आजादी के 77वें साल में रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिरा,प्रति डॉलर 83.11 रुपये दर्ज
सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रूपया(Rupee Vs Dollar)अभी तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar)गया,जबकि वर्ष 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो एक डॉलर चार रुपये से भी कम में खरीदा जा सकता था।
Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar: 15 अगस्त 2023 को भारत ने अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस(77th Independence day of India)धूमधाम से मनाया लेकिन आजादी के 77वें साल में भारतीय रूपया डॉलर के मुकाबले अभी तक के सबसे निचले स्तर पर गिरकर 83.11 रुपये हो(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar-on-77th-Independence-day-of- India)गया।
सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रूपया(Rupee Vs Dollar)अभी तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar)गया,जबकि वर्ष 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो एक डॉलर चार रुपये से भी कम में खरीदा जा सकता था।
जबकि अब जबकि भारत अपनी आजादी का 77वां जश्न मना रहा है तो डॉलर के मुकाबले रुपये में 29 पैसे की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई।
नतीजा अब एक डॉलर की कीमत बढ़कर 83.11 रुपये हो गई(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar)है।
भारतीय रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले 83-अंक से नीचे खुला, जो अक्टूबर 2022 के बाद से मुद्रा के लिए सबसे कम है जब यह 83.26 के ऐतिहासिक निचले स्तर तक गिर गया था।
यह भारतीय करेंसी का डॉलर के मुकाबले अभी तक का सबसे निम्न स्तर का प्रदर्शन(Indian-Rupee-falls-all-time-low)है।
अवमूल्यन, व्यापार असंतुलन, बजट घाटा, मुद्रास्फीति, वैश्विक ईंधन कीमतें, आर्थिक संकट आदि के कारण डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिरता(Rupee Falls)गया।
रुपये(Indian Rupee)के परिवर्तन की कहानी भारत की बदलती अर्थव्यवस्था की भी कहानी है क्योंकि यह विभिन्न उतार-चढ़ाव से गुज़री।
अपनी साधारण शुरुआत से लेकर वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में एक प्रभावशाली खिलाड़ी बनने तक, भारतीय रुपये का विकास देश की आर्थिक और नीतिगत बदलावों और वैश्विक एकीकरण का प्रमाण है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के आसपास बना हुआ है।
पिछले वर्ष में, भारतीय मुद्रा अस्थिर रही है और रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar)है।
मूल्यह्रास का श्रेय सकारात्मक डॉलर और घरेलू बाजारों में कमजोर रुख को दिया जा सकता है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली का दबाव भी रुपये पर पड़ सकता है।
हालाँकि, स्वतंत्र भारत युग की शुरुआत के बाद से ऐसा नहीं था। आज़ादी के बाद(Independence Day), रुपया ब्रिटिश पाउंड से जुड़ा हुआ था। इससे व्यापार और वित्तीय लेनदेन में स्थिरता पैदा हुई।
दूसरी ओर, इस व्यवस्था ने देश के मौद्रिक लचीलेपन और स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि इसने भारत को अपने आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों के बजाय पाउंड की ताकत पर भरोसा करने के लिए मजबूर किया।
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक निश्चित दर मुद्रा व्यवस्था को अपनाने का विकल्प चुना था। 1948 और 1966 के बीच एक डॉलर के मुकाबले रुपया 4.79 पर आंका गया था।
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21वीं सदी में रुपया
21वीं सदी में रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण की ओर लगातार बढ़ना देखा गया। यह वैश्विक स्तर पर शीर्ष 15 सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्राओं में से एक बन गई।
अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय समझौतों ने वैश्विक मंच पर इसकी प्रमुखता को और मजबूत किया।
हालाँकि, 2008 में दुनिया भर की मुद्राओं को भारी झटका लगा। वैश्विक वित्तीय संकट एक विश्वव्यापी संकट था जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा। महामंदी के बाद यह सबसे गंभीर संकट था।
प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले रुपये में काफी गिरावट आई, जो अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्संबंध और संकट के दौरान उभरते बाजारों की भेद्यता को दर्शाता है।
2010 में मंदी का भी अर्थव्यवस्था पर समान प्रभाव पड़ा, इसलिए मुद्रा में और गिरावट आई।
आज के समय में भारत की मुद्रास्फीति(Inflation)उपभोक्ताओं के साथ-साथ नीति निर्माताओं और निवेशकों के लिए भी चिंता का कारण बनी हुई है।
मुद्रास्फीति, जो अक्सर खाद्य कीमतों और ईंधन की लागत जैसे कारकों से प्रभावित होती है, रुपये के मूल्य के लिए चुनौतियां पैदा करती है।
आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीति में नाजुक संतुलन की आवश्यकता होती है।
नीतिगत दरों में लगातार बढ़ोतरी का असर रुपये की कीमत पर भी पड़ा। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि मंदी से लेकर मुद्रास्फीति तक, पैसे का मूल्य काफी कम हो गया(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar)है।
भारत रुपये को वैश्विक मुद्रा में बदलने की कोशिश कर रहा है, इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना और भारत की वैश्विक ताकत बढ़ाना है।
आरबीआई(RBI)ने पिछले साल से एक दर्जन से अधिक बैंकों को 18 देशों के साथ रुपये में लेनदेन निपटाने की अनुमति दी है।
स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत का हालिया समझौता रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है, पिछले साल रूस ने डॉलर(Dollar)में निपटान पर पश्चिम द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भारत को रुपये में कच्चा तेल बेचने पर सहमति व्यक्त की थी। बांग्लादेश और भारत ने भी रुपये में व्यापार लेनदेन शुरू किया है।
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FII की बिकवाली का भी पड़ा असर
जानकारों का मानना है कि रुपये में यह गिरावट मुख्य तौर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने और विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली की वजह से देखने को मिल रही(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar)है.
भारतीय एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार शुक्रवार को विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने 3,073.28 करोड़ रुपये के शेयर बेचे और कुल मिलाकर नेट सेलर रहे.
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डॉलर के मुकाबले 83.04 पर खुला रुपया
इंटरबैंक फॉरेन एक्सचेंज (Interbank Foreign Exchange) मार्केट में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 83.04 पर खुला और आखिरकार कारोबारी दिन समाप्त होते समय 83.11 (प्रॉविजनल) पर बंद हुआ, जो इसके पिछले बंद भाव की तुलना में 29 पैसे की गिरावट दिखाता(Indian-Rupee-falls-all-time-low) है.
दिन भर कारोबारी सत्र के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया अधिकतम 82.94 तक उछला और फिर 83.11 के सबसे निचले स्तर पर बंद(Indian-Rupee-falls-all-time-low-at-83.11-against-US-dollar) हुआ. शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 16 पैसे गिरकर 82.82 पर बंद हुआ था.
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IIP के उम्मीद से खराब आंकड़े
डॉलर में मजबूती के अलावा घरेलू बाजारों की कमजोरी को भी रुपये में गिरावट की बड़ी वजह माना जा रहा है. बीएनपी पारिबा (BNP Paribas) की इकाई शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा कि भारत में आईआईपी (Index of Industrial Production -IIP) के ताजा आंकड़े उम्मीद से खराब रहे हैं, जबकि अमेरिकी पीपीआई (The Producer Price Index) डेटा अनुमान से बेहतर रहा है.
यही वजह है कि ग्लोबल मार्केट्स में जोखिम से बचने और सुरक्षित निवेश के लिए डॉलर की मांग में तेजी देखने को मिल रही है.
उन्होंने कहा कि “हमें उम्मीद है कि वैश्विक बाजारों में जोखिम से बचने की कोशिश (risk aversion) और अमेरिकी डॉलर में बढ़ोतरी के कारण रुपया नकारात्मक पूर्वाग्रह (negative bias) के साथ कारोबार करेगा. इसके अलावा विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) के आउटफ्लो का असर भी रुपये पर पड़ सकता है. हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में आई ताजा गिरावट से रुपये को निचले स्तर पर कुछ समर्थन भी मिल सकता है.
कारोबारी भारत के इंफ्लेशन के आंकड़ों के आधार पर अपनी आगे की रणनीति बना सकते हैं, जो पिछले महीने के 4.81 प्रतिशत से बढ़कर 6.4 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका है.
चौधरी ने यह भी बताया कि वे कम अवधि (near term) के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के स्पॉट रेट 82.50 से 83.50 के दायरे में रहने की उम्मीद कर रहे हैं.”
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जून में महज 3.7% रहा भारत का IIP
पिछले शुक्रवार यानी 11 अगस्त 2023 को जारी आंकड़ों के मुताबिक जून के महीने में भारत का आईआईपी गिरकर 3.7 फीसदी पर आ गया, जबकि मई में यह 5.2 फीसदी रहा था. यह आईआईपी का तीन महीने का सबसे निचला स्तर है.
इस बीच, 6 करेंसी के बास्केट के मुकाबले डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला डॉलर इंडेक्स 0.01 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी के साथ 102.85 पर पहुंच गया.
वहीं ग्लोबल ऑयल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स (Brent crude futures) 0.28 फीसदी गिरकर 86.57 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गया.