
Corona’s Fear or Kalyugi Colony Blog on humanity
नई दिल्ली (समयधारा) : इस कोरोना के भयावह दौर में हम अपनी इंसानियत को भूल चूके है l
आप आये दिन अखबार में या फिर सोशल मीडिया पर ऐसी ख़बरें पढ़ते तो होंगे, जहाँ इंसानियत को तार-तार होते हुए देखा होगा l
कई इंसानों को अपना ज़मीर बेचते देखा होगा l उस पर तुर्रा यह कि जी! हम तो भगवान के बन्दे है l कभी गलत नहीं करते l
दोस्तों लोग कितने बदल गए है। उसका एक उदाहरण हम दिल्ली की एक कॉलोनी की सच्ची घटना बताते है l
पिछले दो साल से दिल्ली,मुंबई हो या फिर भारत का कोई अन्य महानगर लॉकडाउन वहां लगा है l
जिसके चलते लोग अपने घरों में कैद हो कर रह गए है l कई लोगों का काम-धंधा छूट गया है l ऐसे में हम अप्रैल महीने की इस सच्ची घटना के बारे में बताते है l
पहले हम कालकाजी स्थित इस मोहल्ले के बारे में बता दें l डीडीए फ्लैट्स कालकाजी में करीब-करीब कई ब्लाक है l
इसी में ‘ए’ ब्लॉक भी है l यहाँ पर 40 से 50 परिवार रहते है l दिखने में तो यह एक आम कॉलोनी जैसे ही है l
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पर यहाँ के रहने वाले लोग अपने आप को समाज का हिस्सा मानते है l कहने का मतलब यह है कि वे सोसाइटी के लिए कुछ भी कर सकते है..!
यहाँ के रहने वाले लोग अपने आप को दूसरों के लिए हमेशा मदद करने वाला मानते है l
सही है भाई! पहली नजर में सब अपने आप को अच्छा ही तो बताएँगे l चाहे इसमें मैं भी क्यों न हूं l पर कहानी यहाँ कुछ और है।
इस कॉलोनी में पिछले दिनों 2 से 3 लोगों की मौत हो गयी l अभी अप्रैल में एक वृद्ध अपाहिज 82 साल की महिला की भी मौत हुई l
महिला की मौत एकादशी के पवित्र दिन हुई l हिन्दू धर्म में ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जिस किसी व्यक्ति की भी मृत्यु होती है, वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है l
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यहाँ माजरा यह है कि इस महिला की मृत्यु पर उसके दोनों कलयुगी पुत्र नहीं आये। इतना ही नहीं, नौ औलादों में से सिर्फ 4 बेटियां ही अंत्येष्टि में शामिल हुई l
सबसे छोटी बेटी जो अविवाहित थी, उसी ने अपनी माँ का दाह-संस्कार किया l
कॉलोनी में रहने वाले लोगों में, किसी के भी घर से कोई भी व्यक्ति महिला के घर शोक प्रकट करने नहीं आया l
बहाना, सभी ने यही दिया की कोरोना से महिला की मौत हुई है, पर सच्चाई तो सभी जानते थे कि महिला की मौत स्वाभाविक तरीके से हुए थी न की कोरोना से l
लेकिन सभी को तो जैसे न आने का बहाना चाहिए था, सो उन्होंने किया l
जिसकी मौत में उसके बेटे-बेटियां नहीं आये, वहां मोहल्ले वाले न आये तो क्या बड़ी बात है l
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पर ये वही मोहल्ले वाले है, जो महिला के साथ पिछले 20-25 सालों से रह रहे है l महिला के बर्थडे पर गिफ्ट लेकर जाते थे l
महिला की अविवाहित बेटी व भावी दामाद से हमेशा चेहरे पर मुस्कान ला शिष्टाचार निभाते थे l पर उसकी मौत पर दो आंसू बहाने नहीं आये l
आज मैं इन्ही लोगो को लेकर एक कविता के माध्यम से अपना दर्द बयान करना चाहता हूँ l
चूंकि कोरोनाकाल में संस्कारों का अकाल केवल इस कॉलोनी में ही नहीं बल्कि देश के कितने ही राज्यों और उनकी कॉलोनियों में हम आएं दिन देख रहे है।
आप जरुर यह कविता पढ़े और अपने कॉमेंट्स हमें लिखकर भेंजे l
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एक मोहल्ले का मैं भी हिस्सा हूँ,
जहाँ 40-50 परिवारों के बीच, सबका प्यारा हूँ l
वक्त ने कोरोना की मार-मारी,
मुंह पर मास्क और आपस में दूरियां बढ़ाई l
फिर भी मुझसे, लोगों ने प्यार खूब बढ़ाया,
लॉकडाउन में किसी ने दूध, तो किसी ने मुझसे राशन मंगवाया l
डरे-डरे से जब लोग, मुझसे अपना काम करवाते,
सच मानो मुझे, अपनों से भी ज्यादा अपनेपन का एहसास कराते l
पर वक्त की मार ने, मेरा यह भ्रम भी टूटवाया।
इन्हीं लोगों से माँ की मौत पर, इनका कड़वा सच दिखलाया l
कभी माँ के बर्थडे पर, इन्हीं लोगों का घर में लगता था मेला
आखिरी वक्त पर, मैं रहा इन्हीं ‘अपनों’ के बीच ‘अकेला’ l
जिनका गुणगान करते-करते, थकते नहीं थी मेरी ज़ुबान
ये मोहल्ल्ला बना इस कलयुग में, स्वार्थ की नई पहचान l
हद तो तब हो गयी जब (Corona’s Fear or Kalyugi Colony Blog on humanity)
एक पड़ोसी ने न आने का, कोरोना से हुई मौत का बहाना बना डाला
जिसको दिया था माँ ने राशन, उसने ही पीठ में खंजर घोंप डाला l
स्वाभाविक मौत को भी मोहल्लेवालों ने, कोरोना का नाम दे डाला
स्वार्थवश न आने का, कोरोनावाला जामा पहना डाला l
अपने और परायों में, मैंने हमेशा इन्हें ‘चुना’
इन्होंने मेरी भलाई को, अपने स्वार्थ का हथियार चुना l
लॉकडाउन में इन्होंने, अपना काम निकलवाया
मेरी माँ की मौत पर इन्होंने, आकर एक फूल भी न चढ़ाया l
क्या यह स्वार्थी मोहल्ले वाले, मेरी मौत पर भी यही चेहरा दिखलायेंगे
अपने घर से सिर्फ दो कदम चल, मेरी अर्थी पर कभी फुल भी चढ़ाएंगे l
इस मोहल्ले में मौत न हो मेरी, बस यही दुआं खुदा से मांगूगा,
मुर्दों की बस्ती में मेरी हस्ती न, हो बस यही चाहूँगा l
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