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आदर्श बनाम सत्ता: भारत रत्न पर वीर सावरकर को फिर क्यों भूली मोदी सरकार…?

जानें कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले का क्या है सियासी गणित...?

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जैसे ही राष्ट्रपति ने जैसे ही इस वर्ष बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर(Karpoori Thakur)को भारत रत्न(Bharat Ratna)देने की घोषणा की l

वैसे ही बिहार(Bihar)की सियासत का गणित बदल गया और खेला हो गया।

कयास है कि अब जल्द ही नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो भाजपा नेतृत्व के एनडीए में शामिल होकर फिर से बिहार में मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते है।

मीडिया और राजनीतिज्ञ भले ही नीतीश कुमार को पलटू राम कहें लेकिन क्या सच में सिर्फ नीतीश कुमार ही पलटू राम है?

भाजपा या मोदी सरकार अपने वादों,दावों से पीछे नहीं हटती? चलिए इसी पर बात करते है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार(Bihar CM Nitish Kumar)ने मोदी सरकार द्वारा गांधीवादी समाजवादी विचारधारा के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले पर न सिर्फ खुशी जाहिर की बल्कि फिर से अपने सत्ता सुर बदलने शुरू कर दिए।

लोकसभा चुनाव 2024(LokSabha Elections 2024)से महज कुछ ही महीने पहले मोदी सरकार के इस फैसले का सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से स्वागत होने लगा l 

एक बहुत लोकप्रिय कहावत है-‘बाप बड़ा न भैय्या,सबसे बड़ा रुपैया…’ और ‘नेता की बात गधे चढ़ी बारात’

पूर्व की तरह मोदी सरकार ने भी इन कहावतों पर अमल करते हुए 2024 के चुनाव को लेकर एक बड़ा सटीक चुनावी दांव खेल दिया है,जिसकी काट फिलहाल विपक्ष के पास नहीं है।

विपक्ष(Opposition)को न चाहते हुए भी केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत करना होगा और ऐसा हो रहा है l 

विपक्ष के जाति-जनगणना कार्ड के तोड़ के रूप में मोदी सरकार के इस फैसले को मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है l 

क्योंकि कर्पूरी ठाकुर OBC वर्ग के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे l

उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देकर मोदी सरकार ने ओबीसी वर्ग को साधने की बड़ी कोशिश की है l 

लेकिन उसकी यह कोशिश कहीं बड़ी चूक न साबित हो क्योंकि बिहार को साधने के चक्कर में वह महाराष्ट्र सरीखे बड़े राज्य को हाथ से न धो दे।

देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से इस बार भी कट्टर हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाले वीर सावरकर को वंचित कर दिया(Ideal-vs-Power-Why-Modi-govt-give-Bharat-Ratna-to-Karpoori-Thakur-forgot-Veer- Savarkar)गया।

क्या महाराष्ट्र का वोटर इस बात को भूल सकेगा। क्या विपक्ष आदर्श बनाम सत्ता के इस खेल को सही तरह से जनता के समक्ष रख सकेगा? यह देखना दिलचस्प होगा।

दरअसल, मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव 2019 में सत्ता वापसी के लिए वीर सावरकर को न सिर्फ अपना आदर्श बताया था बल्कि भारत रत्न देने का चुनवाी वादा भी किया था।

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स्क्रीनशॉट साभार- नवभारत टाइम्स

 

लेकिन जब मौका आया तो अपनी विचारधारा के ऊलट वोटों का जमा-घटा करके भारत रत्न समाजवादी दिग्गज नेता कर्पूरी ठाकुर को देने का एलान कर(Ideal-vs-Power-Why-Modi-govt-give-Bharat-Ratna-to-Karpoori-Thakur-forgot-Veer- Savarkar)दिया।

खैर, अब यहाँ दूसरी कहावत भी सटीक बैठ जायेगी की ‘अब पछताएं होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत’ l 

कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें उनके अनुयायी ‘जननायक’ के नाम से भी पूजते हैं, पिछड़ी जातियों(OBC) को मजबूत करने के प्रयासों के लिए जाने जाते थे।

कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में बिहार में सरकारी सेवाओं में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया, एक ऐसा कदम जिसने 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के लिए रास्ता तैयार किया।

कर्पूरी ठाकुर एक गरीब परिवार से संबंध रखते थे और बेहद ईमानदार और सादा जीवन जीने के लिए जाने जाते थे।

अब बात करते है वीर सावरकर(Veer Savarkar)की जिसे महाराष्ट्र सहित अन्य कई राज्यों में भी भाजपा सहित सभी हिंदुत्ववादी दल सम्मानजनक व पूज्यनीय आदर्श मानते है। 

वीर सावरकर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणा स्रोत और एक अद्वितीय राष्ट्रवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकप्रिय विचारक थे।

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उन्होंने अपने जीवन में साहस और समर्पण का परिचय दिया, जिसने उन्हें ‘वीर’ सावरकर बना दिया।

उनकी रचनाएं, जैसे ‘हिंदू राष्ट्र के आदर्श’ ने उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को प्रमोट किया।

उनकी स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका, कठिनाईयों के बावजूद, उन्हें एक योद्धा के रूप में स्थापित करती है।

वे भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणास्त्रोत रहे हैं, जिनका समृद्धि और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण आज भी हमें प्रेरित करता है।

भाजपा यानी मोदी सरकार के पास भारत रत्न के लिए वीर सावरकर(Veer- Savarkar)और कर्पूरी ठाकुर सरीखे दो महान व्यक्ति थे l

पर 2024 के लोकसभा  चुनाव को ध्यान में रखकर एक बार फिर वीर सावरकर को भुला दिया गया l 

इस समय कर्पूरी ठाकुर के नाम पर अंतिम फैसला लेना एक तरह से सियासी गुणाभाग करके लिए गया फैसला ज्यादा लगता हैl

आप कह सकते है कि आदर्श और सत्ता को चुनने की बात आई तो पूर्ववर्तियों की ही तरह मोदी सरकार ने भी अपने हिंदुत्व के आदर्श को भूल समाजवादी आदर्श को सत्ता सुख के लिए चुन(Ideal-vs-Power-Why-Modi-govt-give-Bharat-Ratna-to-Karpoori-Thakur-forgot-Veer- Savarkar)लिया।

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बीजेपी के पास कर्पूरी ठाकुर के नाम की घोषणा करना सियासी जरुरत के अलावा कोई दूसरी वजह नहीं थी l उसे जातीय जनगणना की काट निकालनी थी l

उसे पता है कि बिहार(Bihar)को अगर साधना है तो उसे नीतीश-लालू की बड़ी काट तलाशनी होगी l

वही पूर्वांचल खासकर बिहार में अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए उसे कुछ बड़ा तो करना ही था l जिससे विपक्ष में फूट पड़े और इंडिया गठबंधन धराशायी हो जाएं जोकि हुआ भी दिख रहा है।

राम जन्मभूमि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा(Ram Mandir Pran Pratishtha)कर उसने काफी हद तक बाजी मार ली थी पर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर उसने मास्टर स्ट्रोक खेला है l

हमारा मकसद ‘वीर सावरकर’ और ‘कर्पूरी ठाकुर’ की तुलना करना कतई नहीं है, बल्कि हम यहाँ यह बताना जरुरी समझते है कि राजनीति में आदर्श,विचारधारा की बात केवल चुनावी जुमले है।

असल मकसद तो सिर्फ और सिर्फ सत्ता की चाबी कैसे और किसके कंधे पर बंदूक तानकर हासिल करनी है यही महत्वपूर्ण है। धर्म,आस्था,आदर्श,विचारधारा,गारंटी…यह सिर्फ जनता को दिया जाने वाला लॉलीपॉप है।

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चलिए जानते है कि देश के सर्वोच्च सम्मान के लिए कर्पूरी ठाकुर को वीर सावरकर की जगह आगे करना मोदी सरकार के लिए क्यों जरुरी(Ideal-vs-Power-Why-Modi-govt-give-Bharat-Ratna-to-Karpoori-Thakur-forgot-Veer- Savarkar)था l 

भारत की राजनीति में विकास से आगे आज भी जातीय जनगणना का महत्व सबसे ज्यादा है l मौजूदा वक्त में भी विकास की बातें तो की जाती है लेकिन चुनावी गणित जाति,धर्म के आधार पर ही बैठाया जाता है।

SC/ST/OBC अन्य पिछड़ा वर्ग सहित मुस्लिमों/सवर्णों की वोट राजनीति से कई पार्टियों ने दशकों तक राज किया हैl

बीजेपी विकास की बात तो करती है पर जातीय जनगणना से अपने आप को अछूती नहीं रख सकती l

पर महाराष्ट्र के हाथ एक बार फिर कुछ न लगा,

1883 में मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में जन्मे वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। इसके साथ ही वह एक राजनेता, वकील, लेखक और हिंदुत्व दर्शनशास्त्र के प्रतिपादक थे। मुस्लिम लीग के जवाब में उन्होंने हिंदु महासभा से जुड़कर हिंदुत्व का प्रचार किया था।

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वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया था।

लेकिन बीजेपी ने एक बार फिर सावरकर को भारत रत्न न देकर 2024 के लोकसभा चुनाव का गुणा भाग करके बिहार के गांधीवादी नेता कर्पूरी ठाकुर का नाम घोषित कर लोकसभा चुनाव में अपने नंबर बढ़ाने का दांव खेला है l 

वही समय की मांग को देखते हुए बीजेपी वीर सावरकर का नाम महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के पहले हमेशा की तरह इस्तेमाल कर सकती है।

इससे उसका लोकसभा चुनाव सहित महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव भी साधने का सपना पूरा हो सकता है l 

एक बार फिर हिंदुत्व के सबसे बड़े नेताओं में से एक वीर सावरकर को भारत रत्न न देना, मोदी सरकार के पाखण्ड  को उजागर करता है l

बात जब देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की आती है तो अन्य दलों की तरह ही भाजपा की मोदी सरकार भी अपने आदर्श,विचारधारा के साथ समझौता करने से गुरेज नहीं करती और घर के मुखिया को छोड़ पड़ोस के मुखिया को पहले सम्मान देती है।

तब विकास,आदर्शों की गठरी बनाकर सत्ता के कुएं में फेंक दिया जाता है। फिर से जनता को मूर्ख बनाया जाता है और इतिहास व राजनीति बदलने की खोखली झूठी बातें की जाती है।

महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश,उत्तर-प्रदेश हो तो हिंदुत्व की बात करना और वीर सावरकर को अपना आदर्श बताना भाजपा के लिए भी सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है।

चूंकि हिंदुत्व की विचारधारा की नींव रखने वाले पूज्नीय वीर सावरकर को हमेशा की तरह भुला(Ideal-vs-Power-Why-Modi-govt-give-Bharat-Ratna-to-Karpoori-Thakur-forgot-Veer- Savarkar)देना अपने आदर्शों  और मूल्यों के साथ भाजपा और हिंदुत्व का दंभ भरने वाली पार्टियों का दोगला पन है l  

कुल मिलकर कहा जाए तो मौजूदा राजनीति में मूल्य आदर्श और विचारधारा नदारद (Ideal-vs-Power)है केवल और केवल सत्ता की लोलुपता एक मात्र उद्देश्य है l

अब यह आपके विवेक पर है कि आप ही समझे,विपक्ष की ही तरह सत्ता पक्ष के लिए भी आदर्श,मूल्य,धर्म और इतिहास सिर्फ चुनावी जुमले है जिन्हें गढ़कर जनता को मूल मुद्दों से भटकाया जाता है और पांच साल के लिए फिर से सब्जबाग दिखाएं जाते है।

भाजपा(BJP),शिवसेना शिंदे गुट (ShivSena)सहित कट्टर हिंदुत्ववादी दल खुद को हिंदुत्व का सबसे बड़ा रहनुमा बताते है,लेकिन जैसे ही सत्ता की भूख जागती है तो आदर्श,विचारधारा भूल अपनी विचारधारा से समझौता बड़ी आराम से कर लेते है।

तभी केंद्र सरकार के इस फैसले पर स्वंय को हिंदुत्ववादी पार्टियां कहने वाले दल भी चुप्पी साधे रखने में ही अपनी भलाई समझ रहे है।

फिर जब राजनेताओं से सवाल किए जाते है तो वे अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने वादे,दावे और उनके अर्थ जनता के समक्ष गढ़ लेते है।

इसलिए जरुरी है कि सोशल मीडिया पर एक्टिव और व्हाट्सएप की भ्रामक ऐतिहासिक जानकारियों में उलझा आज का युवा वर्तमान की राजनीति की कथनी और करनी को समझें और अपने विवेक से परखे की मौजूदा राजनीति आदर्श,विचारधारा की नहीं और न ही परिवारवाद के खिलाफ है बल्कि यह हमेशा की ही तरह पूंजीवाद और सत्ता के बाजार पर केंद्रित है।

लोकसभा चुनाव 2019 में वीर सावरकर को भारत रत्न देने का चुनावी एलान और मौजूदा हालातों में सियासत के हिसाब से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना…फिर इसके बाद नीतीश कुमार का पल्टीमारकर फिर से भाजपा के साथ मिल जाना…सिर्फ नीतीश कुमार का ही नहीं बल्कि भाजपा नित मोदी सरकार का भी दोगला चाल-चरित्र दिखाता है।

 

 

 

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अस्वीकारण: लेख में दिए गए विचार लेखक के निजी है। समयधारा इनकी जिम्मेदारी नहीं लेता और न ही सटीकता को प्रमाणित नहीं करता।

 

 

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Dharmesh Jain

धर्मेश जैन www.samaydhara.com के को-फाउंडर और बिजनेस हेड है। लेखन के प्रति गहन जुनून के चलते उन्होंने समयधारा की नींव रखने में सहायक भूमिका अदा की है। एक और बिजनेसमैन और दूसरी ओर लेखक व कवि का अदम्य मिश्रण धर्मेश जैन के व्यक्तित्व की पहचान है।

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