चैरिटेबल अस्पतालों को Covid-19 से संक्रमित मरीजों का इलाज मुफ्त करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का सरकार को निर्देश प्राइवेट अस्पताल की पहचान करें जो मुफ्त में कोरोना का इलाज करें
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नई दिल्ली (समयधारा) : देश में कोरोनावायरस (Coronavirus) के मामले बढ़कर 1.60 लाख के करीब पहुंच गए हैं।
इस महामारी से अब तक 4500 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
हालात की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि,
वह उन प्राइवेट अस्पतालों की पहचान करें जो Covid-19 से संक्रमित मरीजों का इलाज मुफ्त या कम खर्च में कर सकें।
भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और ऋषिकेश रॉय को मिलाकर बनी बेंच ने सरकार को निर्देश दिया है कि,
वो ऐसे अस्पतालों की पहचान करे जो कोविड मरीजों का मुफ्त या मामूली फीस पर इलाज कर सकते हैं। इस बेंच ने इस मुद्दे पर सरकार से जवाब भी मांगा है।
चीफ जस्टिस एसए बोब्दे की अगुवाई में तीन जजों की एक बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के दौरान यह पाया कि,
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जिन निजी अस्पतालों को मुफ्त या कम दाम पर जमीन मिली है वे कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज मुफ्त या कम खर्च में करें।
बेंच ने इस मामले में सुनवाई के करीब 1 हफ्ते के बाद यह मामला पोस्ट किया।
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बेंच ने कहा है, “चैरिटेबल अस्पतालों को Covid-19 से संक्रमित मरीजों का इलाज मुफ्त करना चाहिए।”
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याचिककर्ता ने अपनी याचिका में उन मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि,
कुछ प्राइवेट अस्पताल COVID-19 मरीजों से भारी भरकम फीस वसूल रहे हैं जिसके परिणाम स्वरुप इंश्योरेंस कंपनियां भी तमाम मेडिक्लेम रिजेक्ट कर रही हैं।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक बहुत सारे प्राइवेट अस्पतालों को चैरिटेबल अस्पताल के तौर पर,
सरकार की तरफ से मुफ्त या बहुत कम कीमत पर जमीनें उपलब्ध कराई गई हैं।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इन चैरिटेबल अस्पताल को COVID-19 मरीजों का मुफ्त इलाज करना चाहिए।
केंद्र सरकार की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने कहा कि,
इस मुद्दे पर सरकार को ध्यान देना होगा क्योंकि यह एक नीतिगत मामला है। इसपर सरकार के निर्देश की जरुरत है।
इस मामले की सुनवाई 1 हफ्ते के लिए टाल दी गई है।
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इसके पहले भी शीर्ष अदालत ने प्राइवेट अस्पतालों द्वारा COVID मरीजों से की जा रही भारी-भरकम वसूली पर दाखिल की गई एक
और याचिका की सुनवाई करते हुए इसपर केंद्र सरकार की राय मांगी थी।
हालांकि यूनियन हेल्थ मिनिस्ट्ररी को निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि,
वह प्राइवेट अस्पतालों का पक्ष सुने बगैर इस मुद्दे पर अपना कोई निर्णय नहीं देगा।
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निजी अस्पतालों की चिंता बढ़ गई है। उन्हें डर है कि इससे उनके संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, मेडिका ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के चेयरमैन और फिक्की हेल्थ सर्विस कमिटी के चेयर आलोक राय ने कहा,
“अगर सरकार हमारे खर्चे उठाने को तैयार हैं तो हम खुशी से कोरोनावायरस मरीजों का इलाज मुफ्त करेंगे।
हमें लोगों को सैलरी देनी पड़ती है। प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट खरीदने पड़ते हैं।
ऐसे में मुफ्त इलाज के साथ हेल्थकेयर सेक्टर का सर्वाइव करना मुश्किल हो जाएग।”
कोरोनावायरस संक्रमण के मामले बढ़ने के साथ-साथ सरकार भी अपनी क्षमता बढ़ा रही है।
उदाहरण के तौर पर सरकार ने हाल ही में 15,000 वेंटिलेटर्स का ऑर्डर दिया था। इससे पहले भी सरकार ने 20,000 वेटिंलेटर्स खरीदा था।
देश भर में प्राइवेट अस्पतालों में 8.50 हजार बेड हैं। इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक, यह देश के कुल बेड के 50% से भी ज्यादा है।
इनमें से 1-1.50 लाख बेड टेरिटरी केयर के लिए हैं। किसी टेरिटरी केयर हॉस्पिटल में कुल बेड का 20 फीसदी ICU के लिए है।
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