
नई दिल्ली:Manipur-Violence-High-Court-revokes-order-linked-to-Meiteis-which-caused-violence:मणिपुर हिंसा के शर्मनाक वीडियो(Manipur Violence Video)के वायरल होने के बाद न केवल देश में लोगों का गुस्सा बरपा था बल्कि विश्व पटल पर भी भारत की साक को गहरा धक्का लगा था।
चूंकि राज्य में केंद्रीय सरकार(Central Govt) पार्टी की ही सरकार थी।
मैतेई समुदाय(Meiteis Community)से जुड़ा मणिपुर हाईकोर्ट का जो फैसला मणिपुर हिंसा का मुख्य कारण बना था आखिरकार गुरुवार को हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर(Manipur-Violence-High-Court-revokes-order-linked-to-Meiteis-which-caused-violence)दिया।
दरअसल,पिछले साल मणिपुर हाईकोर्ट(Manipur HighCourt)ने एक फैसला दिया था जिसके तहत राज्य सरकार को आदेश दिया गया था कि वह जितना जल्दी संभव हो मैतेई समुदाय(Meiteis Community) को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करें।

इसी फैसले के बाद मणिपुर हिंसा(Manipur violence)की आग में झुलस गया था। दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे और इस हिंसा की आग में मणिपुर के मैतेई समुदाय की महिलाओं को नग्न करके राज्य में घुमाया गया था और दोनों ओर से आगजनी,पथराव किए गए थे।
जिससे कारण विपक्ष(Opposition)भी केंद्र सरकार पर हमलावर रहा था।
लेकिन अब लोकसभा चुनाव 2024(LokSabha Election 2024) होने से महज कुछ ही समय पहले हाईकोर्ट ने हिंसा की आग में झुलस रहे मणिपुर को राहत देने की कोशिश की है।
आपको बता दें कि मणिपुर हिंसा का वीडियो वायरल होने के बाद भी पीएम मोदी(PM Modi) की चुप्पी को लेकर विपक्ष ने उन्हें घेरा था और चुनावों में विपक्ष मणिपुर हिंसा को लेकर केंद्र पर लगातार हमला कर सकता था। ऐसे में मणिपुर हाईकोर्ट का फैसला हिंसा की आग को शायद अब बुझा दें।
लेकिन इस साल 22 फरवरी,गुरुवार को मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय (Meiteis Community) को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने के अपने आदेश में संशोधन कर दिया(Manipur-Violence-High-Court-revokes-order-linked-to-Meiteis-which-caused-violence) है।
मणिपुर हाईकोर्ट ने मार्च 2023 में दिये फैसले के उस पैरा को हटाने का आदेश दिया है, जिसमें राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में शामिल करने पर विचार करने को कहा गया था।
कोर्ट ने कहा कि यह पैरा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा इस मामले में रखे गए रुख के विपरीत है। हाईकोर्ट के 27 मार्च, 2023 को दिए गए निर्देश को राज्य में जातीय हिंसा के लिए उत्प्रेरक माना जाता है।
इस संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई।
मणिपुर हाईकोर्ट ने पूरे पैरा को ही हटा दिया
न्यायमूर्ति गोलमेई गैफुलशिलु की एकल पीठ ने एक समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान उक्त अंश को हटा दिया। पिछले साल के फैसले की वजह से राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को ST सूची में डालने पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश देने वाले विवादित पैराग्राफ को हटाने का अनुरोध किया गया था।
पिछले साल के फैसले के पैरा में कहा गया था कि राज्य सरकार आदेश प्राप्त होने की तारीख से ‘मीतेई/मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के अनुरोध पर शीघ्रता से, संभव हो तो 4 हफ्ते की अवधि के भीतर विचार करेगी।’
न्यायमूर्ति गाइफुलशिलु ने 21 फरवरी के फैसले में अनुसूचित जनजाति सूची में संशोधन के लिए भारत सरकार की निर्धारित प्रक्रिया की ओर इशारा करते हुए उक्त निर्देश को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
न्यायमूर्ति गाइफुलशिलू ने कहा, ‘तदनुसार, पैरा संख्या 17(iii) में दिए गए निर्देश को हटाने की जरूरत है और 27 मार्च, 2023 के फैसले और आदेश के पैरा संख्या 17(iii) को हटाने के लिए तदनुसार आदेश दिया जाता है…।’
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जानें क्यों भड़की थी मणिपुर में हिंसा?
मणिपुर में हाल में भड़की हिंसा का प्रमुख कारण मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग रहा है। मैतेई समुदाय की यह मांग नई नहीं है, बल्कि 10 साल से अधिक समय से वह ये मांग कर रहे हैं।
इस बार हिंसा तब भड़की जब मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए चार हफ्ते के अंदर सिफारिश केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय को भेजे।
इस संबंध में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मैतेई समुदाय को 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था।
उनका कहना है कि अपनी रिति-रिवाज, संस्कृति, जमीन और बोली को बचाए रखने के लिए उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस मिलना चाहिए।
मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद राज्यभर में प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। आगजनी और हिंसा हुई।
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(इनपुट: एजेंसी से भी)