अवैध विवाह से हुई संतान का भी मां-बाप की पैतृक संपत्ति में हक: सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अभी हाल ही में एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक फैसला अवैध शादी से उत्पन्न हुए बच्चों के संपत्ति अधिकार को लेकर दिया है,जिसके चलते अमान्य या अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी वैध संतान की तरह माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त(Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property)होगा।
Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property-Supreme- court-Verdict
नई दिल्ली:अक्सर समाज, परिवार और कानून में भी अवैध शादी के कानूनी अधिकारों(Invalid Marriage) को चुनौती दी जाती रही है,
लेकिन सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अभी हाल ही में एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक फैसला अवैध शादी से उत्पन्न हुए बच्चों के संपत्ति अधिकार को लेकर दिया है,जिसके चलते अमान्य या अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी वैध संतान की तरह माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त(Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property)होगा।
जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि शून्य विवाह या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी वैध कानूनी बच्चों की ही तरह माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा (Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property-Supreme- court-Verdict)मिलेगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने इस फैसले को सुनाया। चंद्रचूड़ ने हालांकि स्पष्ट किया कि ऐसा बच्चा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति में या उसके अधिकार का हकदार नहीं होगा।
आपको बता दें कि अभी तकअमान्य या शून्य या फिर अवैध विवाह से उत्पन्न संतानों को सिर्फ माता-पिता की स्वत: अर्जित संपत्ति में ही हिस्सा मिल सकता था लेकिन अब हिंदू मैरिज एक्ट(Hindi Marriage Act) की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाया गया है।
11 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का निपटारा किया है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का यह अहम फैसला शुक्रवार को आया।
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) में कहा गया है कि अमान्य और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार(Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property-Supreme- court-Verdict)होगा।
कोर्ट को तय करना था कि किसी अमान्य और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को हिंदू कानून के अनुसार माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार है या (Supreme court Verdict on invalid marriage children property rights)नहीं?
साथ ही पिता की मृत्यु से पहले मां-पिता दोनों अलग हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ बच्चा पिता पक्ष की विरासत में मिली संपत्ति का हकदार होगा या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 18 अगस्त को सारी दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाने से होने वाले असर पर सुनवाई की।
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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या
सुनवाई के दौरान सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu-succession-act)के प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को 2005 में संशोधित किया गया था।
इसकी धारा 6 के बारे में कहा कि याचिका के मुताबिक अधिनियम की अधिसूचना के बाद और प्रतिस्थापन से पहले के कालखंड में उस हिंदू पुरुष की मृत्यु हो गई थी।
ऐसे में यदि वह हिंदू संयुक्त परिवार संपत्ति रखता है तो उसका हिस्सा उत्तरजीविता द्वारा हस्तांतरित होगा, न कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार।
क्या शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को हिंदू कानून के अनुसार माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार(ancestral property rights)होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चर्चा की थी कि क्या पिता की मृत्यु से पहले काल्पनिक विभाजन के मामले में, शून्य या शून्यकरणीय विवाह से उक्त पिता से पैदा हुआ बच्चा(children born from void/voidable marriages property right) उक्त काल्पनिक विभाजन में पिता द्वारा विरासत में मिली संपत्ति का हकदार होगा?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 16(3) के दायरे के संबंध में रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2011) 11 SCC 1 के संदर्भ पर सुनवाई कर रही(Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property-Supreme- court-Verdict)थी।
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वर्ष 1955 से पहले द्विविवाह अपराध नहीं था
अपीलकर्ता पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि मामला उन बच्चों से संबंधित है जिन्हें 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम(Hindu Marriage Act 1955)के लागू होने से पहले वास्तव में वैध माना जाता था।
याचिकाकर्ताओं ने 14 अगस्त को हुई सुनवाई में कहा था कि 1955 से पहले, द्विविवाह कोई अपराध नहीं था।
इसलिए दूसरी या तीसरी शादी से हुए सभी बच्चे सहदायिक होते थे। कोई हिंदू विवाह के लिए वैध और हिंदू उत्तराधिकार के लिए अवैध नहीं हो सकता।
यदि किसी बच्चे को कानून के प्रयोजन के लिए वैध माने जाने की शर्त यह है कि उसका जन्म उसके पिता के यहां हुआ है, तो बच्चा सहदायिक होने की शर्तों को भी पूरा करता(Children-born-from-invalid-marriage-have-rights-in-Parents-ancestral-property-Supreme- court-Verdict)है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल माता-पिता की विरासत में मिली संपत्ति ऐसे बच्चे को मिलेगी।
हालांकि कई हिंदू परिवारों में हिंदू परिवार कानून के अनुसार दादी-दादी, चाचा की संपत्ति भी बच्चे को मिल जाती थी, लेकिन आज के फैसले के अनुसार ऐसे बच्चे को केवल उसके दादा-दादी से विरासत में मिली संपत्ति ही मिलेगी, माता-पिता(Parents Property)के अलावा किसी अन्य रिश्तेदार की नहीं।
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ऐसे बच्चे किसी अन्य सहदायिक की संपत्ति के हकदार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “अमान्य/अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने मृत माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार हैं, जो उन्हें हिंदू सहदायिक संपत्ति के काल्पनिक विभाजन पर आवंटित किया गया होगा।
हालांकि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के अलावा किसी अन्य सहदायिक की संपत्ति के हकदार नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 (3) की व्याख्या कर रहा था, जो यह स्पष्ट करती है कि नाजायज बच्चों को केवल अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार है, किसी और को नहीं।
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(इनपुट एनडीटीवी खबर से भी)