
Jallikattu Kambala bailgadi-daud upheld by supremecourt
नईं दिल्ली (समयधारा) : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने सुप्रीम फैसले में जल्लीकट्टू (Jallikattu), कंबाला (Kambala) और बैलगाड़ी दौड़ समर्थकों को बड़ी राहत दी l
सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत देने वाले कानूनों की संवैधानिकता पर तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकार के फैसले को सही माना।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के उस कानून की वैधता बरकरार रखी, जिसके तहत सांडों से जुड़े खेल ‘जल्लीकट्टू’ को मंजूरी दी गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पशु क्रूरता अधिनियम में तमिलनाडु सरकार की ओर से किए गए संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक और महाराष्ट्र में होने वाली बैलों की परंपरागत दौड़ पर भी रोक नहीं लगाई है।
Jallikattu Kambala bailgadi-daud upheld by supremecourt
जस्टिस के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया।
पीठ ने इसी के साथ बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले महाराष्ट्र के कानून की वैधता भी बरकरार रखी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जल्लीकट्टू, बैलगाड़ी दौड़ कानून वैध हैं। राज्यों को कानून के तहत पशुओं की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
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यानी इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, कर्नाटक में कंबाला और तमिलनाडु में जल्लीकट्टू का परंपरागत खेल जारी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट में पशु क्रूरता अधिनियम में बदलावों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है या नहीं, यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है।
अदालत ने कहा कि जब विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है,
Jallikattu Kambala bailgadi-daud upheld by supremecourt
तो न्यायपालिका इस पर अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है। कोर्ट ने कहा कि विधायिका यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है।
बेंच ने नागराज में 2014 के फैसले से असहमति जताई कि जल्लीकट्टू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017, जानवरों के दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम करता है।
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फैसले के बाद तमिलनाडु के कानून मंत्री एस. रघुपति ने कहा कि हम कानूनी लड़ाई जीते हैं। तमिलनाडु के लोगों की यह इच्छा थी,
वो जल्लीकट्टू खेल को जारी रखना चाहते थे। हमारी संस्कृति, परंपरा सब कुछ संरक्षित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अच्छा निर्णय दिया है। हम सभी जानवरों को क्रूरता से बचाएंगे। जल्लीकट्टू में किसी भी जानवर के साथ क्रूरता नहीं होगी।
आपको बता दें कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है।
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सांडों के साथ होने वाले इस खेल पर रोक लगाने की मांग भी उठती रही है।
संविधान पीठ ने ‘जल्लीकट्टू’ और बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन की अनुमति देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कानून को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।
इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे।
(इनपुट एजेंसी से भी)
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