Same-Sex Marriage Verdict-समलैंगिक विवाह-SSM को मान्यता देने से कोर्ट का इंकार, बच्चा गोद लेने का अधिकार

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अपना फैसला सुनाते हुए समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया। CJI ने कहा कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है, हालांकि, चीफ जस्टिस ने समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है।

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नईं दिल्ली (समयधारा) :  Same-Sex Marriage Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज यानी समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अपना फैसला सुनाते हुए समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया।

CJI ने कहा कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है। हालांकि, चीफ जस्टिस ने समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है।

CJI ने केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिक कपल्स के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेश समलैंगिक समुदाय के संघ में प्रवेश के अधिकार के खिलाफ भेदभाव नहीं करेंगे। 

CJI ने कहा कि यह कोर्ट कानून नहीं बना सकता, सिर्फ व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है।

स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।

CJI ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो और सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया।

साथ ही चीफ जस्टिस ने कहा कि सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी।

इसके अलावा हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर ‘गरिमा गृह’ बनाएगी और

यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए।

CJI चंद्रचूड़ ने कहा, केंद्र सरकार समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारियों को तय करने के लिए एक समिति का गठन करेगी।

यह समिति राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को ‘परिवार’ के रूप में शामिल करने,

समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करेगी।

समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।

CJI चंद्रचूड़ ने कहा, केंद्र सरकार समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारियों को तय करने के लिए एक समिति का गठन करेगी।

यह समिति राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को ‘परिवार’ के रूप में शामिल करने,

समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने,

पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिकता सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है।

बल्कि गांव में कृषि कार्य में काम करने वाली एक महिला भी समलैंगिक हो सकती है।

पीठ ने कहा कि ये कहना कि विवाह की संस्था स्थिर और अपरिवर्तनीय है, सही नहीं है। विवाह की व्यवस्था में कानून के द्वारा बदलाव किया गया है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिक कपल्स को भी सामान्य लोगों की तरह उनको उनका अधिकार मिलना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक कपल्स को विवाह करने का अधिकार है। समलैंगिक कपल को बच्चा गोद लेने का भी अधिकार है।

याचिका का विरोध करने वालों की दलील थी कि समलैंगिक कपल्स बेहतर पैरेंट नहीं हो सकते।

इस पर CJI ने कहा कि यह तर्क सही नहीं है कि समलैंगिक कपल्स बेहतर पैरेंट नहीं हो सकते। इसकी कोई स्टडी नहीं है कि सामान्य कपल बेहतर पैरेंट होते हैं।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है।

कोर्ट को संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल देने में सावधानी बरतनी चाहिए।

सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का आग्रह करने वाली

याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा कार्रवाई का सही तरीका नहीं हो सकती।

क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में सक्षम नहीं होगी।

केंद्र ने अदालत को यह भी बताया था कि उसे समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर 7 राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं।

राजस्थान, आंध्र प्रदेश तथा असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के याचिकाकर्ताओं के आग्रह का विरोध किया है।

शीर्ष अदालत ने मामले पर सुनवाई 18 अप्रैल को शुरू की थी।

याचिकाओं में विवाह की कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की गई थी।

केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया था। केंद्र ने जोर देकर कहा था कि समलैंगिक विवाह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है। 

केंद्र ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि सामाजिक नैतिकता के विचार विधायिका की वैधता पर विचार करने के लिए प्रासंगिक हैं।

केंद्र की प्रतिक्रिया हिंदू विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम और अन्य विवाह कानूनों के कुछ प्रावधानों को इस आधार पर

असंवैधानिक बताते हुए चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आई कि वे समान जेंडर वाले जोड़ों को विवाह करने से वंचित करते हैं।

एक हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि शादी की धारणा ही अनिवार्य रूप से विपरीत जेंडर के दो व्यक्तियों के बीच एक संबंध को मानती है।

यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के विचार और अवधारणा में शामिल है।

इसे न्यायिक व्याख्या से कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।

हलफनामे में कहा गया था कि विवाह संस्था और परिवार भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं,

जो हमारे समाज के सदस्यों को सुरक्षा, समर्थन और सहयोग प्रदान करती हैं।

बच्चों के पालन-पोषण और उनके मानसिक और मनोवैज्ञानिक पालन-पोषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी समाज में पार्टियों का आचरण और उनके परस्पर संबंध हमेशा व्यक्तिगत कानूनों,

संहिताबद्ध कानूनों या कुछ मामलों में प्रथागत कानूनों धार्मिक कानूनों द्वारा शासित और परिचालित होते हैं।

इसमें यह भी कहा गया कि समान जेंडर के व्यक्तियों के विवाह का रजिस्ट्रेशन भी मौजूदा व्यक्तिगत के साथ-साथ संहिताबद्ध कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

हलफनामे में कहा गया था कि एक पुरुष और महिला के बीच विवाह के पारंपरिक संबंध से ऊपर कोई भी मान्यता,

कानून की भाषा के लिए अपूरणीय हिंसा का कारण बनेगी।

(इनपुट एजेंसी से)

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