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बलराज साहनी की जीवनी: जन्म, करियर, फिल्में और योगदान

आम आदमी की पीड़ा और परेशानियों को पर्दे के माध्यम से दुनिया के सामने रखने वाले अभिनेता बलराज साहनी(Balraj Sahani) का 1 मई 1913 में जन्म हुआ था।

Balraj Sahni Biography Hindi

आम आदमी की पीड़ा और परेशानियों को पर्दे के माध्यम से दुनिया के सामने रखने वाले अभिनेता बलराज साहनी(Balraj Sahani) का 1 मई 1913 में जन्म हुआ था।

बलराज साहनी: भारतीय सिनेमा के यथार्थवादी अभिनेता की प्रेरक जीवनगाथा 

भारतीय अभिनेता बलराज साहनी का जन्म : 1913

पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे साहनी ने लाहौर यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में अपनी मास्टर डिग्री की।

इसके बाद वो अपना पारिवारिक कामकाज संभालने रावलपिंडी चले गए। ये काम साहनी को पसंद नहीं आया। उन्होंने गांधी जी के साथ भी काम किया और कुछ समय के लिए बीबीसी लंदन में भी नौकरी की।

उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था। अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने ‘इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसिएशन’ (इप्टा) जॉइन कर लिया।

1946 में उन्हें नाटक ‘इंसाफ’ में अभिनय करने का मौका मिला। ये उनके एक्टिंग करियर का पहला नाटक था। उन्हें अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचारों के कारण जेल भी जाना पड़ा। बलराज को तैरने का बहुत शौक था।

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13 अप्रैल 1973 के दिन वे समुंदर में तैरने गए। समुंदर किनारे ही उन्होंने व्यायाम किया और स्टूडियो जाने की तैयारी करने लगे।

अचानक उन्हें सीने में दर्द उठा और नानावती हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। चलियें जानते है उनके बारें में सब कुछ l 

परिचय (Balraj Sahni Biography Hindi)

बलराज साहनी, जिनका जन्म 1 मई 1913 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) में हुआ था,

भारतीय सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने अपने यथार्थवादी अभिनय से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।

उनका असली नाम युधिष्ठिर साहनी था। वे प्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी के बड़े भाई और अभिनेता परीक्षित साहनी के पिता थे। 


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

बलराज साहनी ने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।

इसके बाद वे रावलपिंडी लौटे और अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गए। उन्होंने हिंदी में भी स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। 

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शिक्षण और गांधीजी के साथ कार्य

1930 के दशक के उत्तरार्ध में, बलराज और उनकी पत्नी दमयंती ने बंगाल के शांतिनिकेतन में टैगोर के विश्व-भारती विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और हिंदी शिक्षक के रूप में काम किया।

यहां उनके बेटे परीक्षित साहनी का जन्म हुआ। 1938 में, उन्होंने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। अगले वर्ष, गांधीजी के आशीर्वाद से,

वे बीबीसी-लंदन की हिंदी सेवा में रेडियो उद्घोषक के रूप में शामिल हुए और 1943 में भारत लौटे। (बलराज साहनी – विकिपीडिया)

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फिल्मी करियर की शुरुआत

बलराज साहनी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (आईपीटीए) के नाटकों से की।

उन्होंने 1946 में फिल्म ‘इंसाफ’ से मुंबई में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की।

इसके बाद उन्होंने ‘धरती के लाल’ (1946), ‘दूर चलें’ (1946) जैसी फिल्मों में काम किया।

लेकिन 1953 में बिमल रॉय की क्लासिक फिल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ से उन्हें एक अभिनेता के रूप में पहचान मिली। 


प्रमुख फिल्में और अभिनय शैली (Balraj Sahni Biography Hindi)

बलराज साहनी ने ‘काबुलीवाला’ (1961), ‘वक़्त’

(1965), ‘नीलकमल’, ‘घर घर की कहानी’, ‘दो रास्ते’, ‘एक फूल दो माली’ जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं। उनकी अभिनय शैली यथार्थवादी थी, जो उनके पात्रों को जीवंत बनाती थी।

फिल्म ‘वक़्त’ में उनका गीत “ऐ मेरी जोहरा जबीन” आज भी लोकप्रिय है।

दिग्‍गज एक्‍टर और डायरेक्‍टर मनोज कुमार पंचतत्व में विलीन


लेखन और सामाजिक सक्रियता

बलराज साहनी एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे। उन्होंने ‘मेरा पाकिस्तानी सफर’ और ‘मेरा रुसी सफरनामा’ जैसी पुस्तकें लिखीं।

उन्होंने पत्रिकाओं में कई कविताएं और लघु कथाएं भी लिखीं। वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के युवा विंग अखिल भारतीय युवा संघ के पहले अध्यक्ष थे। 


व्यक्तिगत जीवन

बलराज साहनी ने दमयंती साहनी से विवाह किया, जिनसे उनके दो बच्चे हुए। दमयंती की 1947 में मृत्यु हो गई।

इसके बाद उन्होंने 1951 में संतोष चंदोक से विवाह किया, जो एक लेखक और टेलीविजन लेखक थीं। 


मृत्यु और विरासत

बलराज साहनी का निधन 13 अप्रैल 1973 को मुंबई में हुआ। उनकी अंतिम फिल्म ‘गर्म हवा’ (1973) थी,

जिसमें उन्होंने विभाजन के दौरान पाकिस्तान जाने से इंकार करने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति की भूमिका निभाई।

यह फिल्म उनके करियर की सबसे यादगार फिल्मों में से एक मानी जाती है। 

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निष्कर्ष

बलराज साहनी भारतीय सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने अपने यथार्थवादी अभिनय और सामाजिक प्रतिबद्धता से एक अलग पहचान बनाई।

उनकी फिल्मों और लेखन ने समाज में महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया और दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया।

उनकी विरासत आज भी भारतीय सिनेमा और साहित्य में जीवित है।

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बलराज साहनी जीवनी (#Biography)

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