शायरी : जाने कौन सी शौहरत पर आदमी को नाज़ है, जो खुद-आखरी सफर के लिए भी, औरों का मोहताज़ है.
बंजर नहीं हूं मैं.... मुझमें बहुत सी नमी है......! दर्द बयां नही करता.... बस इतनी सी कमी है.....!!!
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जाने कौन सी शौहरत पर
आदमी को नाज़ है….
जो खुद, आखरी सफर के लिए भी
औरों का मोहताज़ है.
बंजर नहीं हूं मैं….
मुझमें बहुत सी नमी है……!
दर्द बयां नही करता….
बस इतनी सी कमी है…..!!!!
अहमियत
*उनकी ज्यादा होती है…
अहम
*जिनमें कम होते हैं.!…
जिंदगी मुझको “सा रे ग म”
सुना कर गुदगुदाती रही..
मैं कम्बख़्त उसको “सारे गम”
समझ कर कोसता रहा…!!
रब ने न जाने कितनों की
तकदीर संवारी है,
काश आज वो मुस्कुरा के कह दे,
आज मेरी बारी है..!
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( इनपुट सोशल मीडिया से )