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Talibanने की अफगानिस्तान में नई सरकार की घोषणा,UN में घोषित आतंकी भी शामिल

अफगानिस्तान में बनने जा रही तालिबान की सरकार ने कई कट्टर हथियारबंद तालिबान नेताओं को शामिल किया है।इसके साथ ही इनमें उच्च पदों पर कई ऐसे नेताओं को भी शामिल किया गया है,जिन्हें यूनाइटेड नेशंस ने आतंकियों की लिस्ट में डाला है। 

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 काबुल: हथियार और बंदूक के जोर पर तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा(Taliban capturedAfghanistan)करने के बाद और काबुल(Kabul)में जारी खूनी संघर्ष के दौरान आखिरकार तालिबान ने मंगलवार को अफगानिस्तान में अपनी नई सरकार बनाने की घोषणा कर ही(Taliban-declare-new-govt-in-Afghanistan)दी। 

अफगानिस्तान(Afghanistan)में बनने जा रही तालिबान की सरकार ने कई कट्टर हथियारबंद तालिबान नेताओं को शामिल किया है।

इसके साथ ही इनमें उच्च पदों पर कई ऐसे नेताओं को भी शामिल किया गया है,जिन्हें यूनाइटेड नेशंस ने आतंकियों की लिस्ट में डाला है। 

Mullah Hassan Akhund
Mullah Hassan Akhund

अफगानिस्तान में बनने जा रही तालिबान की नई सरकार(Taliban-declare-new-govt-in-Afghanistan) में मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद(Mullah Hassan Akhund)प्रधानमंत्री होंगे,तो वहीं उप प्रधानमंत्री के तौर पर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नाम का एलान किया गया है।

मंगलवार शाम को तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नई अंतरिम सरकार(Taliban new interim govt) के नामों की घोषणा की है।

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उन्होंने बताया कि तालिबान के संस्थापक अमीर मुल्ला उमर के बेटे और सैन्य अभियानों के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद याकूब मुजाहिद को अंतरिम रक्षा मंत्री नियुक्त किया गया है।

साथ ही सिराजुद्दीन हक्कानी देश के आंतरिक मामलों के मंत्री होंगे।

मुल्ला हिदायतुल्ला बद्री वित्त मंत्री और मौलवी अमीर खान मोत्ताकी को देश का विदेश मंत्री और उनके डिप्टी शेर मुहम्मद अब्बास स्टानिकजई को नियुक्त किया गया है।

शेखउल्लाह मुनीर नई अफगान सरकार में शिक्षा मंत्री होंगे, जबकि कारी फसीहुद्दीन सेना प्रमुख होंगे। खैरुल्लाह खैरख्वा सूचना और संस्कृति मंत्री होंगे।

वहीं मीडिया से बात कर रहे जबीहुल्लाह मुजाहिद  सूचना और संस्कृति मामलों के उप मंत्री बनाए गए हैं।

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इसके अलावा नूर मोहम्मद साकिब हज मंत्री, अब्दुल हकीम न्याय मंत्री और नूरुल्ला नूरी सीमा एवं जनजातीय मामलों के मंत्री होंगे।

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नई सरकार जल्द ही कामकाज संभालेगी और उसके शपथन समरोह में रूस, चीन, कतर, उज़्बेकिस्तान, पाकिस्तान आदि पड़ोसी देशों के नेताओं को न्यौता दिया गया है।

तालिबान की सरकार(Taliban-declare-new-govt-in-Afghanistan)के शीर्ष नेतृत्व में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री सहित अनेक ऐसे नेता हैं जिनके नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकी सूची में हैं।

सिराजुद्दीन हक़्क़ानी जैसे नेताओं के सिर पर अमेरिका ने तो लाखों डॉलर का ईनाम भी घोषित कर रखा है।

अफ़ग़ानिस्तान के गृहमंत्री बनाए गए हक़्क़ानी को पाकिस्तान की आईएसआई का बेहद करीबी माना जाता है।

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अफगानिस्तान में भारतीय दूतावासों(Indian Embassy) पर हुए हमलों में भूमिका को लेकर भारत भी उसकी भूमिका पर सवाल उठाता रहा है।

नवम्बर 2012 में हक्कनी नेटवर्क पर लगे यूएन(UN) प्रतिबंध का भारत ने स्वागत और समर्थन किया था।

हालांकि तालिबान की नई सरकार फ़िलहाल अंतरिम होगी। इस्लामिक गणराज्य को बदलकर इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान करने का ऐलान कर चुके तालिबान अपना नया संविधान भी लागू करेंगे।

साथ ही तालिबान के सर्वोच्च नेतृत्व को देश में सर्वोच्च सत्ता की जगह दी जाएगी। संविधान बनाने में वक्त लग सकता है लिहाजा तबतक अंतरिम सरकार प्रशासन का कामकाज संभालेगी।

नए तालिबानी निज़ाम ने दोहा में अमेरिका के साथ हुए शांति समझौतों और अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं व बयानों में दिए वादों को भी ठेंगा दिखाया है।

सरकार के लिए घोषित 33 नामों में सर्वाधिक जगह जहां पश्तून नेताओं को मिली है, वहीं उसमें भी दबदबा क्वेटा शूरा का ही नज़र आता है।

प्रधानमंत्री बनाए गए हसन अखुंद इसी क्वेटा शूरा के मुखिया हैं. नामों की फेहरिस्त में उत्तर अफगानिस्तान के मुकाबले दक्षिण की हिस्सेदारी का पलड़ा भी भारी है।

इस बीच नई अफगानिस्तान सरकार में हिस्सेदारी की मांग को लेकर महिलाएं भले ही सड़कों पर प्रदर्शन कर रही हों. लेकिन उन्हें सरकार में कोई जगह नहीं दी गई है।

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जबकि पिछली सरकारों में महिलाएं क़ई अहम पदों पर थी। वहीं अफ़ग़ान समाज में बड़ी संख्या रखने वाले ताजिक, उज़बेक, हजारा और बलूच मूल के लोगों की हिस्सेदारी लगभग गौण है।

ऐसे में तालिबान की सरकार(Taliban-declare-new-govt-in-Afghanistan)को किसी लिहाज से न तो सबके लिए समावेशी कहा जा सकता और न समान प्रतिनिधित्व वाली बताया जा सकता है।

ऐसे में इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि फिलहाल अफगान समाज में असंतोष की वजहें काफी होंगी।

साथ ही कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए तालिबान को अपने पसंदीदा ताकत के हथियारों का ही इस्तेमाल करना होगा। ऐसे में टकराव के नए मोर्चे खड़े हों तो अचरज नहीं होना चाहिए।

 

 

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(इनपुट एजेंसी से भी)

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