समय तक पकड़ और विपक्ष पर कार्रवाई
शेख हसीना को बांग्लादेश की सबसे प्रभावशाली और लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली नेता माना जाता है। हालांकि उन पर यह आरोप भी लगता रहा है कि उन्होंने विपक्षी पार्टियों, खासकर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) को दबाने और कमजोर करने की नीति अपनाई। कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया, रैलियों पर रोक लगी और मीडिया पर सख्त नियंत्रण किया गया।
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🌿 शेख हसीना का राजनीतिक सफर और निजी पृष्ठभूमि
शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को गुपालगंज ज़िले के तुंगीपाड़ा गांव में हुआ। वे बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं।
1975 में हुए सैन्य तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश सदस्य मारे गए थे। उस समय वे और उनकी बहन विदेश में थीं, इसी वजह से उनकी जान बच सकी। उनका राजनीतिक सफर बांग्लादेश की आज़ादी, लोकतंत्र और संघर्षों से गहरे जुड़ा रहा है।