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30Jan गोडसे की 3 गोलियों से गांधीजी हुए शहीद

जानें महात्मा गाँधी जी की 75वीं पुण्यतिथि पर उनकी हत्या से जुड़ें कुछ जानें-अनजाने पहलु, साल 1948 की 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की ह्त्या नाथूराम गोडसे ने की.

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नयी दिल्ली (समयधारा) : आज देश राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 75वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है l

राजघाट पर राष्ट्रपति प्रधानमंत्री सहित कई नेताओं व लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की l

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राजघाट जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दीl वही उन्होंने सर्व धर्म प्रार्थना सभा में भी भाग लियाl

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा

मैं बापू को उनकी पुण्यतिथि पर नमन करता हूं और उनके गहन विचारों को याद करता हूं।

मैं उन सभी लोगों को भी श्रद्धांजलि देता हूं जो हमारे राष्ट्र की सेवा में शहीद हुए हैं।

उनके बलिदानों को कभी भुलाया नहीं जाएगा और विकसित भारत के लिए काम करने के हमारे संकल्प को मजबूत करते रहेंगे।

आइये अब जानते है कैसे निधन हुआ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का l

20 जनवरी 1948 यानी मौत से 10 दिन पहले एमके गांधी पर हत्या का पहला प्रयास हुआ था।

हालांकि इस हमले में वे बाल बाल बच गए थे। 20 जनवरी के बाद से अगले 10 दिन तक उन्हें जैसे अपने मौत की आहट सुनाई देने लगी थी।

अपने अंतिम दिनों में गांधी इस कदर अपनी मौत का पूर्वानुमान लगा चुके थे मानो उन्हें पता था कि 30 जनवरी या उससे पहले उनके साथ कुछ ऐसा ही होने वाला है।

इसका इसका जिक्र उन्होंने कई समाचार पत्रों, जनसभाओं और प्रार्थना सभा के माध्यम से कम से कम 14 बार कर चुके थे।

21 जनवरी को गांधी ने कहा कि अगर कोई मुझपर बहुत पास से गोली चलाता है,

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और मैं मुस्कुराते हुए दिल में राम नाम लेते हुए उन गोलियों का सामना करता हूं तो मैं बधाई का हकदार हूं।

30 जनवरी का दिन जी हां वही काला दिन जब गांधी इस देश को अलविदा कह गए थे।

गांधी हमेशा की तरह सुबह 3:30 बजे उठे। इसके बाद सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया और शहद नींबू मिला एक गिलास पानी पिया।

उसके बाद दोबारा सोने चले गए। गांधी जब दोबारा उठे तो उन्होंने अपने नौकर ब्रजभूषण से मालिश करवाई और रोजाना की तरह अखबार पढ़ने लगे।

नाश्ते में उबली सब्जियां, बकरी का दूध और मूली, टमाटर और संतरे का जूस लिया।

यहां गांधी रोज की तरह अपनी दिनचर्या में मगन थे। उधर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के 6 न. वेटिंग रूम में गांधी की हत्या की साजिश रची जा रही थी।

नारायण आप्टे और विष्णु करकरे जब पहुंचे तो उस वक्त नाथूराम गोडसे जाग चुका था।

फ्रीडम एड मिडनाइट में लेखक ने लिखा कि नाथूराम गोडसे को उस वक्त यह सुझाव दिया गया कि

वह बुरका पहनकर गांधी जी की सभा में जाए। बाजार से बड़ा सा बुरका खरीदा गया।

गोडसे ने जब उसे पहना तो वह समझ गया कि यह योजना काम नहीं करेगी।

गोडसे के साथ दिक्कत यह थी कि उसके हाथ बुर्के की तहों में फंसकर रह जाते थे।

वह बोला कि यह पहनकर तो मैं अपनी पिस्तौल ही नहीं निकाल पाउंगा और औरतों के लिबास में पकड़ा जाउंगा।

पकड़े जाने पर मेरी ताउम्र बदनामी होगी। तभी आप्टे ने कहा कि सीधा साधा तरीका ही सबसे अच्छा होता है।

तभी उनमें से एक बोला कि नाथुराम को सिलेटी रंग का सूट पहना दिया जाए।

इसके बाद बाजार से नाथूराम के लिए कपड़ा लाया गया। उसके बाद गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्तौल निकाली और उसमें 7 गोलियां भरी गईं।’

30 जनवरी के दिन दोपहर के बाद समय था। गांधी जी से मिलने वालों में कुछ शर्णार्थी, कांग्रेस नेता और श्रीलंका के एक राजनयिक अपनी बेटी के साथ आए थे।

गांधी से मिलने वालों में सबसे खास नाम था सरदार वल्लभ भाई पटेल का। वह शाम 4:30 बजे उनसे मिलने पहुंचे थे।

दूसरी ओर समय काटने के लिए नाथूराम गोडसे और उनके साथी वेटिंग रूम में चले गए।

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गोडसे ने कहा कि उसे मूंगफली खाने की इच्छा हो रही है। फ्रीडम एड मिडनाइट में डॉमिनिक लापिएर और लैरी कॉलिंग्स ने उस दिन का जिक्र किया।

नाथूराम के मूंगफली की मांगने पर आप्टे मूंगफली लेने बाजार गया और कहा कि मूंगफली तो उसे कहीं नहीं मिल रही है।

अगर काजू बादाम में काम चल जाए तो बताओ। गोडसे ने कहा कि उसे सिर्फ मूंगफली ही खाना है।

आप्टे को आखिर मूंगफली मिल गई और गोडसे ने उसे बडे़ चाव से खाया।

गोडसे, आप्टे और करकरे ने यह फैसला किया कि वह बिरला मंदिर जान के बाद गांधी को मारने बिरला हाउस जाएंगे।

पहले गोडसे पहुंचा और फिर बाद में आप्टे और करकरे भी टांगा कर वहां पहुंच गए।

आप्टे ने बाद में फ्रीडम एड मिडनाइट के लेखकों को बताया कि हमें बिरला हाउस के अंदर जाने में किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।

हमने राहत भरी सांस ली। वहां मौजूद लोग किसी की तलाशी नहीं ले रहे थे। आप्टे ने बताया कि उसने देखा कि वहां गोडसे पहले से ही लोगों के साथ घुलमिल गया था।

न हमने उसे देखा न उसने हमें देखा। वहीं गांधी और सरदार पटेल के बीच नेहरू से बढ़ते मतभेदों पर चर्चा हो रही थी।

चर्चा इतनी गंभीर थी कि महात्मा गांधी को प्रार्थना सभा में जाने में देरी हो गई। शाम 5 बजे के बाद वह बिरला हाउस से निकलकर प्रार्थना सभा में जाने लगे।

राम चंद्र गुहा ने अपनी किताब में लिखा कि गांधी उस दिन प्रार्थना स्थल के पास बने चबूतरे की सीढ़ियों के पास पहुंच ही थे कि खाकी कपड़े पहने नाथूराम गोडसे उनकी तरफ बढ़ा।

गोडसे के हालवभाव से लग रहा था जैसे वह गांधी जी के पैर छूना चाह रहा हो।

महात्मा गांधी की भतीजी आभा ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन गोडसे ने आभा को धक्का दे दिया।

इसके बाद आभा के हाथ से गांधी की नोटबुक, थूकदान और तस्बीह छिटक कर जमीन पर आ गिरे।

गोडसे ने पिस्टल निकालकर एक कदम पीछे हटकर एक के बाद एक 3 फायर किए।

एक गोली गांधी के सीने में तो दूसरी और तीसरी गोली उनके पेट में लगी। गांधी जमीन पर गिरते ही उनके मुंह से निकला हे राम।

गांधी की भतीजी मनु को महात्मा की घड़ी दिखाई दी। जिसमें शाम के 5:17 बज रहे थे।

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गांधी की मौत जंगल में आग की तरह फैल गई। सबसे पहले वहां मौलाना आजा और देवदास गांधी पहुंचे।

इसके बाद जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, माउंटबेटन समेत कई नेता पहुंचे। गांधी के पार्थिव शरीर को बिरला हाउस लाया गया।

ब्रजकृष्ण ने गांधी जी के शव को नहलाने की जिम्मेदारी दी गई। रक्तरंजित कपड़ों को उनके बेटे देवदास गांधी को दिया गया।

गांधी की शव यात्रा में भारी भीड़ मौजूद थी। पहले शव यात्रा पहले बाएं मुड़कर और फिर दाहिने मुड़कर इंडिया गेट की तरफ बढ़ी।

अपने राष्ट्रपिता को अंतिम बार देखने के लिए करीब 15 लाख लोग पहुंचे थे। देश में इससे ज्याा हुजूम पहले नहीं देखा गया था।

इसके बाद भारतीय वायुसेना, सेना और नौसेना के 250 जवानों ने रस्सों से खींचकर शव को वहां ले गए जहां उनकी चिता को आद लगाई जाने थी।

आग की लपटों के साथ ही वहां मौजदू लोगों ने एक स्वर में कहा कि महात्मा गांधी अमर रहें।

गांधी के निधन पर पाकिस्तान बनवाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने शोक संदेश में कहा कि महात्मा गांधी हिंदु समुदाय के महानतम लोगों में एक थे।

पाकिस्तान के पहले पीएम लियाकत अली खान ने कहा कि गांधी हमारे बीच के महान व्यक्ति थे।

(इनपुट NBT हिंदी से)

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