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हिंदू उत्तराधिकार कानून क्या महिलाओं से करता है भेदभाव? सुुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से तलब किया जवाब

सुप्रीम कोर्ट में हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई है याचिका में  प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें विवाहित महिला की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति विरासत के तौर पर उसके पति के पक्ष को देने का प्रावधान किया गया है।

नई दिल्‍ली:Is-Hindu-Succession-Act-gender-bias-Supreme-Court-seeks-Centre’s-view-क्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम(Hindu Succession Act)लैंगिंक भेदभाव करताहै?

इसके प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से जवाब देने को(Is-Hindu-Succession-Act-gender-bias-Supreme-Court-seeks-Centre’s-view) कहा।

अपने जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते का समय प्रदान किया है।जिसमें विफल रहने पर पीठ ने कहा कि वह मामले की अंतिम सुनवाई के साथ आगे बढ़ेगी।

इस तथ्य के बावजूद कि चार साल पहले दिसंबर 2018 में मामला दर्ज किया गया था, सरकार ने कोई जवाब दाखिल नहीं किया था।

अदालत ने जनवरी 2022 में मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा को न्याय मित्र नियुक्त किया था।

इस याचिका पर दोबार सुनवाई सुप्रीम कोर्ट चार हफ्ते बाद करेगा।

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जानें क्या है मामला?

कमल अनंत खोपकर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 15 और 16, जो हिंदू महिलाओं की स्व-अर्जित और विरासत में मिली संपत्तियों से संबंधित है, “गहरी जड़ें पितृसत्तात्मक विचारधारा का खुलासा करती है।

अधिवक्ता मृणाल दत्तात्रेय बुवा और धैर्यशील सालुंखे द्वारा प्रस्तुत याचिका, 1956 के अधिनियम की धारा 15 की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जो वास्तव में यह बताती है कि पति के वारिसों का एक महिला की स्व-अर्जित संपत्ति पर पहला अधिकार कैसे होता है, जो मर जाती है।

यानी पति का परिवार विरासत की पंक्ति में पहले आता है, मृत महिला के अपने माता-पिता से भी पहले।

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सुप्रीम कोर्ट में हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई है याचिका में  प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें विवाहित महिला की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति विरासत के तौर पर उसके पति के पक्ष को देने का प्रावधान किया गया है।

यानी महिला के अपने माता- पिता के परिवार से पहले महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय और गरिमा को सुरक्षित करने की दलील दी गई है।

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याचिका में कहा गया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धाराएं “असंवैधानिक” हैं और लैंगिक समानता का उल्लंघन करती हैं।

कोर्ट को हिंदू महिलाओं(Hindu women) की ओर से  हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि जहां समाज लैंगिक समानता की ओर बढ़ रहा है, वहीं हिंदू उत्तराधिकार कानून लिंग के आधार पर भेदभाव करता है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है।

याचिका में कहा गया है कि ये याचिका  हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों में “गहरी जड़ वाली पितृसत्तात्मक विचारधारा का खुलासा करती है।

इस तरह के मुद्दों को सामने रखती है कि  मृत महिला के पति का परिवार उसके माता-पिता से भी पहले विरासत की पंक्ति में  आता है। ये प्रावधान बड़े पैमाने पर पुरुष वंश के भीतर संपत्ति को बनाए रखने का प्रबंधन करते हैं।

यह अप्रासंगिक है कि इस प्रथा को पर्सनल लॉ या धर्म के आधार पर स्थापित किया गया था या इसे संहिताबद्ध किया गया है या नहीं।

यदि यह लैंगिक समानता का उल्लंघन करता है, तो इसे चुनौती दी जा सकती है।

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