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Sunday Thoughts: दूसरे के लिए कितना ही मरो, तो भी अपने नहीं होते।

पानी तेल में कितना ही मिले, फिर भी अलग ही रहेगा।

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दूसरे के लिए कितना ही मरो, तो भी अपने नहीं होते।
पानी तेल में कितना ही मिले, फिर भी अलग ही रहेगा।

 

“धर्म खतरे में है” और “संस्कृति खतरे में है” का नारा, तो दरअसल,
भोली-भाली जनता को बहकाने के लिए लगाया जाता है।
धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें,
तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है।
प्रेमचंद
सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है,
आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।
प्रेमचंद
कोई अन्याय केवल इसलिए मान्य नहीं हो सकता,
कि लोग उसे परम्परा से सहते आये हैं।
प्रेमचंद

खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।

प्रेमचंद

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Dropadi Kanojiya

द्रोपदी कनौजिया पेशे से टीचर रही है लेकिन अपने लेखन में रुचि के चलते समयधारा के साथ शुरू से ही जुड़ी है। शांत,सौम्य स्वभाव की द्रोपदी कनौजिया की मुख्य रूचि दार्शनिक,धार्मिक लेखन की ओर ज्यादा है।

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