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नयी दिल्ली (समयधारा) : कहते है जब इंसान की इसनियत मर जाती है तब वह इंसान नहीं रहता..!
यानी इंसानियत ही इंसान/मानव को इस संसार में अपनी एक अगल जगह/स्थान पर रखती हैl
अपने हर फैसले को सही बताने के लिए लोग कई लोग कई तरह के तर्क देते है l जैसे…
- उसने ऐसा किया इसलिए मैंने ऐसा किया l
- वह लोग ऐसा नहीं करते तो हम नहीं करते l
- कई लोगों ने मिलकर इस तरह के कांड किये जिसका बदला हमने लिया l
और न जाने कई तरह के तर्क देंगे अपने बचाव में अपनी इंसानियत को मारने के लिए l
जिम्मेदार कौन है..? यह तो बाद की बात है, पर किसी ने खून किया है इसलिए हम भी खून करेंगे यह कहा का न्याय है l
मेरे दोस्त ने कल जो एक कट्टर मुस्लिम है ने अभी-अभी रिलीज़ हुई फिल्म का एक वाकिया मुझे बताया l
मैं उस वाकिया को उसके मुहं से सुन थोड़ा चौक भी गया और थोड़ा मुस्कराया भी l पहले वह वाकिया सुन लीजिए और फिल्म का नाम भी l
फिल्म का नाम है “दे दे प्यार दे पार्ट-2” इस फिल्म की हीरोइन को अपने से 30+ साल बड़े बुजुर्ग इंसान से प्यार हो जाता है l
अब फिल्म की कहानी में हीरोइन के पिता एक पार्टी में अपनी बेटी की तरफ घूरने वाले एक शख्स को पिटते है और कहते है की यह मेरी बेटी है तेरी हिम्मत कैसे हुई उसे घूरने की.. आदि-आदि l
इस पर हीरोइन अपने बॉयफ्रेंड के साथ पार्टी छोड़ निकल जाती है, उसके पीछे-पीछे हीरोइन के माता-पिता भी पार्टी से निकल जाते है l
रास्ते में हीरोइन अपनी कार रोकती है और अपने पापा से पूछती है की अगर आपको मारना था तो पार्टी में उस शख्स की जगह मुझे मारते मेरा गुस्सा किसी और पर निकालने की क्या जरुरत थी l
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- आप डरपोक है, तो बाप कहता है नहीं मैं डरपोक नहीं हूँ..! मैं तुझे गलती करने से रोकना चाहता हूँ..?
- अगर तो अपने से इतने बड़े इंसान से शादी करेंगी तो मेरी इज्जत का क्या होगा..?
“पहलगाम की चीख: क्यों तेरा ज़मीर अब भी सोया है?”
- इस पर हीरोइन कहती है की अगर मेरे शादी करने से आपकी इज्जत को फर्क पड़ता है तो वह आपकी इज्जत नहीं है l
- तब हीरोइन का पिता कहता है… समाज क्या कहेगा l
- इस पर हीरोइन कहती है की समाज की परवाह आप कब से करने लगे l जिस पिता को मैं जानती हूँ वह कभी समाज की परवाह नहीं करता l समाज से पहले आपकी नजर में खोट है..? आप अपनी बेटी को गलत समझ रहे है..? आपने उसपर भरोसा कर एक मौक़ा भी नहीं दिया उसे समझने का उसके प्यार पर भरोसा करने का आप गलत है इसलिए अपनी गलती का ठीकरा आप समाज पर डाल रहे है..? मुझे परवाह नहीं है की समाज क्या कहेगा..? मुझे परवाह यह है की मेरा बाप क्या सोच रहा है…? और आपने अपनी सोच बता दी l
इस वाकिये को मेरे दोस्त के मुहं से सुन मुझे बड़ा ही अच्छा लगा l
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समाज के नाम पर हिंदू हो या मुस्लिम कई लोग वह गलती कर देते है जिसका खामियाजा न सिर्फ उन्हें बल्कि उनकी आने वाली कई पीढ़ियों को कई भाषा के कई जातियों को भुगतना पड़ता है l
इतिहास सिखाता है की हमने यह गलती की है अब तुम यह गलती मत करना l
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इतिहासकार जब इतिहास लिखते है तो वह सिर्फ इसलिए इतिहास नहीं लिखते की लोग उन्हें पढ़े,
वह इसलिए लिखते है की अगर इतिहास में किसी ने कोई गलती कर दी है,
चाहे वो छोटी से छोटी हो या बड़ी से बड़ी उससे सबक ले और फिर यह गलती न करें l
मेरा तजुर्बा तो यही कहता है..? चाहे आप जो समझो उस हीरोइन के लिए अपने से बड़े व्यक्ति से शादी करना उसकी व्यक्तिगत आजादी थी l जिसका सम्मान करना जरुरी था l उसकी इस आजादी की वजह से किसी और को फर्क नहीं पड़ रहा था l पर आपकी किसी एक काम से जो आपकी नजर में सही है पर कई लोगों पर उसका गलत असर होगा तो वह काम करने से बचना चाहिए यह मेरा मत है l
व्यक्तिगत आजादी के खिलाफ मैं नहीं हूँ l पर व्यक्तिगत् आजादी की वजह से में समाज के किसी एक वर्ग की निजता उसकी अखंडता और उसके दुष्प्रभाव पर असर होता है,
तो यह मेरी व्यक्तिगत आजादी नहीं बल्कि मेरा स्वार्थ समाज में अपनी सोच को “थोपने” जैसा होगा l
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यहाँ इन दिनों एक नेता के बाबरी मस्जिद बनाने को लेकर बात कर रहा हूँ l मुझे उसके बाबरी मस्जिद बनाने से कोई परेशानी नहीं न किसी को होनी भी चाहिए l
पर क्या बाबरी मस्जिद बनाने से समाज में व्याप्त हिंदू मुस्लिम के दरम्यान आये फांसले मिट जायेंगे l
कई सालों पहले बाबरी मस्जिद बनने और फिर उसे ध्वस्त करने के बाद जो स्थिति उत्पन्न हुई थी,
उसका खामियाजा आज भी हमारा देश हमारा समाज या खुद मुस्लिम समाज नहीं उठा रहा l
सवाल यह नहीं है की मस्जिद बनेगा या मंदिर..?
सवाल यह है की इससे हमें क्या मिलेगा मेरे समाज को क्या मिलेगा l क्या इस वजह से भाईचारा-प्यार बढेगा l
अगर बढ़ता है तो सबसे पहले उसकी नीवं में मेरी एक ईट भी होगी l मैं भी ख़ुशी-खुशी उसमे शामिल रहूंगा..!
हिंदू मुस्लिम के बीच यह खाई अगर किसी एक नेक काम से पट जाएँ तो जरुर मैं यह काम करूंगा l
पर जिस तरह से बाबरी मस्जिद को लेकर माहौल बनाया जा रहा है वह बेहद ही खतरनाक और समाज में नफरत फैलाने का एक बड़ा हथियार बनता जा रहा है l अब कई लोगों के तर्क है की
- वह बाबरी मस्जिद ही क्यों बना रहा है..?
- उसे उस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद नहीं देना चाहिए..?
- बाबरी मस्जिद अगर हम बना रहे है तो इसमें गलत क्या है..?
- क्या हमें समाज में रहने का अधिकार नहीं है l
- क्या हमें हमारे धर्म को हमारी आस्था को बढ़ाने का अधिकार नहीं है..?
- सबसे बड़ा सवाल क्या बाबरी मस्जिद बनाना सही है.. या गलत..?
अब मैं बारी-बारी से इन सवालों के जवाब दूंगा अपने तर्कों के अनुसार अगर आप को सही लगें या गलत जरुर कमेंट्स करके बताना l
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- वह बाबरी मस्जिद ही क्यों बना रहा है..?
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Murshidabad में TMC निलंबित विधायक Humayun Kabir की Babri Masjid बनाने की परियोजना को कोर्ट ने हरी झंडी दे दी l अब उनकी मस्जिद बनाने की प्रक्रिया को कोर्ट ने गलत नहीं कहा l तो फिर इस पर इतना बखेड़ा क्यों खड़ा किया जा रहा है l
यहाँ बात मस्जिद बनाने की नहीं है विवाद इस पर खडा हुआ है की इस मस्जिद का नाम वह बाबरी ही क्यों देना चाहता है बात मस्जिद बनाने की है ही नहीं बात है बाबरी मस्जिद बनाने की अब कई हिंदू इसे अपनी हिंदू अस्मिता से जोड़कर देख रहे है जो सरासर गलत है..?
आदर्श बनाम सत्ता: भारत रत्न पर वीर सावरकर को फिर क्यों भूली मोदी सरकार…?
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पूरा देश है हर समाज की अपनी एक पहचान है वह चाहे जो करें किसे क्या आपति होनी चाहिए l बाबरी मस्जिद वह अयोध्या से कई किलोमीटर दूर कोलकाता में बना रहा है इसमें किसे क्या आपति होनी चाहिए..?
बल्कि हिंदू समाज को आगे आकर इस नेक काम के लिए उसकी सराहना करनी चाहिए की भाई तूने इतना बड़ा विवाद चंद मिनटों में निपटा दिया l अगर पहले ही यह काम कर लिया होता तो 6 दिसंबर की वह तारीख हमारे सीने में नहीं चुभती l बाबरी मस्जिद का विवाद ही जन्म नहीं लेता..? अगर में गलत हूँ तो आप बताओ l
दोस्तों बात होती है नजरिये की नजरिया सही हो तो हर सवाल का जवाब है..!
कहते है न IMPOSSIBLE में ही छुपा होता है I M POSSIBLE
अब बात करतें है दूसरें सवाल की क्या उस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद देना चाहिए..?
अब नाम की बात आती है तो मस्जिद का कुछ तो नाम होगा न जैसे जामा मस्जिद फला मस्जिद या फिर कोई भी मंदिर हो उसे राधाकृष्ण मंदीर आदि-आदि l
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अब अगर वह उसे बाबरी मस्जिद नाम दे भी रहा है मुस्लिम समाज अगर उसका नाम बाबरी मस्जिद रख भी रहा है तो क्या गलत है l इसमें कुछ भी गलत नहीं है यह उनकी आस्था है ,उनका समाज है, उनका मसला है,
वह उसका नाम बाबरी रखें या कुछ और इस पर भारत सरकार या हिंदू समाज या किसी और का कोई हक़ नहीं यह उस धर्म के लोगों की आजादी है l आप किसी भी धर्म की आजादी नाह छीन सकते l
गांधी जयंती – मैंने ये गलती की..?
आप बिना कोई तर्क दियें बिना वजह किसी को कोई भी निर्देश नहीं दे सकते..? इसीलिए तो माननीय कोर्ट ने इस मस्जिद को बनाने की अनुमति दी l
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अगर कोर्ट को लगता की बाबरी मस्जिद बनाने से समाज के किसी भी वर्ग को तकलीफ हो रही है तो वह इसे अपने ऊपर की कोर्ट को रेफ़र कर देता,
या फिर इस पर निर्णय सुनाने से पहले दूसरें समाज को जरुर अपोनी बात रखने का पक्ष देता..?
पर कोर्ट ने ऐसा नहीं किया l इसका मतलब साफ़ है की हम किसी की आजादी को छीन नहीं सकते l
उच्च शिक्षा या टेक्नोलॉजी नहीं आज भी बच्चों के भविष्य की बुनियाद है ‘माँ’
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यह तो वही हुआ पड़ोसी के यहाँ बेटा हुआ उसने अपने बच्चें का नाम रावण रखा आप अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रख सकते..?
भाई बच्चा उसका मर्जी उसकी आप/हम कौन होते है उसके बच्चे का नाम रखने या न रखने वाले l इस उस पिता पर निर्भर करता है की वह अपने बच्चे का क्या नाम रखे उसे रावण के “अच्छे गुण” दिखे..l
वह उसे महान पंडित बनाना चाहता है… इसलिए उसने उसका नाम रावण रखा यह उसका तर्क है,
और मैं उसमे सहमत भी हूँ…l
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जैसे आप श्रीलंका में जाएँ तो जानेंगे की वहा पर कई लोगों के नाम रावण है l वह लोग आज भी रावण को पूजते है यह उनका नजरिया है l यह गलत नहीं है l …?
अब मैं आप लोगों से एक बात पूछता हूँ जो लोग इस बाबरी मस्जिद बनाने के खिलाफ है अगर यह मस्जिद बांग्लादेश या किसी भी अन्य देश में बनता तो क्या वह इसी तरह इसका प्रतिरोध करतें जिस तरह से भारत में कर रहे है..? क्या उस देश में जाकर उस देश के सत्ता पक्ष से कहते की भाई मस्जिद बनाना है तो बनाओ पर उसका नाम बाबरी मस्जिद मत रखो..??
नहीं ना..?
यही लोग जो इस समय बाबरी मस्जिद के खिलाफ खड़े हो कर इस विवाद को हवा दे रहे जरा उनसे सवाल कीजिए,
जब मणिपुर कांड या फिर बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार या फिर समाज में किसी के भी ऊपर हो रहे अत्याचारों पर मूक दर्शक बनकर क्यों खड़े हो जाते है l
इनकी आवाज तब कहाँ चली जाती है जब किसी औरत की इज्जत को जब किसी भी धर्म की माँ-बेटी को सरेआम रुसवा किया जाता है l
भेड़ चाल में चलना आसान है l पर सही-गलत पर “सही और बेबाक राय देना मुश्किल है “l
कई लोग मुझे गलत मानेंगे पर मैं यहाँ बिलकुल सही हूँ …?
परिपक्वता(Maturity) क्या है..? जाने इसकी सही परिभाषा
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भेड़ चाल का हिस्सा न मैं पहले था न मुझे बनने का कोई शोक है l
मुझे राममंदीर पसंद है, मैं जैन हूँ मुझे जैन धर्म पसंद है, मैं हिंदू धर्म को मानता हूँ मुझे हिंदू धर्म पसंद है,
पर मुझे जो पसंद है इसलिए मैं किसी दूसरें की पसंद को नापसंद करूं यह गुनाह है यह गलत है..?
- बाबरी मस्जिद अगर हम बना रहे है तो इसमें गलत क्या है..?
- क्या हमें समाज में रहने का अधिकार नहीं है l
- क्या हमें हमारे धर्म को हमारी आस्था को बढ़ाने का अधिकार नहीं है..?
इन सब सवालों के जवाब एक ही है गलत नहीं है l आपका या किसी भी समाज का अपने धर्म को लेकर आस्था को लेकर आगे आना मंदिर/मस्जिद/गुरुद्वारा/जैन मंदिर/चर्च बनाना गलत नहीं है l
2 अक्टूबर गांधी जयंती विशेष : ब्लैक एंड व्हाइट ज़माने से आज के रंगबिरंगे गांधी
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हर समाज को अपने धर्म को बढ़ाने का उसका मौलिक अधिकार है l उन्हें समाज में रहने का उतना ही अधिकार है जितना हमारा l
पर बात आती है मंशा की टाइमिंग की ईद पर दिवाली पर क्रिसमस पर आप मिठाइयाँ बाते घर में बच्चा हो शादी हो खुशियाँ मनाये सही है l
पर किसी के घर में मौत हो और उसके घर के बाहर आप पटाखें फोड़ें तो यह गलत है आप इंसान नहीं रहे..l
जो गलत करें उसकी गलती पर आप भी गलती करों और तर्क दो की उसने ऐसा किया इसलिए मैंने ऐसा किया यह गलत हैl
जवाब जब सही या गलत का हो तो कभी-कभी सिर्फ सही को सही कहना या गलत को गलत कहना भी उतना ही हानिकारक या लाभदायक है जितना बिना परिस्थिति को समझे बिना वजह को जाने उस पर निर्णय दे देना..?
अब बात करतें है अंतिम सवाल की
- सबसे बड़ा सवाल क्या बाबरी मस्जिद बनाना सही है.. या गलत..?
मेरे अपने मत हो सकते है मेरा अपनी राय हो सकती है पर इस सवाल का जवाब तो आपको देना है क्यों जो तर्क मैंने दिए जो सवाल मैंने उठाये उसका विश्लेषण तो मैंने अपने इस लेख में कर दिया है l और जिसने भी यह आर्टिकल पढ़ा है वह मेरे जवाब को समझ भी गया l है l
पर यहाँ इस सवाल का जवाब अब मुझे आपसे चाहिए मुझे मेल करें… मुझे कमेंट्स करें मुखे ट्विटर पर फेसबुक पर अपनी राय दे आप चाहे जो भी हो अपने जवाब पर मुझे तर्क दे मुझे बताएं की क्यों आप इस जवाब के साथ हो l
सार्थक बहस का मैं स्वागत करूंगा और आपके हर सवाल का जवाब भी दूंगा..? पर जवाब दे न की…?
आज 6 दिसंबर को मेरे इस आर्टिकल पर अपना बेबाक जवाब तर्क के साथ दे और समयधारा से जुड़े रहे l
कौन कहता है कि 60 के ठाठ है?…यही से तो जिंदगी के नए संघर्षो की शुरुआत है….
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